जी-7 की साख खुद दांव पर, भारत को विशेष रूप से बुलाने के मायने समझिए

भारत, औपचारिक तौर पर जी-7 का हिस्सा नहीं है, फिर भी समिट में शामिल होने के लिए बुलाया गया है. यहां पर हम इसके मायने को समझने की कोशिश करेंगे

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-14 01:29 GMT

G 7 Summit Italy: इटली में जी 7 समिट की बैठक होने जा रही है. इस बैठक में दुनिया के सात सबसे समृद्ध देशों के राष्ट्राध्यक्ष जुट चुके हैं. भारत की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी भी उस खास बैठक में हिस्सा लेने के लिए पहुंच चुके हैं. भारत वैसे तो जी-7 का सदस्य नहीं है लेकिन उसे बुलाया गया है. जी-7 बैठक में जब सदस्य देश के प्रमुख इटली पहुंचे तो उनकी अगवानी खुद इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने भारतीय तरीके यानी नमस्ते से किया. यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की छाप दुनिया के देशों पर पड़ चुकी है. लेकिन यहां हम बात करेंगे कि जब दुनिया में इस समय दो युद्ध चल रहे हैं उसमें इस समिट के मायने क्या हैं. एशिया से सिर्फ एकमात्र देश भारत को ही क्यों बुलाया गया.

जी-7 के देशों में खुद ही हलचल

अगर आप जी-7 को देखें तो उसके सदस्य देशों की क्या स्थिति है पहले उसे समझिए. रूस यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर पूरा जी-7 यूक्रेन के साथ मुस्तैदी से खड़ा है. लेकिन जी-7 के देशों में ही हलचल है. हाल ही में यूरोपीय यूनियन में मिली हार के बाद फ्रांस के राष्ट्पति इमैनुएल मैक्रां ने मध्यावधि चुनाव कराने का ऐलान कर दिया. इंग्लैंड में ऋषि सुनक समय से पहले चुनाव करा रहे हैं. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक वो चुनाव हार सकते हैं. इसी तरह जर्मनी में ओलाफ शोल्ज की स्थिति कमजोर बनी हुई है. यही नहीं अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप, जो बाइडेन को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं तो जापान में फुमियो किशिदा की पर्सनल रेटिंग निचले स्तर पर है.

इटली- भारत के संबंध में दिख चुकी है मजबूती

अगर मौजूदा समय में इटली और भारत दोनों मजबूत स्थिति में है. यूरोपीय यूनियन में मिली जीत के बाद जॉर्जिया मेलोनी की लोकप्रियता ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बल्कि घरेलू स्तर पर बढ़ी है, वो मजबूत और निर्णायक फैसले ले सकती हैं. ठीक वैसे ही भारत में लोगों ने पीएम नरेंद्र मोदी पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है. इसके साथ ही अगर आप थोड़ा पीछे जाएं तो दिसंबर 2023 में कॉप 28 सम्मेलम आप को याद होगा, उसमें आपने जॉर्जिया मेलोनी और नरेंद्र मोदी के मुलाकात की ही सबसे अधिक चर्चा हुई है. आमतौर पर कहा जाता है कि अगर दो राष्ट्राध्यक्षों के आपसी संबंध बेहतर हों तो कुछ हटकर क्रांतिकारी फैसलों के आने की उम्मीद बढ़ जाती है.

अमेरिका हो या रूस भारत सबकी पसंद

अमेरिका हो या रूस या जी 7 के दूसरे सदस्य उनके लिए भारत क्यों महत्वपूर्ण है. इसे आप रूस यूक्रेन की लड़ाई से समझ सकते हैं. अमेरिका की चाहत है कि भारत खुलकर यूक्रेन के मुद्दे पर उसके साथ रहे. लेकिन भारत ने अपने इस बयान- आज के मौजूदा हालात में युद्ध पूरी दुनिया के लिए ठीक नहीं है. बातचीत के जरिए आपसी कड़वाहट को सुलझाया जा सकता है.यानी की भारत ने साफ किया कि वो रूस यूक्रेन युद्ध में किसी के साथ नहीं है यानी कि जी 7 के सदस्य किसी तरह के दबाव बनाने के बारे में सोच रहे हैं तो ना सोचें. दरअसल अमेरिका को ऐतराज इस बात पर है कि रूस से भारत तेल की खरीद क्यों कर रहा है. हालांकि इस नजरिए पर विदेश मंत्री ने डॉ एस जयशंकर ने पहले ही कहा था कि हर एक देश को अपनी नीति निर्धारण का अधिकार है. आप भारत की ताकत को इस बात से समझ सकते हैं कि उसने रूस यूक्रेन वाले सेशन से खुद को दूर रखने का फैसला किया है. यानी यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारत की अपनी वैदेशिक नीति है जो किसी और देश से नियंत्रित नहीं होगी.

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