Indo-US दोस्ती, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में सतर्क रहेगा भारत! जानें क्यों?

ट्रंप के साथ जल्द बैठक से भारत के लिए इस वर्ष के अंत में व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी करना आसान हो जाएगा और दो महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारों के बीच संतुलन बनाना आसान हो जाएगा.;

Update: 2025-01-29 17:10 GMT

US and India relationship: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सोमवार (27 जनवरी) को हुई टेलीफोनिक बातचीत ने ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत की घटती अहमियत को लेकर हो रही अटकलों को विराम दे दिया है. व्हाइट हाउस में अगले महीने मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली बैठक से यह धारणा और मजबूत हुई है कि भारत ट्रंप के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बना रहेगा. हालांकि, ट्रंप ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच अच्छे संबंध हैं और उन्होंने अपनी टेलीफोनिक बातचीत को "उपयोगी" बताया. लेकिन उन्होंने मोदी से अमेरिका से अधिक रक्षा उपकरण खरीदने का आग्रह करने से परहेज नहीं किया.

मोदी की अनुपस्थिति

यह ट्रंप के पुनर्निर्वाचन के बाद दोनों नेताओं के बीच दूसरी टेलीफोनिक बातचीत थी. पहली कॉल नवंबर में ट्रंप की जोरदार चुनावी जीत के तुरंत बाद हुई थी. जबकि दूसरी उनके उद्घाटन समारोह के बाद आई. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और कुछ अन्य वैश्विक नेताओं के विपरीत मोदी को ट्रंप के उद्घाटन समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस कार्यक्रम में भारत के प्रतिनिधि के रूप में मौजूद थे और उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की. दोनों ने द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई. हालांकि, इस आश्वासन के बावजूद कूटनीतिक हलकों में मोदी की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठाए गए. ताज़ा टेलीफोन कॉल और आगामी द्विपक्षीय बैठक की घोषणा ने इन संदेहों को कुछ हद तक दूर कर दिया है.

अनिश्चित चुनौतियां

हालांकि, इस संक्षिप्त बातचीत से कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए, जो भविष्य में विवादास्पद हो सकते हैं. हालांकि, शुरुआती बैठक से भारत और अमेरिका को एक-दूसरे की चिंताओं को जानने और आपसी लाभ के लिए सहयोग के संभावित क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी. ट्रंप से जल्द मुलाकात करने से भारत को इस साल के अंत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी करने में आसानी होगी और वह अपने दो महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारों के बीच संतुलन बनाए रख सकेगा.

भारत की जल्द बैठक की इच्छा

नई दिल्ली के विदेशी नीति प्रतिष्ठान में मोदी और ट्रंप के बीच जल्द बैठक की संभावना पर चर्चा हो रही थी. अब ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि मोदी अगले महीने व्हाइट हाउस में उनसे मुलाकात करेंगे और उनकी बातचीत को "उपयोगी" बताया. दोनों नेताओं ने निष्पक्ष व्यापार संबंध विकसित करने पर भी चर्चा की, जिससे संकेत मिलता है कि ट्रंप ऐसी व्यापार साझेदारी चाहते हैं, जिससे भारत को अनुचित लाभ न मिले. ट्रंप ने कहा कि मैंने उनके साथ लंबी बातचीत की. वह अगले महीने, संभवतः फरवरी में व्हाइट हाउस आ रहे हैं. हमारे भारत के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं. ट्रंप ने फ्लोरिडा से जॉइंट बेस एंड्रयूज जाते समय एयर फोर्स वन में संवाददाताओं से अपनी बातचीत के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि मोदी के साथ बातचीत के दौरान हर मुद्दे पर चर्चा हुई.

पेरिस में बैठक?

पहले यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि दोनों नेता 10-11 फरवरी को होने वाले पेरिस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिट के दौरान मुलाकात कर सकते हैं. हालांकि, मोदी इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए सहमत हो गए हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रंप भी वहां होंगे या नहीं. अब भारतीय प्रधानमंत्री पेरिस और वाशिंगटन दोनों की यात्रा करेंगे. हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा बाद में की जाएगी.

संबंधों का विस्तार

व्हाइट हाउस द्वारा जारी टेलीफोन बातचीत के विवरण के अनुसार, दोनों नेताओं ने सहयोग के विस्तार और गहराई पर चर्चा की. उन्होंने हिंद-प्रशांत, मिडिल ईस्ट और यूरोप में सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की. व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति ने भारत द्वारा अमेरिकी निर्मित सुरक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ाने और निष्पक्ष द्विपक्षीय व्यापार संबंधों की ओर बढ़ने के महत्व पर जोर दिया. इस विवरण में यह भी कहा गया कि नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की व्हाइट हाउस यात्रा की योजना पर चर्चा की, जिससे हमारे देशों के बीच मित्रता और रणनीतिक संबंधों की मजबूती को रेखांकित किया गया. दोनों ने यूएस-इंडिया रणनीतिक साझेदारी और इंडो-पैसिफिक क्वाड साझेदारी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता दोहराई, जिसमें इस वर्ष भारत पहली बार क्वाड नेताओं की मेजबानी करेगा.

मोदी का ट्वीट

इस बीच, मोदी ने ट्वीट किया कि वह अपने "मित्र" ट्रंप से बात करके प्रसन्न हैं और दोनों देशों की आपसी लाभकारी और भरोसेमंद साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराया. उन्होंने कहा कि हम अपनी जनता के कल्याण और वैश्विक शांति, समृद्धि और सुरक्षा की दिशा में एक साथ काम करेंगे.

ट्रंप-मोदी संबंध

मोदी और ट्रंप ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में सौहार्दपूर्ण और सहज संबंध बनाए रखा. सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में "हाउडी मोदी" कार्यक्रम में ट्रंप मौजूद थे और बाद में फरवरी 2020 में "नमस्ते ट्रंप" कार्यक्रम के लिए अहमदाबाद आए थे. ट्रंप के तहत, निष्क्रिय पड़ा क्वाड पुनर्जीवित हुआ और अमेरिकी पैसिफिक कमांड का नाम बदलकर अमेरिकी इंडो-पैसिफिक कमांड कर दिया गया. उन्होंने कहा था कि अमेरिका भारत के एक प्रमुख वैश्विक शक्ति और मजबूत रणनीतिक व रक्षा साझेदार के रूप में उभरने का स्वागत करता है.

ट्रंप और टैरिफ

ट्रंप ने हिंद महासागर सुरक्षा और व्यापक क्षेत्र में भारत की नेतृत्व भूमिका का समर्थन किया था. हालांकि, उन्होंने भारत को "टैरिफ का राजा" भी करार दिया और चेतावनी दी कि यदि ब्रिक्स (जिसमें भारत एक प्रमुख सदस्य है) अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने के लिए कोई कदम उठाता है तो वह उस पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगा सकते हैं.

नई चुनौतियां

वर्तमान संबंधों की गर्मजोशी के बावजूद भारतीय नीति-निर्माताओं को ट्रंप की इमिग्रेशन नीतियों और अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए अन्य देशों पर भारी टैरिफ लगाने की प्रवृत्ति को लेकर गंभीर चिंताएं हैं.

भारत-अमेरिका व्यापार

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और 2022 में दोनों देशों के वस्तुओं और सेवाओं का कुल व्यापार लगभग 191.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. भारत को 43.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष प्राप्त हुआ. हालांकि, दोनों देशों के बीच सहयोग कई क्षेत्रों में विस्तृत हुआ है, भारत का विशाल रक्षा बाजार अमेरिकी रक्षा आपूर्तिकर्ताओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण बना हुआ है. साल 2019 से 2023 के बीच भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक था और वैश्विक हथियार व्यापार का 9.8 प्रतिशत हिस्सा था.

सैन्य संबंध

हालांकि, रूस भारत का मुख्य हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. लेकिन अमेरिका की हिस्सेदारी काफी बढ़ी है और यह वर्तमान में भारत के कुल हथियार आयात का 13 प्रतिशत से अधिक है. विशेषज्ञों का कहना है कि रक्षा सहयोग भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों का मुख्य आधार बना हुआ है. क्योंकि भारत एक प्रमुख हथियार आयातक है. अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप निश्चित रूप से भारत के आकर्षक रक्षा बाजार में अमेरिकी उपस्थिति को और बढ़ाने के लिए दबाव डालेंगे ताकि व्यापार घाटे को कम किया जा सके. उनकी सख्त वीजा नीति भी अमेरिका में कार्यरत भारतीय श्रमिकों और कंपनियों के लिए समस्याएं पैदा कर सकती है.

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