बातचीत से पहले ट्रंप की रूस को चेतावनी, वार्ता नाकाम रहने पर लेंगे सख्त फैसला

अलास्का में 15 अगस्त को ट्रंप-पुतिन की बैठक रूस-यूक्रेन युद्ध के भविष्य का फैसला कर सकती है। वार्ता नाकाम रही तो रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध का इशारा अमेरिका कर चुका है।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-08-14 01:46 GMT

Donald Trump Vladimir Putin News: 2022 में शुरू हुई रूस और यूक्रेन की जंग अब तक बिना किसी नतीजे के जारी है। कई देशों के प्रयासों के बावजूद युद्धविराम पर सहमति नहीं बन सकी। इस बीच 15 अगस्त को अलास्का में होने वाली अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है।

ट्रंप की सख्त चेतावनी

बैठक से पहले ट्रंप ने पुतिन को कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि अगर मॉस्को यूक्रेन के साथ शांति वार्ता में बाधा डालने की कोशिश करता है तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने संकेत दिए कि अगर बैठक से ठोस नतीजा नहीं निकला तो रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, हालांकि उन्होंने प्रतिबंधों की प्रकृति और समयसीमा स्पष्ट नहीं की।

बैठकों की श्रृंखला की योजना

ट्रंप ने कहा कि अलास्का बैठक एक बड़ी वार्ता प्रक्रिया का पहला कदम है। इसके बाद दूसरी बैठक में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की भी शामिल होंगे। अगर पहली बैठक सकारात्मक रहती है तो दूसरी वार्ता तुरंत आयोजित की जाएगी।

बाइडेन पर ट्रंप का हमला

ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन को इस युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर वह राष्ट्रपति होते तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। उन्होंने दावा किया कि बीते छह महीनों में उन्होंने पांच युद्ध रुकवाए हैं और ईरान की परमाणु क्षमता को नष्ट कर दिया है।

यूरोपीय देशों की भूमिका और सहमति

ट्रंप की चेतावनी जर्मनी में आयोजित एक उच्चस्तरीय वर्चुअल बैठक के बाद आई, जिसमें यूरोपीय नेता और जेलेंस्की शामिल थे। जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने कहा कि अगर अलास्का में रूस कोई निर्णायक फैसला नहीं लेता तो अमेरिका और यूरोपीय देश मिलकर मॉस्को पर दबाव बढ़ाएंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी साफ कहा कि यूक्रेन की सहमति के बिना उसकी जमीन रूस को नहीं दी जाएगी।

जंग की वर्तमान स्थिति

रूस ने अब तक यूक्रेन के लगभग 1,14,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, जो कुल क्षेत्रफल का करीब 19% है। इनमें क्रीमिया, डोनेट्स्क, लुहांस्क समेत कई इलाके शामिल हैं। पुतिन कई बार युद्धविराम की मांगों को ठुकरा चुके हैं। पश्चिमी देशों को आशंका है कि अगर रूस को यूक्रेनी जमीन पर कब्जा रखने दिया गया तो यह भविष्य में अन्य पड़ोसी देशों के लिए खतरा होगा।

यूक्रेन का रुख

राष्ट्रपति जेलेंस्की ने स्पष्ट किया है कि वह अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों से पीछे नहीं हटेंगे, क्योंकि यह असंवैधानिक होगा और रूस को आगे आक्रमण का बहाना मिल जाएगा।

भारत की नज़र

भारत भी इस बैठक पर करीबी नज़र रखे हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही रूस और यूक्रेन दोनों का दौरा कर शांति की पहल कर चुके हैं। भारत के दोनों देशों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, इसलिए वह इस वार्ता के संभावित नतीजों में अहम भूमिका निभा सकता है।

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