सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान का 4 पॉइंट प्लान, जानें क्यों नहीं चलेगी ये चाल?
India Pakistan Dispute: पाकिस्तान की सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनी कोशिशें, चाहे वो ICJ हो, वर्ल्ड बैंक हो या UNSC, कानूनी और कूटनीतिक रूप से कमजोर हैं. भारत ने अपनी शर्तें और सीमाएं पहले ही तय कर दी हैं.;
Indus Water Treaty: भारत द्वारा सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से रोकने के फैसले से परेशान पाकिस्तान अब अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहा है. बता दें कि भारत ने यह कदम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उठाया था, जिसमें पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादियों ने कई आम नागरिकों की जान ले ली थी. भारत ने साफ कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह और स्पष्ट रूप से बंद नहीं करता, तब तक यह संधि लागू नहीं की जाएगी.
पाकिस्तान की धमकी
पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को "युद्ध का कारण" बताने की कोशिश की है और इसे गंभीर रूप से लिया है. पाकिस्तान के कानून और न्याय राज्य मंत्री अकील मलिक ने कहा कि इस मुद्दे पर उनके पास 4 संभावित कानूनी रास्ते हैं:-
1. वर्ल्ड बैंक में शिकायत दर्ज कराना
(वर्ल्ड बैंक इस संधि का मध्यस्थ रहा है. लेकिन उसका अधिकार सीमित है)
2. स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) में मामला ले जाना
3. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में भारत पर संधि तोड़ने का आरोप लगाना
4. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में मामला उठाना
क्या है सिंधु जल संधि?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि हुई थी, जिसमें सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियां सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब के पानी के उपयोग को लेकर समझौता हुआ था. भारत को ऊपरी इलाकों का मालिकाना हक होने के बावजूद पाकिस्तान को झेलम, चिनाब और सिंधु की अधिकतर जलधारा इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया.
पाकिस्तान के दावे क्यों नहीं चल पाएंगे?
ICJ में मामला क्यों नहीं चल सकता?
भारत ने 2019 में ICJ की न्यायिक प्रक्रिया को कुछ शर्तों के साथ स्वीकार किया था. इन शर्तों में लिखा गया है कि कॉमनवेल्थ देशों के बीच के विवादों पर ICJ की कोई शक्ति नहीं होगी. क्योंकि, पाकिस्तान भी कॉमनवेल्थ का सदस्य है, इसलिए वह भारत के खिलाफ ICJ में केस नहीं कर सकता. इसके अलावा भारत ने यह भी कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्ध, आत्मरक्षा या आतंकवाद से जुड़े मामलों पर ICJ का कोई अधिकार नहीं होगा. इसीलिए पाकिस्तान की ये कोशिश नाकाम मानी जा रही है.
स्थायी मध्यस्थता न्यायालय
इस अदालत में भी दोनों देशों की सहमति जरूरी होती है और भारत ने ऐसी सहमति नहीं दी है. इसलिए यह रास्ता भी बंद है.
क्या वर्ल्ड बैंक मदद कर सकता है?
वर्ल्ड बैंक का रोल सिर्फ मध्यस्थ (mediator) के रूप में है. वह न तो इस संधि का रक्षक है, न ही उसे लागू करने का कोई अधिकार रखता है. 1960 में भी इसने सिर्फ संधि कराने में मदद की थी. आज भी यह केवल सलाहकार भूमिका में रह सकता है. उसकी कोई सलाह बाध्यकारी (binding) नहीं होती.