हर साल 125 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा डकार जा रहा है प्लास्टिक, नई रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा
जलवायु संकट में प्लास्टिक की भूमिका को लेकर नई रिपोर्ट के मुताबिक इससे हर साल $1.5 ट्रिलियन का नुकसान हो रहा है और मौतों और बीमारियों की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है;
एक नई मेडिकल जर्नल रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक प्लास्टिक संकट हर साल सरकारों और करदाताओं को लगभग $1.5 ट्रिलियन (₹125 लाख करोड़ से अधिक) की भारी कीमत चुकाने पर मजबूर कर रहा है। यह लागत उन चोटों, विकलांगताओं और मौतों से जुड़ी है जो हमारी धरती, समुद्र और शरीर में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण बढ़ रही हैं।
The Lancet द्वारा रविवार को प्रकाशित एक समीक्षा में बताया गया कि प्लास्टिक का उत्पादन 2060 तक तीन गुना होने की संभावना है। फिलहाल वैश्विक स्तर पर केवल 10% प्लास्टिक का ही पुनर्चक्रण हो रहा है, और अब तक लगभग 8,000 मेगाटन प्लास्टिक पृथ्वी पर फैल चुका है।
रिपोर्ट में कहा गया कि प्लास्टिक अपने पूरे जीवनचक्र में नुकसान पहुंचाता है, फॉसिल फ्यूल के निष्कर्षण और उत्पादन से लेकर मानव उपयोग और अंततः पर्यावरण में फेंके जाने तक।
“प्लास्टिक मानव और पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर, बढ़ता और कम आंका गया खतरा है,” रिपोर्ट में कहा गया।
रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक शिशु से लेकर वृद्धों तक में बीमारियों और मृत्यु का कारण बनता है।
यह जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान में योगदान दे रहा है।
इसका प्रभाव कम आय और जोखिमग्रस्त जनसंख्या पर सबसे अधिक पड़ रहा है।
लैंसेट ने चेतावनी दी: “प्लास्टिक हमारे युग की परिभाषित सामग्री बन चुका है।”
अब प्लास्टिक के कण (माइक्रोप्लास्टिक) न केवल समुद्रों और नदियों में, बल्कि मानव शरीर के अंदर—यहां तक कि स्तन दूध और मस्तिष्क ऊतक में भी पाए जा रहे हैं।
रविवार की इस रिपोर्ट के साथ "The Lancet Countdown on Health and Plastics" नामक एक नई निगरानी प्रणाली शुरू की गई है, जो दुनियाभर में इस संकट से निपटने के राजनीतिक प्रयासों पर नज़र रखेगी।
यह रिपोर्ट जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में शुरू हो रही ग्लोबल प्लास्टिक संधि (Global Plastics Treaty) की अंतिम दौर की वार्ता से पहले जारी की गई। इस वार्ता में 175 देश शामिल हैं, जो पहली बार प्लास्टिक उत्पादन में कटौती के लिए वैश्विक अनिवार्य लक्ष्य तय करने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, चीन, रूस, ईरान और सऊदी अरब जैसे देश ऐसे कदमों का विरोध कर रहे हैं और केवल पुनर्चक्रण बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। लैंसेट के अनुसार, ये पेट्रोकेमिकल उत्पादनकर्ता देश अब घटते फॉसिल फ्यूल की मांग के चलते प्लास्टिक उत्पादन की ओर रुख कर रहे हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष-
विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक 16,000 तक रसायनों से बनते हैं।
ये रसायन मानव शरीर में खाने, सांस लेने और त्वचा के माध्यम से प्रवेश करते हैं।
गर्भवती महिलाओं, भ्रूण, शिशुओं और बच्चों के लिए खतरा अधिक है, जैसे गर्भपात, जन्म विकृति, कम बौद्धिक क्षमता और मधुमेह का खतरा।
वयस्कों में हृदय रोग, स्ट्रोक और कैंसर का जोखिम।
लैंसेट ने निष्कर्ष निकाला: “अब यह स्पष्ट है कि दुनिया केवल रीसायक्लिंग से प्लास्टिक संकट को हल नहीं कर सकती।”
इस संकट पर नियंत्रण के लिए विज्ञान-आधारित हस्तक्षेप, जैसे कानून, नीति, निगरानी, प्रवर्तन, प्रोत्साहन और नवाचार आवश्यक होंगे।