जब दोस्त बन गए दुश्मन, ईरान-इज़राइल की अधूरी दोस्ती

1948 में इज़राइल को मान्यता देने वाला ईरान, 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद उसका कट्टर दुश्मन बन गया। अब दोनों देश युद्ध के मुहाने पर हैं।;

Update: 2025-06-20 11:17 GMT

Iran Vs Israel War:  ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष कब थमेगा। इसके बारे में सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है। इज़राइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू खुलेआम कह रहे हैं कि खामेनई के खात्मे तक बात नहीं बनने वाली तो खामेनेई भी अपने तीखे बोल से पीछे नहीं हट रहे, वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान को हर रोज कभी नरम तो कभी गरम अंदाज में बता रहे हैं, गलती आपकी है, संभल जाओ, पीछे हट जाओ और एक बड़े संकट से ना सिर्फ मध्य पूर्व का इलाका बल्कि दुनिया भी राहत की सांस ले।

ऐसे में एक सवाल आपके दिमाग में कौंध रहा होगा कि ईरान और इज़राइल एक दूसरे के पड़ोसी मुल्क नहीं है तो दुश्मनी इस हद तक क्यों है। यह सवाल बेहद दिलचस्प है जिसका जवाब इतिहास के पन्नों से निकाल कर समझा जा सकता है।

कहानी शुरू होती है 1948 से जब इज़राइल एक देश बना। इज़राइल के सामने सबसे बड़ा संकट मान्यता का था। मध्य पूर्व के मुस्लिम देश समेत दुनिया के ज्यादातर देशों ने उसे मान्यता देने से मना कर दिया। लेकिन तुर्की और ईरान ही वो दो मुस्लिम देश था जिन्होंने इजराइल को मान्यता दी। इस तरह ईरान और इज़राइल दोस्त बने। ईरान को इजराइल हथियार और तकनीक देता था और तो बदले में ईरान उसे तेल। दोनों के बीच सम्बंध इतने प्रगाढ़ हुए कि इज़राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान को खुफिया काम को अंजाम देने की ट्रेनिंग भी दी। 1948 से लेकर 1979 तक ईरान में पहलवी वंश के शाह का शासन था। लेकिन साल 1979 में ईरान में बहुत बड़ा बदलाव हुआ। ईरान में यह बदलाव इजराइल के लिए मुश्किल बढ़ाने वाला साबित हुआ।


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1979 में अयातुल्लाह खोमैनी की क्रांति ने पूरी तस्वीर बदल दी। खोमैनी ने पहलवी वंश के शाह को उखाड़ फेंका और इस्लामी गणतंत्र लागू किया। खोमैनी ने खुद को रक्षक के तौर पर पेश किया। इसके साथ ही ईरान के सहयोगी रहे अमेरिका और इजराइल के साम्राज्यवाद को नकारने की योजना को अंजाम देना शुरू किया.

हालात बिगड़ने लगे और इज़राइल ने अयातुल्लाह खोमैनी सरकार से सम्बंध खत्म कर दिए। ईरान ने इज़राइल के नागरिकों के पासपोर्ट को वैधानिक मान्यता देना बंद कर दिया। तेहरान में इजराइली दूतावास को फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गेनाइजेशन के हवाले कर दिया। ईरान आक्रामक तरीके से अपने एजेंडे को लागू करने में जुट गया।

80 के दशक में पहला आतंकी गुट इस्लामिक जिहाद ने फिलिस्तीन की मांग को लेकर इज़राइल को परेशान करना शुरू किया। ईरान पीछे से उसे समर्थन दे रहा था। यही वो दौर था जब ईरान ने हिजबुल्लाह को तैयार किया जिसने इज़राइल को निशाना बनाना शुरू कर दिया। जैसे जैसे इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष बढ़ा उसमें यमन के हुती विद्रोही भी कूद पड़े। इज़राइल का कहना है कि इन दोनों संगठनों को ईरान की सरपरस्ती है लिहाजा मूल जड़ को खत्म करना जरूरी है। इस वजह से खामनेई के पीछे बेंजामिन नेतन्याहू पड़े हैं।

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