बिहार की जंग में नीतीश-मोदी की परीक्षा, गठबंधन की राह में रोड़े
यह चुनांव बिहार की राजनीति में विश्वास, साख और लोकप्रियता पर एक स्पष्ट आंकलन होगा। यह तय करेगा कि क्या नितीश कुमार अपनी लीडरशिप बनाए रख पाएंगे और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता राज्य स्तर पर कितनी असरदार है।
अगले माह होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों पर अब सबकी नजरें लग गई हैं। ये चुनाव मुख्यमंत्री नितीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी परीक्षा साबित होने वाला है। दो चरणों में होने वाले इन चुनावों का पहला चरण अब कुछ ही हफ्तों दूर है।
चुनावी माहौल और मुख्य किरदार
राष्ट्रीय जनत्रांतिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन दोनों ही मोर्चे तैयार हैं, लेकिन बिहार का चुनाव पटाखों जैसा आसान नहीं होगा। 74 वर्षीय नितीश कुमार, जो अब तक सबसे लंबे समय से मुख्यमंत्री हैं, यह देखना बाकी है कि क्या वे अपनी लोकप्रियता और वोट बैंक बरकरार रख पाएंगे। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद यह भी सवाल है कि प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक पकड़ कितनी मजबूत है।
लोग मानते हैं कि नितीश कुमार अब भी एक महत्वपूर्ण चेहरे हैं, लेकिन उनकी ज़िंदगी और शारीरिक-मानसिक स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी का वोट प्रतिशत लगभग 15% माना जा रहा है, लेकिन चर्चा है कि ये चुनाव उनके लिए अंतिम साबित हो सकते हैं। चुनावी रणनीति में कुछ बदलाव हुए हैं—उनके घोषणापत्र में मुफ्त योजनाओं (freebies) की संख्या बढ़ गई है।
लोकप्रियता की रणनीति
पिछले ढाई महीनों में नितीश सरकार ने कई मुफ्त योजनाएं घोषित की हैं, ताकि जनता के बीच नाखुशी कम हो सके। सबसे आकर्षक योजना है मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, जिसके तहत लगभग 2.77 करोड़ महिलाओं के बैंक खाते में सीधे ₹10,000 डाले जाएंगे। आलोचकों का कहना है कि पहले विकास, सुशासन और कानून की बात होती थी, लेकिन अब मुफ्त योजनाएं वोट बैंक को ध्यान में रखकर लाई जा रही हैं।
लोकप्रियता और विश्वास की लड़ाई
सुनने में आ रहा है कि “नितीश मैजिक” अब ज़मीनी असर नहीं दिखा रहा है। 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी को 115 में से सिर्फ 43 सीटें मिल पाईं थीं। उनकी साख पर भी सवाल उठे हैं। क्योंकि उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में गठबंधन बहुत बदला है—RJD के साथ, फिर BJP के साथ, फिर फिर से बदल… लोगों को भरोसा नहीं है कि चुनाव के बाद वे फिर से गठबंधन बदलेंगे या नहीं।
बीजेपी की रणनीति: मोदी की भूमिका आगे
पार्टी ने अभी यह तय नहीं किया है कि चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री कौन होगा, लेकिन जनता को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि मोदी हैं असली चेहरा। मोदी इस चुनाव में रैलियों के ज़रिए कम‑से‑कम 10 से 15 स्थानों पर प्रचार करेंगे।
बीजेपी के नेताओं ने कहा है कि नितीश कुमार अपनी पार्टी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस चुनाव की सफलता पूरी तरह से मोदी की लोकप्रियता और करिश्मा पर टिकी है।
फाइट निकट
सर्वेक्षण बताते हैं कि NDA और महागठबंधन के बीच मुकाबला बेहद करीबी होगा। नया ताज़ा खिलाड़ी है जन सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर की पार्टी), जो कई सीटों पर तीन‑कोने की लड़ाई बना सकती है। पिछले चुनावों में मतभेद बेहद कम रहा था—NDA को 37.26% वोट मिले थे और महागठबंधन को 37.23%। बस 12,768 वोटों से फर्क पड़ा था।