चीन की नई चाल में पाकिस्तान-बांग्लादेश भी शामिल, भारत के खिलाफ रणनीतिक त्रिकोण?
दिल्ली को चिंता है कि भविष्य में त्रिपक्षीय बैठक का स्वरूप केवल व्यापार और संबंधित मुद्दों तक सीमित न रहकर अधिक सामरिक महत्व के क्षेत्रों तक विस्तारित हो सकता है।;
चीन के कुनमिंग शहर में इस महीने की शुरुआत में चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हुई त्रिपक्षीय बैठक ने नई दिल्ली में कूटनीतिक हलकों में चिंता पैदा कर दी है। भारत के इन तीनों पड़ोसी देशों के साथ इस समय रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं।यह बैठक उस समय हुई जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वॉशिंगटन में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर के सम्मान में लंच आयोजित किया। जबकि भारत ने उन्हें अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले का मास्टरमाइंड करार देकर वैश्विक मंचों पर अलग-थलग करने की कोशिश की है।
बैठक पर भ्रम और विरोधाभास
जहां बांग्लादेश ने इस बैठक को अनौपचारिक बताया वहीं पाकिस्तान ने इसे तीनों देशों के बीच औपचारिक त्रिपक्षीय व्यवस्था की शुरुआत करार दिया। इस बैठक में व्यापार, कृषि, समुद्री सहयोग, संस्कृति और शिक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। लेकिन नई दिल्ली को आशंका है कि भविष्य में यह सहयोग रणनीतिक क्षेत्रों में भी प्रवेश कर सकता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम अपने पड़ोस में होने वाली घटनाओं पर लगातार नजर रखते हैं, खासकर वे जो हमारे हित और सुरक्षा से जुड़ी हैं।
भारत के लिए चिंताजनक संकेत
विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक ईरान-इज़राइल युद्ध के चलते होरमुज जलडमरूमध्य में संभावित तेल आपूर्ति संकट की पृष्ठभूमि में हुई हो सकती है। चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश खाड़ी देशों से तेल-गैस पर अत्यधिक निर्भर हैं। लेकिन भारत को चिंता इस बात की है कि इन तीनों देशों के साथ उसके रिश्तों में हालिया तनाव के कारण यह गठबंधन भारत विरोधी रणनीतिक धुरी का रूप न ले ले।
बांग्लादेश के विदेश नीति सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा कि यह बैठक किसी तीसरे देश (जैसे भारत) के खिलाफ गठबंधन बनाने के उद्देश्य से नहीं हुई थी।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट
भारत और बांग्लादेश के संबंधों में भारी गिरावट अगस्त 2024 में आई, जब प्रधानमंत्री शेख हसीना को छात्र आंदोलन के बाद सत्ता से हटाकर देश से बाहर कर दिया गया। फिलहाल हसीना भारत में रह रही हैं। उनके समय में भारत-बांग्लादेश संबंधों ने अभूतपूर्व स्थिरता और सहयोग देखा था। उन्होंने भारत विरोधी ताकतों को हाशिए पर डाल दिया था, जिससे पूर्वोत्तर भारत में स्थिरता आई।लेकिन हसीना के निष्कासन के बाद पाकिस्तान ने बांग्लादेश में फिर से अपनी उपस्थिति मजबूत करनी शुरू कर दी है। पहली बार 1971 के बाद पाकिस्तानी जहाज़ बांग्लादेशी बंदरगाहों पर पहुंचे हैं और दोनों देशों के बीच सैन्य, राजनीतिक और खुफिया सहयोग में तेजी आई है।
ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि यह त्रिपक्षीय सहयोग कोई नई पहल नहीं, बल्कि 1960 के दशक की उस रणनीति की पुनरावृत्ति है जब चीन और पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के माध्यम से भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों में अशांति फैलाने की कोशिश की थी। मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में उग्रवाद को चीन ने वैचारिक समर्थन दिया था।हालांकि अब चीन की प्राथमिकता आर्थिक एकीकरण है, लेकिन उसका रणनीतिक लक्ष्य एशिया की अग्रणी शक्ति बनने का ही है।
आगे की राह
वर्तमान हालात में बांग्लादेश में 2026 की शुरुआत में प्रस्तावित संसदीय चुनाव को स्थायित्व की कुंजी माना जा रहा है। एक चुनी हुई सरकार जो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की नीति अपनाए, भारत-बांग्लादेश संबंधों को फिर से पटरी पर ला सकती है।भारतीय संसद की विदेश मामलों की समिति ने भी बांग्लादेश के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने की सिफारिश की है ताकि सभी मुद्दों पर व्यापक चर्चा की जा सके।
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश का कुनमिंग में त्रिपक्षीय मिलन एक सामान्य सहयोग मंच भी हो सकता है, लेकिन भारत की कूटनीतिक चिंता इस बात से है कि यह बैठक धीरे-धीरे रणनीतिक गठजोड़ का रूप न ले ले। दक्षिण एशिया में स्थिरता के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच भरोसे और संवाद की बहाली नितांत आवश्यक है।