इतिहास उस शहर का जहां जुटे हैं दुनिया के दिग्गज, रूस का प्रयाराज है कजान

रूस के कजान शहर में 16 ब्रिक्स सम्मेलन हो रहा है। इस सम्मलेन से क्या कुछ निकल कर आएगा उस पर हर किसी की नजर है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-23 06:42 GMT

Kazan City BRICS Summit: 16वां ब्रिक्स सम्मेलन रूस के कजान शहर में हो रहा है। यह सम्मेलन इस वजह से खास है क्योंकि भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी मिलने वाले हैं। ब्रिक्स सम्मेलन से इतर दोनों के बीच द्विपक्षीय वार्ता होगी। इन सबके बीच राजनीति से हटकर आपको रूस के कजान शहर के बारे में बताएंगे। यह शहर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की तरह है। जैसे प्रयागराज में दो बड़ी नदियां गंगा और यमुना का संगम होता है, ठीक वैसे ही रूस का कजान भी है। कजान के महत्व को आप ऐसे भी समझ सकते हैं, 2009 में इसे तीसरी राजधानी के रूप में दर्जा मिला। मॉस्को, रूस की प्रशासनिक, सेंट पीटर्सबर्ग सांस्कृतिक राजधानी है।

गंगा की तरह रूसियों के लिए वोल्गा
अगर आप थोड़ा और इतिहास में जाएं तो भारतीय लेखक ने गंगा से वोल्गा तक एक किताब लिखी थी। उस किताब में गंगा की तरह वोल्गा के महत्व को बताया गया है। जिस तरह से गंगा नदी के अलावा जीवनशैली, अपनी घाटी में सभ्यताओं तो पाला पोषा है ठीक वैसे ही वोल्गा के किनाके इंडो इरानी लोगों ने अपनी सभ्यता को पाला पोसा। वोल्गा को रूस की गंगा कहा जाता है और कजान शहर का रिश्ता इस नदी से है।

वोल्गा और कजांका के संगम पर कजान
कजान शहर की मॉस्को से दूरी करीब 900 किमी है। यह शहर वोल्गा और कजांका नदी के संगम पर बसा हुआ है। रूस के तातारस्तान राज्य की राजधानी है और इस शहर की आबादी करीब 12 लाख है। रूसियों के बात तातार बड़ा जातीय समूह है। अगर रूसी आबादी की बात करें तो बहुसंख्यक ऑर्थोडॉक्स चर्च की व्यवस्था मानते हैं जबकि तातार मुख्य तौर मुस्लिम तुर्क जाति का समूह है। इनकी अपनी भाषा, संस्कृति और पहचान है। 

जला दी गई थी मस्जिद
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कजान में करीब 48 फीसद और करीब 47 फीसद तातार हैं। इस शहर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां पर आपको यूरोप और एशिया दोनों महाद्वीपों की झलक मिल जाएगी। कजान में एक बड़ी मस्जिद जिसे कुल शरीफ कहा जाता है। इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। कहानी 16वीं सदी से पहले की है। यह शहर कजान खानात की राजधानी हुआ करता था। 16वीं सदी में मॉस्को के ग्रैंड प्रिंस और जारशाही के प्रणेता इवान द टैरिबल ने इस मस्जिद पर कब्जा कर लिया। इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा के बाद कजान खानात का अस्तित्व खत्म हुआ और यह रूस का हिस्सा बन गया। खास बात ये कि मस्जिद जला दी गई थी। हालांकि 2005 में यूएई की मदद से कुल शरीफ मस्जिद का फिर से निर्माण कराया गया। 

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