FBI चीफ काश पटेल का पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर से हाथ मिलाना प्रवासी भारतीयों को नागवार गुजरा

ट्रंप का पाकिस्तान नेतृत्व के लिए आतिथ्य अपेक्षित था, लेकिन भारतीय मूल के, हिंदू, और राम मंदिर के मुखर समर्थक पटेल की मुनीर से गर्मजोशी से मुलाक़ात की तस्वीर ने गहरा असर डाला।

Update: 2025-09-29 10:48 GMT
FBI के प्रमुख काश पटेल ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर से गर्मजोशी से हाथ मिलाया

पिछले हफ़्ते राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और फ़ील्ड मार्शल असीम मुनीर की व्हाइट हाउस में मेज़बानी की। इस बैठक में वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों में एफबीआई निदेशक काश पटेल भी मौजूद थे। ट्रंप का पाकिस्तान नेतृत्व के लिए आतिथ्य अपेक्षित था, लेकिन भारतीय मूल के, हिंदू, और राम मंदिर के मुखर समर्थक पटेल की मुनीर से गर्मजोशी से मुलाक़ात की तस्वीर ने गहरा असर डाला। यह फ़ोटो वायरल हो गई और उस पर “विश्वासघात, अवसरवाद और पाखंड” के आरोप लगने लगे।

जब काश पटेल एफबीआई प्रमुख के रूप में कांग्रेस में पुष्टि सुनवाई पर पहुँचे थे, तो उन्होंने “जय श्री कृष्ण” का उद्घोष किया, माता-पिता के पैर छुए और *भगवद गीता* पर शपथ ली। यह भारतीय प्रवासी संस्कार और MAGA (Make America Great Again) चुनौती का अद्भुत संगम माना गया। जिस शख़्स ने भारतीय-अमेरिकियों की हर रूढ़ छवि तोड़ी, वही आज तूफ़ान के केंद्र में है — पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर से हाथ मिलाते उनकी एक तस्वीर ने भारत और प्रवासी भारतीयों में ग़ुस्सा भड़का दिया है।

प्रतिक्रियाएँ

कुछ आलोचकों ने कहा कि मुनीर के हिंदुओं और भारतीयों पर दिए बयानों के मद्देनज़र यह क़दम दुनिया भर के हिंदुओं के लिए शर्मनाक है। दूसरों ने इसे व्यवहारिक दृष्टि से देखा और कहा कि एफबीआई निदेशक के रूप में वे औपचारिकता से इनकार नहीं कर सकते थे।

कुछ ने तो विवाद की बुनियाद पर ही सवाल उठाए — “मुनीर पाकिस्तानी हैं, पटेल अमेरिकी। दोनों ही अपनी-अपनी राष्ट्रीय हितों को धर्म से ऊपर रखेंगे।”

क्यों अहम है

धार्मिक प्रतीकवाद: पटेल की हिंदू पहचान पर पहले के बयानों ने इसे और संवेदनशील बना दिया। उन्होंने राम मंदिर को 500 साल की सभ्यतागत लड़ाई कहा है। जबकि मुनीर बार-बार दो-राष्ट्र सिद्धांत को बढ़ावा देते रहे हैं, जिसमें हिंदू और मुस्लिम को मूलतः अलग माना जाता है।

जिओ-पॉलिटिकल समय: यह हाथ मिलाना पहलगाम आतंकी हमले के कुछ ही महीनों बाद हुआ।

प्रवासी अपेक्षाएँ:  पटेल को सिर्फ एक अमेरिकी अधिकारी नहीं, बल्कि गुजरात से जुड़े, हिंदू परंपरा में पले और ट्रंप के हिंदू-आउटरीच चेहरे के रूप में देखा जाता है।

अमेरिका का पाकिस्तान झुकाव:  यह उस समय हुआ जब ट्रंप पहले ही दिल्ली को परेशान कर चुके हैं — टैरिफ से लेकर पाकिस्तान की “डिप्लोमेसी” की प्रशंसा तक।

अमेरिका-भारत रिश्तों की पृष्ठभूमि

टैरिफ युद्ध: भारत के निर्यात पर 50% तक का शुल्क लगाया गया है, जबकि पाकिस्तान को सिर्फ़ 19% टैरिफ झेलना पड़ा, जो दक्षिण एशिया में सबसे कम है।

पाकिस्तान झुकाव: ट्रंप ने पाकिस्तान को व्यापार प्रोत्साहन, तेल अन्वेषण सहयोग और कूटनीतिक फोटो-ऑप्स दिए।

नोबेल की नाराज़गी: कहा जाता है कि ट्रंप खफ़ा हैं कि भारत ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित नहीं किया।

सीज़फायर का दावा: मई 2025 में ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। दिल्ली ने इसे सिरे से ख़ारिज किया और कहा कि बातचीत सीधे दोनों सेनाओं ने की थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्रंप के दावे को “बेबुनियाद” बताया। विदेश मंत्रालय ने 6 सूत्रीय बयान जारी कर कहा कि किसी तीसरे पक्ष का कोई रोल नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में सितम्बर 2025 में भारत ने साफ़ कहा कि “किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई जगह नहीं।”

बड़ी तस्वीर

ट्रंप की हिंदू पहुँच:  दीवाली भाषणों से लेकर कैलिफ़ोर्निया के जाति-विरोधी बिल का विरोध करने तक, ट्रंप ने हिंदू-अमेरिकियों को साधने की कोशिश की। पटेल इसमें अहम चेहरा थे।

पटेल का उभार: उन्होंने पारंपरिक ‘मॉडल माइनॉरिटी’ की छवि तोड़ी। न्यूनिस मेमो लिखा, ट्रंप के लिए “रूसगेट योद्धा” बने और खुले तौर पर हिंदू पहचान को अपनी ताक़त बनाया।

प्रोटोकॉल बनाम प्रतीकवाद: समर्थकों का कहना है कि पटेल सिर्फ़ राजनयिक शिष्टाचार निभा रहे थे। लेकिन भारत-पाक रिश्तों के इतने संवेदनशील दौर में यह हाथ मिलाना भी राजनीति का भार उठाता है।

प्रवासी राजनीति: पटेल की पहचान दोहरी है — एक अमेरिकी अधिकारी और गुजरात के हिंदू बेटे की। इसी वजह से उनके हर कदम को वफ़ादारी की कसौटी पर परखा जाता है।

काश पटेल कोई साधारण अधिकारी नहीं हैं। वे ट्रंप की MAGA दुनिया का हिंदू चेहरा हैं, एफबीआई प्रमुख हैं, वही व्यक्ति जिसने कांग्रेस में “जय श्री कृष्ण” बोला और भारतीय-अमेरिकी पहचान को राजनीतिक ताक़त में बदला। इसी कारण असीम मुनीर से उनका हाथ मिलाना महज़ प्रोटोकॉल नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और भारत-अमेरिका के तनावपूर्ण रिश्तों के संदर्भ में “विश्वासघात” के तौर पर देखा जा रहा है।

लेकिन यह भी याद रखना होगा कि वफ़ादारियाँ अलग-अलग रूप लेती हैं — और पटेल की वफ़ादारी सबसे पहले डोनाल्ड ट्रंप के प्रति है।

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