क्यों भड़का नेपाल? स्थानीय पत्रकारों ने बताए जमीनी हालात
नेपाल में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से उपजे जेन-ज़ी आंदोलन ने ओली सरकार को गिरा दिया। हिंसा, आगजनी और सेना की तैनाती ने हालात गंभीर कर दिए।;
नेपाल में पिछले दिनों जिस राजनीतिक भूचाल ने जन्म लिया, उसने पूरे देश को हिला दिया है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ युवाओं के नेतृत्व वाले व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफ़ा देना पड़ा। संसद से लेकर राज्य संस्थानों तक को आग के हवाले किया गया, पुलिस थानों पर हमले हुए और यहां तक कि राष्ट्रपति कार्यालय भी प्रदर्शनकारियों के गुस्से से अछूता नहीं रहा।
द फेडरल ने पत्रकार प्रभात खनाल और अंशु खनाल से बातचीत की, जिन्होंने जमीनी हालात, जेन-ज़ी आंदोलन की भूमिका और नेपाल के भविष्य को लेकर अपनी राय रखी।
जमीनी हालात
ओली के इस्तीफ़े से पहले प्रदर्शनकारियों ने सिंगदरबार (मुख्य प्रशासनिक परिसर), सुप्रीम कोर्ट और लोक अभियोजक कार्यालय सहित बड़े सरकारी भवनों पर धावा बोला। काठमांडू, पोखरा, धनगढी, इटहरी और बिराटनगर हिंसा की आग में झुलसते रहे। यहां तक कि त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में भी प्रवेश की कोशिश हुई, जिसे सेना और सुरक्षा बलों ने रोक दिया। कई नेताओं को सुरक्षा कारणों से सेना के ठिकानों पर ले जाया गया।प्रदर्शनकारियों को ओली के इस्तीफ़े से आंशिक जीत महसूस हो रही है और स्थिति कुछ हद तक नियंत्रण में दिख रही है।
अस्पताल और आपात सेवाएं
अस्पताल खुले हैं, लेकिन संसाधन बेहद सीमित हैं। कर्फ्यू की वजह से कई घायल प्रदर्शनकारी इलाज तक नहीं पा रहे। सिविल सर्विस हॉस्पिटल और अन्य अस्पतालों में दवाइयाँ और सुविधाएँ कम पड़ने लगी हैं। इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क चालू हैं, जिससे समन्वय में आसानी हो रही है।
सेना बनाम पुलिस
सेना को पहले ही तैनात कर दिया गया है। कई इलाकों में सेना ने कमान संभाल ली है और लोग पुलिस की तुलना में सेना पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी सेना की शांत और संयमित भूमिका को सराहा जा रहा है। वहीं पुलिस और एपीएफ (Armed Police Force) पर भारी आलोचना हो रही है। सोमवार को पुलिस फायरिंग में 19 लोग और मंगलवार को कालिमाटी में दो और लोग मारे गए। गृहमंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया। गुस्साए युवाओं ने पुलिस थानों को जलाना और हथियार कब्जे में लेना शुरू कर दिया है।
मानवाधिकार उल्लंघन
प्रदर्शन के दौरान कई मानवाधिकार उल्लंघन सामने आए। पुलिस की गोली से एक 17 वर्षीय छात्र की मौत हुई, जिससे संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता जताई। सुरक्षा बलों की लापरवाही ने स्थिति को और बिगाड़ दिया।
युवाओं और आम जनता का समर्थन
प्रदर्शन पूरी तरह युवाओं के नेतृत्व में है। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने खुलकर आंदोलन का समर्थन किया है। राष्ट्रिय स्वतन्त्र पार्टी ने भी एकजुटता जताई। फिल्मी हस्तियों, गायक, निर्देशक सभी प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हैं। "वे़क अप जेन-ज़ी" और "इनफ इज़ इनफ" जैसे अभियान युवाओं को जोड़ रहे हैं। गाँव-गाँव से लोग जुड़ रहे हैं। माता-पिता तक यह सवाल पूछ रहे हैं कि निहत्थे छात्रों पर गोलियाँ और आंसू गैस क्यों छोड़ी गई?
पत्रकारों पर खतरा
पत्रकारों की स्थिति बेहद कठिन है। एक फोटो जर्नलिस्ट को गोली लगी और वह ICU में हैं। रिपोर्टर्स मौत और हिंसा के दृश्य देखकर आहत हैं लेकिन रिपोर्टिंग जारी रखे हुए हैं। मीडिया संस्थान भी निशाने पर हैं कान्तिपुर टीवी पर पथराव हुआ और अन्नपूर्ण पोस्ट पर हमले हुए।
बालेंद्र शाह क्यों लोकप्रिय हैं?
बालेंद्र शाह, जो रैपर से नेता बने, युवाओं के लिए उम्मीद का चेहरा हैं। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए ओली जैसे नेताओं पर खुला प्रहार किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर आवाज़ उठाई। काठमांडू विकास को लेकर उनकी साफ़गोई और बेबाकी ने युवाओं को आकर्षित किया है। कई लोग उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री मानने लगे हैं।
असली वजह क्या है?
सोशल मीडिया बैन केवल चिंगारी था। असली समस्या भ्रष्टाचार है। 2006 से ही जनता की उम्मीदें टूटीं और 2015 के संविधान के बाद भी हालात नहीं सुधरे। बेरोजगारी इतनी है कि रोज़ाना 1000–1500 युवा विदेश काम करने जाते हैं। आज देश की 60–70% अर्थव्यवस्था रेमिटेंस पर टिकी है, लेकिन आम लोगों का जीवन बेहतर नहीं हुआ।
आगे का रास्ता
आंदोलन विकेंद्रीकृत और स्वतःस्फूर्त है, इसलिए किसी एक नेता से संवाद संभव नहीं। सेना प्रमुख बातचीत की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल जनता चुनावों की गारंटी और भ्रष्टाचार पर जवाबदेही चाहती है।नेपाल का भविष्य इस पर टिका है कि क्या राजनीतिक वर्ग और सेना इन मांगों को बिना और खून-खराबे के पूरा कर पाएंगे। यह आंदोलन केवल "जेन-ज़ी" का नहीं रहा, बल्कि पूरे नेपाल का जनआक्रोश बन गया है।