ट्रंप की टैरिफ नीति: 21वीं सदी में मैकिनली की सोच दोहराने की कोशिश?
ट्रंप की टैरिफ नीति से फिलहाल अमेरिकी उपभोक्ता ज्यादा परेशान हैं, लेकिन यह नीति उनके राजनीतिक फायदे, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और आदर्शवादी सोच को दर्शाती है। भारत को अब यह समझना होगा कि ट्रंप की आर्थिक राष्ट्रवाद की नीति से सीधे लड़ने की जगह स्मार्ट डिप्लोमेसी और नए साझेदारियों के जरिये इसका हल निकाला जाए।;
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ 27 अगस्त से 25% से बढ़कर 50% हो जाएंगे। ट्रंप की यह टैरिफ नीति जहां अमेरिकी हितों की रक्षा के नाम पर पेश की गई है, वहीं इससे न केवल भारत, बल्कि अमेरिका के भीतर भी विरोध के सुर उठ रहे हैं।
टैरिफ नीति पर उठते सवाल
ट्रंप के समर्थक इस नीति को अमेरिकी नौकरियों और उद्योगों की रक्षा के लिए जरूरी बता रहे हैं, जबकि आलोचक इसे अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को नाराज करने वाला कदम मानते हैं। रिपब्लिकन पार्टी के कई सीनेटरों को टाउन हॉल मीटिंग्स में जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा है — खासतौर पर ट्रंप के "वन बिग ब्यूटीफुल बिल" के कारण, जिसने हेल्थ बजट में भारी कटौती की थी।
आंकड़ों में दिखा नुकसान
रिपोर्टों के अनुसार, अगले 10 सालों में टैरिफ से मिलने वाला अनुमानित राजस्व 2.2 ट्रिलियन डॉलर होगा, जो ट्रंप के टैक्स कट योजना से हुए 4.5 ट्रिलियन डॉलर के नुकसान की भरपाई से काफी कम है। इससे अमेरिका का बजट घाटा 3 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है।
भारत पर टैरिफ क्यों?
भारत पर टैरिफ लगाने के पीछे सिर्फ रूस से तेल आयात नहीं, बल्कि ट्रंप की BRICS देशों के प्रति संदेहपूर्ण नजरिया भी अहम वजह है। यह निर्णय भूराजनीतिक संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। टैरिफ का असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर साफ दिख रहा है — अंडे, चिकन और मांस जैसी रोजमर्रा की चीजें महंगी हो गई हैं। उद्योगों पर भी असर पड़ा है। फोर्ड को $800 मिलियन और जनरल मोटर्स (GM) को $1.1 बिलियन का नुकसान हुआ है। खासकर GM को चीन और कनाडा से अपने ही प्लांट से आयात पर 25% टैक्स देना पड़ रहा है, जबकि यूरोप और जापान के प्रतिस्पर्धियों को केवल 15%।
दुनिया का जवाब: प्रोडक्शन रीलोकेशन
दूसरे देशों ने डॉलर के मुकाबले अपनी करेंसी कमजोर कर दी है और सप्लाई चेन को नया रुख दिया है, जिससे ट्रंप की रणनीति कमजोर पड़ रही है। कंपनियां विदेशों में निवेश कर प्रोडक्शन शिफ्ट कर रही हैं — जिसे 'टैरिफ शॉपिंग' भी कहा जा रहा है।
राजनीति ज़्यादा, अर्थशास्त्र कम
ट्रंप की टैरिफ नीति आर्थिक से ज्यादा राजनीतिक और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से जुड़ी लगती है। वे खुद को विलियम मैककिनली जैसा राष्ट्रवादी नेता दिखाना चाहते हैं, जो 20वीं सदी की शुरुआत में ऊंचे टैरिफ का समर्थक था। ट्रंप के लिए यह एक तरह का राजनीतिक नाटक है।
भारत के लिए जोखिम
हालांकि अभी भारत के फोन और दवा निर्यात पर असर नहीं पड़ा है, लेकिन टेक्सटाइल, लेदर, ज्वेलरी और एमएसएमई सेक्टर में जोखिम बढ़ गया है। छोटे उद्योग, जो बड़े निर्यातकों के सप्लायर हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। अगर ट्रंप यूक्रेन-रूस युद्ध में किसी तरह की शांति स्थापित कर पाते हैं तो भारत को कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो रूस से तेल आयात कम करने के बावजूद भारत पर 25% टैरिफ लागू किया जा सकता है।
भारत की रणनीति क्या हो?
भारत के लिए इस समय टक्कर की बजाय रणनीतिक समझदारी जरूरी है। जैसे कि यूरोप, ब्रिटेन और चीन जैसे बाजारों की तरफ व्यापार का रुख बढ़ाना, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) में सेक्टर-विशेष छूट लेना और कूटनीतिक संवाद के ज़रिए ट्रंप की नाराज़गी से बचना।
(शिव नादर विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर और भारतीय विदेश व्यापार संस्थान के पूर्व कुलपति मनोज पंत द्वारा लिखित। 360info द्वारा क्रिएटिव कॉमन्स के अंतर्गत प्रकाशित।)