श्रीलंका में LTTE को याद करने की दी इजाज़त, जेवीपी की लन्दन में तमिलों से मुलाकात
पहले कभी नहीं हुए यादों के कार्यक्रम और लंदन में हुई एक नई मीटिंग, प्रेसिडेंट अनुरा दिसानायके की सरकार के तहत बदलते पॉलिटिकल माहौल को दिखाती है।
By : MR Narayan Swamy
Update: 2025-11-28 11:57 GMT
Change In Srilankan Government Approach Towards Tamilians : श्रीलंका की राजनीति पिछले कई दशकों से तमिल–सिंहली संघर्ष की छाया में रही है। लेकिन इस सप्ताह दो ऐसे घटनाक्रम हुए जिन्होंने संकेत दिया कि शायद देश एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है।
पहला - तमिलों को देश के उत्तर और पूर्व में अपने मारे गए परिजनों और एलटीटीई लड़ाकों की याद में बिना किसी सरकारी बाधा के विशाल सभाएँ आयोजित करने दी गईं।
और दूसरा - सत्ताधारी दल जेवीपी के शीर्ष नेता तिल्विन सिल्वा ने लंदन में तमिल डायस्पोरा से पहली बार संगठित, औपचारिक तरीके से मुलाकात की, जो इतिहास में बेहद दुर्लभ है।
इन दोनों घटनाओं का मेल यह दिखाता है कि श्रीलंका का राजनीतिक वातावरण शायद पहले जैसा कठोर नहीं रहा, और सरकार अब तमिल समुदाय के साथ रिश्तों को लेकर ज्यादा संवेदनशील हो रही है।
1. ‘मावीयरर नाल’: तमिल इलाकों में अभूतपूर्व जुटान, सरकारी हस्तक्षेप नहीं
कौन-सी तारीख, क्या महत्व?
27 नवंबर को तमिल समुदाय ‘मावीयरर नाल’ मनाता है , यानी वीर शहीद दिवस, जिसे एलटीटीई ने अपने लड़ाकों की याद में शुरू किया था।
यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1982 में इसी दिन लेफ्टिनेंट शंकर पहला एलटीटीई लड़ाका, लड़ाई में घायल होने के बाद मारा गया था।
इसके पहले दिन, 26 नवंबर, एलटीटीई प्रमुख वेलुपिल्लै प्रभाकरन का जन्मदिन आता है। 1954 में जन्मे प्रभाकरन की 2009 में मौत के साथ ही तमिल स्वतंत्र राज्य की लड़ाई लगभग समाप्त हो गई।
2. बारिश, ठंड और सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बीच भी भारी भीड़
गुरुवार (27 नवंबर) को दसियों हजार तमिल जाफना, किलिनोच्ची, मुल्लाइतिवु, बट्टीकलोआ और त्रिंकोमाली जैसे तमिल-बहुल इलाकों की विभिन्न सभाओं में उमड़ पड़े।
बारिश और ठंड
कड़ी सैन्य तैनाती
दशकों का डर
इन सबके बावजूद लोगों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बहुत ज्यादा थी।
पहले, ऐसे कार्यक्रमों पर सेना छापे मारती थी, पोस्टर हटाती थी, गिरफ्तारियाँ करती थी।
लेकिन इस बार - न सेना ने कुछ कहा, न पुलिस ने कार्यक्रम रोका।यह बदलाव लोगों को सबसे ज्यादा महसूस हुआ।
3. माहौल बिल्कुल शांत-फूल, मौन और गीत
कमरे, हॉल, सड़कें, गलियाँ - हर जगह एक संतप्त, गंभीर और भावुक माहौल था।
‘थायगा कनावुदान’ गीत लगातार बजता रहा
लोग अपने शहीद परिजनों की तस्वीरों पर फूल चढ़ाते रहे
सभाओं में एक मिनट का मौन रखा गया
महिलाएँ, बच्चे और बुज़ुर्ग बड़ी संख्या में पहुंचे
सबसे खास बात:
कहीं भी एलटीटीई का झंडा या युद्ध वर्दी नहीं दिखाई दी।
नारेबाज़ी भी नहीं हुई।
यह स्पष्ट दिखा कि यह कार्यक्रम पूरी तरह स्मृति और व्यक्तिगत दर्द पर केंद्रित था, राजनीतिक आक्रामकता पर नहीं।
4. पीले-लाल झंडों से भरा पूरा इलाका—लेकिन कोई उग्रता नहीं
जाफना, मुल्लाइतिवु और किलिनोच्ची जैसे शहरों की गलियों में लाल-पीले रंग के झंडे और सजावट स्पष्ट दिखाई दी। ये रंग एलटीटीई के झंडे से जुड़े हैं, लेकिन लोगों ने सावधानी से कोई आधिकारिक प्रतीक नहीं दिखाया।
कार्यक्रम:
कुछ विशाल मैदानों में
कुछ सड़क के मोड़ों पर
कुछ सभागारों में
और कुछ घरों के बड़े आंगनों में
आयोजित हुए।
5. यह सब होने क्यों दिया गया?—सरकार की नई रणनीति
Tamil sources बताते हैं कि भारी जमा भीड़ का मतलब यह नहीं कि लोग आज भी एलटीटीई को समर्थन देते हैं।
ज्यादातर लोग अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए आए थे।
सरकार ने यह नरमी क्यों दिखाई?
इसके कई कारण हैं:
1. राष्ट्रपति अनुरा डिसानायके और JVP की नई राजनीतिक लाइन
JVP–नेतृत्व वाली सरकार जातीय तनाव कम करने की कोशिश कर रही है।
2024 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने:
तमिल क्षेत्रों में दमनकारी नीतियाँ कम की
सुरक्षा बलों को कहा कि लोग अगर श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो हस्तक्षेप न करें
2. तमिल क्षेत्रों से 7 संसदीय सीटें जीतना
सरकार जानती है कि तमिल भावना की अनदेखी करना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है।
3. एलटीटीई का आज कोई संगठित नेटवर्क नहीं
2009 के बाद:
एलटीटीई की पूरी नेतृत्व संरचना नष्ट हुई
लगभग 12,000 पूर्व लड़ाकों ने आत्मसमर्पण किया
सब सरकारी पुनर्वास कार्यक्रम में शामिल किए गए
इस कारण सरकार को यह भरोसा है कि यह सिर्फ पारिवारिक शोक-स्मरण है, किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं।
6. प्रभाकरन की 71वीं जन्मतिथि छोटा लेकिन भावनात्मक आयोजन
बुधवार को 150 से ज्यादा लोग जाफना के उत्तरी सिरे पर स्थित वेल्वेट्टितुराई, प्रभाकरन के गृहनगर, पहुंचे।
उन्होंने:
केक काटा
पटाखे फोड़े
यह कार्यक्रम छोटा था लेकिन यह दर्शाता है कि तमिल समुदाय में प्रभाकरन की स्मृति अब भी गहरी है।
7. लंदन में JVP–तमिल डायस्पोरा की ‘आइस-ब्रेकिंग’ बैठक
श्रीलंका में चल रहे कार्यक्रमों के बीच, लंदन में एक बेहद महत्वपूर्ण राजनीतिक पहल हुई। JVP के शक्तिशाली महासचिव तिल्विन सिल्वा ने पहली बार तमिल समुदाय के वरिष्ठ नेताओं से सीधी बातचीत की।
यह बैठक ऐतिहासिक क्यों है?
तमिल डायस्पोरा पारंपरिक रूप से सिंहली-बहुल पार्टियों पर अविश्वास रखता रहा है
JVP को तमिल नजरिए से मार्क्सवादी-सिंहली संगठन माना जाता रहा
दोनों पक्षों के बीच वर्षों से दूरी रही
लेकिन इस बार सिल्वा ने स्पष्ट संदेश दिया -
“हम जातीय आधार पर राजनीति से दूर जाना चाहते हैं।”
8. बैठक में क्या-क्या मुद्दे उठे?
तमिल प्रतिनिधिमंडल ने सिल्वा के सामने तीन महत्वपूर्ण चिंताएँ रखीं:
(1) सिंहली चरमपंथ का बढ़ना
कुछ समूहों द्वारा तमिलों के प्रति जारी कट्टरता पर चिंता जताई।
(2) जल्द से जल्द प्रांतीय चुनाव की मांग
तमिलों का मानना है कि चुनी हुई स्थानीय सरकारें ही उनकी राजनीतिक आवाज़ को मजबूत करती हैं।
(3) पुरातत्व विभाग का तमिल क्षेत्रों में हस्तक्षेप
तमिल नेताओं ने आरोप लगाया कि अर्कियोलॉजी विभाग “सिंहलीकरण” के नाम पर तमिल क्षेत्रों में मनमानी करता है।
सिल्वा ने सारी बातें बिना रोक-टोक सुनीं।
एक तमिल नेता ने कहा:
“लंबे समय बाद किसी सिंहली नेता ने हमारी बात बिना तर्क दिए, बिना हमें चुप कराए सुनी।”
9. आगे क्या?-तमिल डायस्पोरा की सावधानी
लंदन स्थित तमिल समुदाय का एक सदस्य कहता है:
“कई बार सिंहली नेता वादे करके पीछे हट जाते हैं, खासकर जब बौद्ध भिक्षु दबाव डालते हैं।
यह देखना होगा कि JVP क्या अलग साबित होगा।”
उनके मुताबिक, असली परीक्षा श्रीलंका की जमीन पर होगी—
क्या सरकार वादों को लागू करती है या यह सिर्फ राजनीतिक संकेत है?
10. क्या यह श्रीलंका के नए युग की शुरुआत है?
दोनों घटनाएँ
• तमिल इलाकों में बिना रोक के विशाल श्रद्धांजलि
• और JVP–तमिल डायस्पोरा की पहली सीधी, सम्मानजनक बातचीत
यह दिखाती हैं कि श्रीलंका में जातीय तनाव कम करने की दिशा में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।
लेकिन तमिल समुदाय और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि “यह सिर्फ शुरुआत है। असली सवाल यह है कि जमीन पर क्या बदलता है।”
अब समय बताएगा कि क्या ये कदम स्थायी शांति, बेहतर समझ और तमिल–सिंहली रिश्तों में नई शुरुआत का मार्ग खोलते हैं या यह सिर्फ एक क्षणिक राजनीतिक नरमी है।