डोनाल्ड ट्रम्प : चाबहार पोर्ट को लेकर दबाव ईरान पर, झटका भारत को

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रसाशन को ईरान के चाबहार पोर्ट पर दिए गए प्रतिबंधों की छूट को बंद करने का आदेश दिया है। अमेरिका के इस कदम से भारत पर आफत आ सकती है।;

Update: 2025-02-06 11:28 GMT

Chabahar Port : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने की रणनीति के तहत एक बड़ा कदम उठाते हुए चाबहार पोर्ट को दिए गए प्रतिबंधों में छूट को समाप्त करने का आदेश दिया है। ट्रंप प्रशासन का यह फैसला भारत के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि यह पोर्ट भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग है।


चाबहार पोर्ट: भारत की रणनीतिक परियोजना पर संकट
चाबहार बंदरगाह भारत द्वारा ईरान में विकसित एक प्रमुख व्यापारिक गेटवे है, जो पाकिस्तान को बायपास कर भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ता है। भारत ने इस बंदरगाह के विकास में 25 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश किया है और हाल ही में 10 साल के लिए इसके संचालन का समझौता किया था। चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो भारत को रूस और यूरोप तक सीधा संपर्क उपलब्ध कराता है। यही कारण है कि अमेरिका द्वारा इस पोर्ट पर दी गई छूट समाप्त करने का फैसला भारत की व्यापारिक और सामरिक स्थिति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

अमेरिकी प्रतिबंध: ईरान को घुटनों पर लाने की कोशिश?
ट्रंप प्रशासन ने 2018 में चाबहार पोर्ट को अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट दी थी ताकि भारत अफगानिस्तान में व्यापार जारी रख सके। लेकिन अब इस छूट को खत्म करने का फैसला लिया गया है। अमेरिका चाहता है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम, बैलिस्टिक मिसाइल निर्माण और आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने की गतिविधियों को रोके।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के इस कदम से ईरान की अर्थव्यवस्था पर और अधिक दबाव पड़ेगा, क्योंकि चाबहार पोर्ट ईरान के लिए भी व्यापारिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है।

भारत के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति
भारत चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान और चीन के ग्वादर पोर्ट के जवाब के रूप में विकसित कर रहा है। इस फैसले के बाद भारत की रणनीतिक और आर्थिक योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि चाबहार पोर्ट के कारण मुंबई से यूरेशिया के बीच व्यापारिक दूरी और समय 43% तक कम हो गया था। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यह सुविधा अब बाधित हो सकती है।
भारत सरकार ने अमेरिका के इस फैसले की समीक्षा करने की बात कही है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी अमेरिका यात्रा के दौरान यह मुद्दा प्रमुख रूप से उठाया जा सकता है।

ईरान और इजरायल के बढ़ते तनाव के बीच फैसला
अमेरिका ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब ईरान और इजरायल के बीच तनाव बढ़ रहा है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज कर सकता है, जिससे पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
चीन भी ईरान में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, और उसने ईरान के साथ 25 साल की रणनीतिक साझेदारी की है। यह अमेरिका और भारत दोनों के लिए चिंता का विषय है।

क्या भारत को अमेरिका से मिलेगी कोई राहत?
भारत और अमेरिका के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी है, और ऐसे में भारत इस फैसले पर अमेरिका से बातचीत कर सकता है। हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के संबंध बेहद घनिष्ठ हुए हैं, लेकिन ईरान मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मतभेद उभर सकते हैं।
भारत को अब यह तय करना होगा कि क्या वह अमेरिका के दबाव में आकर ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को सीमित करेगा या फिर स्वतंत्र रूप से अपने हितों की रक्षा करेगा।
अमेरिका के इस फैसले से भारत की मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक व्यापार पहुंच प्रभावित हो सकती है। वहीं, ईरान पर अमेरिकी दबाव और बढ़ेगा, जिससे उसके परमाणु कार्यक्रम और आतंकवाद के समर्थन को लेकर वैश्विक तनाव और बढ़ सकता है। भारत को अब अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत होगी कि वह अमेरिका और ईरान के बीच संतुलन कैसे बनाए रखे।


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