बिहार विधानसभा 2025: जातीय समीकरण में बड़ा बदलाव, यादव-मुस्लिम वोट बैंक टूटे

बिहार विधानसभा 2025 में जातीय समीकरण में बड़ा बदलाव आया है। यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर भरोसा करने वाली पार्टियों के लिए यह चेतावनी है। दूसरी ओर, एनडीए ने विविध जातीय समर्थन के साथ अपनी जीत सुनिश्चित की। बिहार की राजनीति अब एक नए समीकरण और संतुलन की ओर बढ़ रही है।

Update: 2025-11-15 11:13 GMT
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Bihar Assembly 2025: बिहार की राजनीति में हमेशा कहा जाता रहा है – “जाति है कि जाती नहीं”। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने इसे दरकिनार करते हुए नीतीश कुमार की एनडीए सरकार को भारी बहुमत दिलाया। परिणामों ने दिखा दिया कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर भरोसा करने वाली महागठबंधन की राह कठिन रही। आरजेडी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और लंबे समय बाद बिहार विधानसभा अब किसी एक जाति के दबदबे से बाहर निकल रही है। इस बार विधायकों का जातीय समीकरण बहुत अलग नजर आया है।

यादव-मुस्लिम वोट बैंक का बिखरना

पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की पार्टी के लिए यादव और मुस्लिम समुदाय हमेशा कोर वोटर रहे हैं। इस बार दोनों ही समुदाय महागठबंधन से दूर दिखे। महागठबंधन ने कुल 66 यादवों को टिकट दिया, लेकिन केवल 12 जीत पाए। मुस्लिम वोट बैंक पर ध्यान देने के बावजूद राजद से 3 और कांग्रेस से 2 मुस्लिम विधायक ही जीते। जदयू का एक मुस्लिम विधायक (जमा खान) और एआईएमआईएम के 5 विधायक चुने गए। तेजस्वी यादव ने 18 नवंबर को मुख्यमंत्री बनने की घोषणा उसी आधार पर की थी, लेकिन यह वोट बैंक इस बार उनके साथ नहीं खड़ा रहा।

राजपूत और दलित विधायक बने सबसे ज्यादा

इस बार चुनाव में राजपूत जाति के विधायकों की संख्या सबसे अधिक रही। इसके साथ ही दलित और सवर्ण भी मजबूत प्रतिनिधित्व में हैं।

2025 में जातीय आधार पर विधायक संख्या

यादव – 28

कुर्मी – 25

कुशवाहा – 23

वैश्य – 26

राजपूत – 32

भूमिहार – 23

ब्राह्मण – 14

कायस्थ – 3

पिछड़ा वर्ग – 13

दलित – 36

एसटी – 11

मुस्लिम – 10

पिछली चुनावों से तुलना

2020 में

यादव – 55, कुर्मी – 10, कुशवाहा – 16

वैश्य – 22, राजपूत – 18, भूमिहार – 17

दलित – 38, मुस्लिम – 14

2015 में

यादव – 61, कुर्मी – 16, कुशवाहा – 20

वैश्य – 13, राजपूत – 20, भूमिहार – 17

दलित – 38, मुस्लिम – 24

ट्रेंड: यादव और मुस्लिम विधायक संख्या लगातार घट रही है, जबकि राजपूत, दलित और अन्य सवर्ण जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।

मुस्लिम सियासत में बदलाव

इस बार AIMIM का नया चेहरा और सक्रियता मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगी। इससे आरजेडी और कांग्रेस को फायदा नहीं मिला और मुस्लिम प्रतिनिधित्व घटकर 10 रह गया।

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