गुप्त कैमरे और बांस की छत, म्यांमार में जंगल से लोकतंत्र का प्रसारण

फरवरी 2021में तख्तापलट के बाद म्यांमार के पत्रकारों ने जंगलों में छिपकर निष्पक्ष पत्रकारिता को जिंदा रखा, निर्वासन में न्यूज़रूम बनाकर सच्चाई प्रसारित की।;

Update: 2025-07-17 02:01 GMT
मध्य म्यांमार के यांगून क्षेत्र में 2021 के सैन्य तख्तापलट के विरोध में एक विरोध प्रदर्शन। फोटो: आर्काइव

जंगल में लहराते कीट, बांस की झोपड़ी में कैमरे, और संकल्प से भरे पत्रकार।  ये दृश्य म्यांमार के उन भूमिगत न्यूज़रूम का है जो सैन्य जुंटा की पहुंच से दूर आज भी लोकतंत्र की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। 2021 के फरवरी में सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार में जब लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सैन्य शासन कायम किया गया, तब स्वतंत्र मीडिया सबसे पहले निशाने पर आया। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) की सरकार के गिरने के बाद सेना ने 15 मीडिया संगठनों के लाइसेंस रद्द कर दिए। नतीजतन, पत्रकारों को या तो जेल जाना पड़ा या निर्वासन में काम करना पड़ा।

अंधेरे में उजाले की खोज

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई) पर इंडिपेंडेंट प्रेस काउंसिल म्यांमार (IPCM) ने खुलासा किया कि बीते चार वर्षों में 64 न्यूज़रूम को निर्वासन में जाकर काम करना पड़ा है। खुद IPCM को भी दिसंबर 2023 में थाईलैंड में निर्वासित पत्रकारों ने स्थापित किया। मीडिया निगरानी संस्थाओं के अनुसार, अब तक 200 से अधिक पत्रकार गिरफ्तार किए जा चुके हैं और कम से कम सात को जान गंवानी पड़ी है। म्यांमार इस समय चीन और इज़राइल के साथ उन शीर्ष तीन देशों में शामिल है जहां सबसे अधिक पत्रकार जेल में हैं (CPJ रिपोर्ट)। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में म्यांमार 180 देशों में से 169वें स्थान पर है।

 जंगल से उठती खबरें

इन दमन के बावजूद, म्यांमार के पत्रकारों की जिजीविषा और प्रतिबद्धता ने प्रेस को जीवित रखा है। "तानाशाही से जूझती म्यांमार की मीडिया निर्वासन में और भी अधिक विविध और सशक्त बनकर उभरी है," इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप की रिपोर्ट में बताया गया। मिज़ीमा न्यूज़ के संस्थापक और प्रधान संपादक सो मायिंत की कहानी इसका सबसे सशक्त उदाहरण है। उन्होंने और उनकी टीम ने 2021 में करेन राज्य के घने जंगलों में एक अस्थायी न्यूज़ स्टूडियो स्थापित किया। करेन नेशनल यूनियन (KNU) के नियंत्रित क्षेत्र में, यह स्टूडियो नीली प्लास्टिक शीट से ढके बांस के ढांचे में बनाया गया था। उनके पास दो कैमरे, तीन डेस्कटॉप, तीन लैपटॉप, लाइव वीडियो एन्कोडर और मिक्सर जैसी सीमित तकनीक थी।

किसी फिल्म की शूटिंग के बहाने उन्होंने नकली पहचान पत्र और कोविड पास बनवाकर यात्रा की। एक समुद्री झींगा ट्रक में छिपाकर जरूरी उपकरण ले जाए गए। करेन नेशनल यूनियन की मदद से वे Hpa-an से थाई सीमा के जंगलों तक पहुंचे। वहां कीचड़, बारिश, कीटों और बिजली की अनुपलब्धता के बीच भी उन्होंने रिपोर्टिंग जारी रखी।

 सैटेलाइट से सच्चाई तक

जंगलों में एक छोटे जेनरेटर से बिजली और थाईलैंड के सिम कार्ड्स से इंटरनेट चलाया गया। जब नेटवर्क नहीं मिलता, तब वे Explorer BGAN सैटेलाइट टर्मिनल का इस्तेमाल करते। मिज़ीमा टीवी अब सुबह 6 बजे से देर रात तक प्रसारण करता है और एक से अधिक मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम करता है ताकि जनता तक खबरें ज़रूर पहुंचें।

 एक जीवन, दो निर्वासन

सो मायिंत और भारत की मानवाधिकार अधिवक्ता नंदिता हक्सर ने मिज़ीमा की इस यात्रा पर पुस्तक लिखी Resisting Military Rule in Burma (1988-2024); Story of Mizzima Media: Born in Exile, Banned in Myanmar। मायिंत की खुद की कहानी भी कम नाटकीय नहीं है। 1990 में उन्होंने लोकतंत्र की आवाज़ उठाने के लिए एक फर्जी बम से थाई एयरवेज़ की उड़ान को कोलकाता डायवर्ट कराया था। इसी भारत में उन्होंने 1998 में मिज़ीमा की नींव रखी  एक लैपटॉप और पब्लिक फोन बूथ के सहारे।

ट्रकों में न्यूज़रूम, गायों के साथ क्रॉसिंग

थान ल्विन खेत नामक डिजिटल पोर्टल ने भी म्यांमार से थाईलैंड तक अपने कैमरे और लैपटॉप सीफूड ट्रकों और मवेशी व्यापारियों की मदद से भेजे। आज उनके दस पत्रकार थाईलैंड में और पांच अब भी म्यांमार के भीतर गुप्त रूप से काम कर रहे हैं।

 'लोकतंत्र की आवाज़ नहीं रुकी'

करीब 60 मीडिया संस्थान अब म्यांमार से बाहर काम कर रहे हैं, जिनके साथ 1,500 से अधिक पत्रकार जुड़े हैं। इनमें से कई की खबरों का स्रोत सोशल मीडिया, अंडरकवर रिपोर्टर और नागरिक पत्रकार हैं। जंगलों में ही मिज़ीमा ने मीडिया ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी स्थापित किया है ताकि नई पीढ़ी के पत्रकार तैयार हो सकें।

'यह सिर्फ पत्रकारिता नहीं प्रतिरोध है'

म्यांमार में पत्रकारों का यह साहस, दृढ़ता और धैर्य सत्ता के खिलाफ एक बोलती हुई बगावत है। यह लोकतंत्र के लिए लड़ाई का मैदान है। जहां कीचड़ में फंसी टांगें, मच्छरों की भनभनाहट, और सैटेलाइट इंटरनेट की मंद बूँदें, मिलकर एक पूरी पीढ़ी की आज़ादी की भूख का प्रतीक बन जाती हैं।क्योंकि जब जंगल से भी खबरें आती हैं, तब सन्नाटा बोलने लगता है।

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