अमेरिका का बड़ा सरप्राइज! फेडरल रिजर्व ने घटाई दरें, 2026 पर दुनिया की नजर

Federal Funds Rate: अमेरिका में महंगाई पिछले साल की ऊंचाइयों से कुछ नीचे आई है, लेकिन यह अभी भी फेड के 2% लक्ष्य से ऊपर है।

Update: 2025-12-11 01:10 GMT
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US Federal Reserve: अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने बुधवार को अपनी नीति बैठक में बेंचमार्क ब्याज दर में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की, जिससे फेडरल फंड रेट 3.5%-3.75% के दायरे में आ गया। यह कदम अमेरिकी महंगाई के कम होने और मिले-जुले आर्थिक संकेतकों के बीच आया है। यह फैसला उन बैठकों में से एक था, जिस पर वैश्विक बाजारों की नजर टिकी हुई थी, क्योंकि इसका सीधा असर 2026 में दुनिया की मौद्रिक नीतियों भारत समेत पर पड़ सकता है।

सरकारी शटडाउन के बीच फैसला

43 दिनों तक चले अमेरिकी सरकारी शटडाउन के कारण कई महत्वपूर्ण आर्थिक आंकड़े देर से आए, वहीं फेड अधिकारियों के विरोधाभासी बयान और ट्रंप प्रशासन का चुनावी वर्ष से पहले नरम नीति की ओर दबाव—इन सबने अनिश्चितता बढ़ाई। बाजार पहले ही इस कटौती को लगभग तय मान रहे थे और 87% संभावना इसका संकेत दे रही थी, खासतौर पर न्यूयॉर्क फेड अध्यक्ष जॉन विलियम्स की उस टिप्पणी के बाद जिसमें उन्होंने इसे "इंश्योरेंस मूव" बताया था।

अमेरिका में महंगाई पिछले साल की ऊंचाइयों से कुछ नीचे आई है, लेकिन यह अभी भी फेड के 2% लक्ष्य से ऊपर है। नौकरी के आंकड़े भी धीमे हुए हैं, हालांकि श्रम बाजार इतना मजबूत अभी भी है कि फेड आगे की दिशा तय करने में सावधानी बरत रहा है।

फेड के भीतर बढ़ती दरार

इस निर्णय पर फेड के भीतर भारी मतभेद भी सामने आए। शिकागो फेड अध्यक्ष ऑस्टन गुल्सबी और कंसास सिटी फेड अध्यक्ष जेफ्री श्मिड दरों में कोई बदलाव नहीं चाहते थे। फेड गवर्नर स्टीफन मिरन आधे प्रतिशत की बड़ी कटौती के पक्ष में थे। 2026 के लिए दरों में कटौती को लेकर भी 19 सदस्यों की राय बेहद अलग-अलग रही—7 ने किसी कटौती का अनुमान नहीं लगाया, 8 ने दो या अधिक कटौती की संभावना जताई, जबकि 4 सिर्फ एक कटौती के पक्ष में थे।

भारत पर असर

अमेरिकी डॉलर के नरम पड़ने और वैश्विक बॉन्ड यील्ड के कम होने से भारत में विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ सकता है। इसके विपरीत फेड का सख्त रुख रुपये और बाजारों पर दबाव डाल सकता है। हाल के हफ्तों में रुपये में कमजोरी देखी गई है, जिसका कारण घरेलू व्यापार चिंताओं और वैश्विक निवेशकों की जोखिम-निवृत्ति है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक नीति अनिश्चितता पहले से ही वित्तीय स्थितियों को कड़ा कर रही है। ऊंची ब्याज दरें, बदलती नीति अपेक्षाएं और भारत–अमेरिका व्यापार समझौते में देरी—इन सभी ने रुपये पर दबाव बढ़ाया है। एफआईआई प्रवाह पर खतरा है, जिससे भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजार प्रभावित हो सकते हैं। सोने को इससे समर्थन मिलता रहेगा।

आगे क्या?

भारतीय बाजार अब सप्ताह के बाकी दिनों में वैश्विक संकेतों को बारीकी से ट्रैक करेंगे। फेड की स्थिति अब स्पष्ट होने के बाद निवेशक आने वाले अमेरिकी महंगाई आंकड़ों, रोजगार डेटा और चेयरमैन जेरोम पॉवेल के बयानों पर नजर रखेंगे—खासतौर पर फेड कितने समय तक इंतजार की रणनीति अपनाए रखने वाला है।

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