अब भारत के शिकंजे में तहव्वुर राणा, मुंबई हमले के क्या राज खुलेंगे?
26/11 को मुंबई पर हुए भीषण आतंकी हमले का मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा आखिरकार भारत की गिरफ्त में आ ही गया। राणा को अमेरिका से भारत लाना कितना अहम है, यहां जानिए।;
मुंबई पर हुए आतंकी हमले के लगभग 17 साल बाद ये पहला मौका है जब एक अहम साजिशकर्ता भारतीय एजेंसियों के हत्थे चढ़ा है। तहव्वुर हुसैन राणा का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण कई मामलों में बहुत अहम है।
कौन है तहव्वुर राणा?
तहव्वुर हुसैन राणा एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, जो अमेरिका में सजा काट चुका है। वो 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के प्रमुख षड्यंत्रकारियों में से एक माना जाता है।
वह उस आतंकी हमले का सह-साजिशकर्ता है। भारत सरकार कई वर्षों से उनके प्रत्यर्पण की मांग कर रही थी, जिसे अब अमेरिकी अदालतों ने मंजूरी दे दी है।
कैसे संभव हुआ प्रत्यर्पण?
तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को लेकर अमेरिकी अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाई चली। कैलिफोर्निया के एक जिला न्यायालय ने मई 2023 में राणा को भारत प्रत्यर्पित किए जाने का फैसला दिया। अमेरिकी सरकार ने भी राणा के भारत प्रत्यर्पण को दोनों देशों के बीच की संधि के तहत वैध माना।
इसके बाद कैलिफोर्निया में स्थित संघीय अदालत ने भी प्रत्यर्पण के खिलाफ दी गई राणा की अपील को ठुकरा दिया। सितंबर 2024 में राणा को सभी निचली अदालतों से झटका लगा और उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी मिल गई।
ट्रंप से पहले बाइडन प्रशासन ने भी इस मामले में भारत का साथ दिया। राणा ने जब अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली, तब भी बाइडन प्रशासन ने जल्द से जल्द उसकी याचिका खारिज करने की मांग की।
आखिरकार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जनवरी 2025 में राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी। फरवरी 2025 राणा ने सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को भी खारिज कर दिया और प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया।
राणा का वो आखिरी दांव
20 मार्च 2025 को तहव्वुर राणा ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को अर्जी देकर प्रत्यर्पण रोकने की मांग उठाई। लेकिन 7 अप्रैल 2025 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स ने राणा की मांग को अस्वीकार कर दिया और उसके प्रत्यर्पण का रास्ता साफ हुआ।
इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी 2025 की अमेरिकी यात्रा भी अहम रही। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद घोषणा की कि तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जाएगा।
पहले रिहाई, फिर गिरफ्तारी
तहव्वुर राणा अमेरिका में सजा काटने के दौरान एक बार जेल से रिहा भी हो चुका है। ये मई 2020 की बात है। तब अमेरिका में तहव्वुर राणा को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद स्वास्थ्य कारणों से दक्षिण कैलिफोर्निया की टर्मिनल आईलैंड जेल से रिहाई दे दी गई।
उसने सजा भी पूरी नहीं की थी। भारत ने राणा के पहुंच से दूर हो जाने की आशंका के मद्देनजर प्रत्यर्पण और अंतरिम गिरफ्तारी की अपील को अमेरिकी प्रशासन के सामने बढ़ाया। इसके बाद राणा को 10 जून 2020 को फिर से लॉस एंजेलिस से गिरफ्तार कर लिया गया।
तहव्वुर राणा की बैकग्राउंड
तहव्वुर राणा का जन्म पाकिस्तान में हुआ और वहीं उसकी परवरिश भी हुई। वह पेशे से डॉक्टर रहा है। मेडिकल डिग्री लेने के बाद वो पाकिस्तानी सेना के मेडिकल कोर में शामिल हुआ। बाद में 1997 में कनाडा जाकर 2001 में कनाडाई नागरिक बन गया।
अमेरिका कैसे पहुंचा?
2000 के दशक में तहव्वुर राणा ने अमेरिका के शिकागो में एक इमिग्रेशन और ट्रैवल एजेंसी खोली। यहीं उसकी मुलाकात पुराने दोस्त डेविड कोलमैन हेडली से फिर से हुई , जो बाद में मुंबई हमले का सरकारी गवाह बन गया। मुंबई पर आतंकी हमले की साजिश रचने में राणा और हेडली दोनों लश्कर
मुंबई हमलों में राणा की भूमिका
अमेरिकी अदालत ने राणा को 2013 में दोषी ठहराया। उस पर डेनमार्क में एक हमले की योजना बनाने और मुंबई हमलों में सहयोग का आरोप था। राणा को अमेरिका में 14 साल जेल की सजा मिली।
कैसे रची साजिश?
मुंबई हमले की प्लानिंग करने में तहव्वुर राणा का सबसे मददगार रहा उसका पुराना दोस्त डेविड कोलमैन हेडली, जोकि खुद भी पाकिस्तानी मूल का नागरिक है।
राणा के दोस्त हेडली ने मुंबई में संभावित लक्ष्यों की रेकी की। शक से बचने के लिए राना की ट्रैवल एजेंसी की एक शाखा मुंबई में खोली गई। अमेरिकी अभियोजन के अनुसार राणा ने जानबूझकर हेडली को सहयोग किया।
डेविड हेडली ने खोले राज
डेविल कोलमैन हेडली ने अमेरिकी अदालत में बताया कि 2006 में उन्होंने राणा को मिशन यानी भारत पर आतंकी हमले के बारे में बताया। राणा ने न सिर्फ उसकी योजना को मंजूरी दी, बल्कि भारत के लिए वीज़ा दिलाने में भी मदद की। बॉम्बे कोर्ट में वीडियो लिंक से गवाही में हेडली ने स्वीकार किया कि राणा को सब कुछ पता था।
उन्होंने साजिशकर्ताओं को लॉजिस्टिक और वैधता देने में अहम भूमिका निभाई। अब भारत में उनके खिलाफ आतंकवाद से जुड़े आरोपों में मुकदमा चलेगा।