आरक्षण का मसला सुलझ गया था फिर किसकी लगी नजर, बांग्लादेश की इनसाइड स्टोरी
बांग्लादेश इस समय हिंसा के दौर से गुजर रहा है। पूर्व पीएम शेख हसीना अब अपने देश में नहीं है। सवाल यह है कि आरक्षण का मसला जब सुलझा तो आग लगाने के लिए जिम्मेदार कौन है।
Bangladesh Update News: बांग्लादेश में मार काट मची हुई है इसको मार दो उसकी संपत्ति लूट लो उसके मकान में आग लगा दो, अच्छा ये हसीना सरकार में तेवर दिखा रहा था...इसे अब सबक सिखा दो चार-पांच अगस्त से वहां यही चल रहा है। हिंदू, सिख समेत अल्पसंख्यकों पर बेइंतहा जुर्म हो रहे हैं। हिंदुओं के मंदिरों, उनके घरों को तबाह किया गया है उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा गया है, कलाकारों तक नहीं बख्शा है अराजकता का नंगा नाच जिसे हम कहते हैं वही सब चीजें वहां हुई हैं या हो रही हैं। इसे आपने टेलिविजन पर देखा है।
यह केवल छात्र आंदोलन नहीं रह गया छात्र एक तरह से टूल और टूल किट का हिस्सा बन गए। विदेशी ताकतें ऐसे ही अवसर के ताक में रहती हैं। बांग्लादेश में अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए उन्हें एक सुनहरे मौके की तलाश थी और उन्हें यह मौका मिल गया दूसरे के कंधों पर बंदूक रखकर चला दिया गया और निशाना भी सटीक लग गया। पांच अगस्त को हसीना को पीएम पद से इस्तीफा देकर भागना पड़ा। वह बीते 15 सालों से सत्ता में थीं। हालात का आंकलन करने में उनसे चूक हुई और उसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। हसीना अपने ही देश में अप्रासंगिक क्यों हो गईं उन्हें जनता का साथ क्यों नहीं मिला।उसकी एक अलग स्टोरी है।
हर जगह होते हैं आंदोलन
बात यह है कि शांतिपूर्ण आंदोलन और हिंसक आंदोलन हर जगह हर देश में होते हैं। कुछ बिल्कुल नैसर्गिक होते हैं। तो कुछ में मिलावट हो जाती है। आपको पूरी दुनिया में इस तरह के आंदोलन देखने को मिल जाएंगे। बांग्लादेश के इस आंदोलन भी शुरुआत में बहुत हद तक आर्गेनिक था। लेकिन धीरे-धीरे इसमें विदेशी ताकतों का दखल बढ़ता गया और इसे पूरी तरह हाईजैक कर लिया गया अगर विदेशी ताकतें जिनकी तरफ खुद शेख हसीना भी इशारा कर चुकी थीं। अगर वे नहीं कूदी होतीं तो बीएनपी जमात ए इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठन हसीना का कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
इमरान खान और शेख हसीना को ना कहना भारी पड़ गया। दोनों के हाथ से उनकी सत्ता और सरकार चली गई एक जेल में है दूसरे का भविष्य अधर में लटका हुआ है। हसीना को ब्रिटेन में राजनीतिक शरण नहीं मिलना..और कहा जा रहा है कि अमेरिका ने भी उनका वीजा रद्द कर दिया है। ये बातें इसी और इशारा करती हैं कि कोई गोरा बड़ा खेल खेलना चाहता है। उसे बस अपने हित की पड़ी है। रणनीतिक भागीदारी आपसी रिश्ते अब तक के सबसे ऊंचाई पर पहुंचे हैं यह सब कहने-सुनने की बाते हैं। दरअसल, भारत जिस तरह से पश्चिम को आईना और उन्हें उनकी औकात दिखा रहा है। इससे वे तिलमिला गए हैं। वे भारत को भी पाकिस्तान समझ रहे हैं उनका मुगालता दूर नहीं हुआ है। बस उनकी बेचैनी इस बात में है कि भारत किसी तरह उनके हाथ में आ जाए इसके लिए वे कभी निज्जर कभी पन्नू तो कभी धार्मिक आजादी का मुद्दा उठाकर भारत को घेरने की कोशिश कर रहे हैं... वे देख रहे हैं कि उनकी हनक बालू के रेत की तरह उनके हाथ से फिसलती जा रही है। इस छटपटाहट और बेचैनी में वे ऐसे भारी गलती करते जा रहे हैं जिसका खामियाजा उन्हें एक दिन खुद भुगतना पड़ेगा।