बिहार चुनाव 2025: विकास से ‘धर्म’ तक, बुर्का बनाम बुलडोजर की सियासी जंग शुरू!

बिहार चुनाव 2025 में विकास के मुद्दे अब गायब होते दिख रहे हैं। मैदान में बुर्का, वक्फ, सीता मंदिर और मोदी फैक्टर की सियासत गर्म है। ध्रुवीकरण की जंग तेज हो चुकी है।

By :  Lalit Rai
Update: 2025-10-28 09:34 GMT

बिहार की चुनावी लड़ाई में अब विकास की जगह धीरे धीरे बुर्का, वक्फ और मुस्लिम डिप्टी सीएम का मुद्दा जगह ले रहा है। बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयानों ने साफ संकेत दिया है कि बीजेपी इस बार खुलकर हिंदू कार्ड खेलने की रणनीति पर काम कर रही है। दोनों नेताओं के भाषणों में जिस तरह धार्मिक मुद्दों को केंद्र में रखा गया, उससे पार्टी के अभियान की दिशा स्पष्ट होती दिख रही है।दूसरी ओर, महागठबंधन भी इस धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति से पीछे नहीं है। आरजेडी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची में मुस्लिम समुदाय को जिस तरह से प्राथमिकता दी है, वह यह दर्शाता है कि वे भी इस चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में हैं। अगर मुस्लिम ध्रुवीकरण महागठबंधन की तरफ हुआ तो एनडीए को कितना फायदा या नुकसान होगा।

2020 के दिल्ली विधानसभा और 2021 के बंगाल चुनावों में बीजेपी को इसी तरह के धार्मिक ध्रुवीकरण का नुकसान झेलना पड़ा था। फिर भी, बिहार के 17% मुस्लिम वोट बैंक के लालच में दोनों गठबंधन इस रास्ते से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते।बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि लंबे समय तक एक सेक्युलर नेता के रूप में रही है। 2005 से 2015 तक उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं — जैसे वक्फ बोर्ड का गठन, कब्रिस्तानों की फेंसिंग और मदरसों की छात्रवृत्ति। इससे जेडीयू को मुस्लिम वोटों का अच्छा समर्थन मिला।

2013 में नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद नीतीश ने गठबंधन तोड़ दिया और मुस्लिमों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। पर 2017 में फिर से बीजेपी के साथ आने और 2020 के चुनाव में 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बावजूद एक भी जीत न मिलना यह दर्शाता है कि मुस्लिम मतदाताओं में नीतीश का भरोसा कमजोर हुआ है।

2024 में वक्फ संशोधन विधेयक पर जेडीयू के समर्थन ने मुस्लिम समुदाय में नाराजगी और बढ़ाई। यही कारण है कि 2025 में जेडीयू ने केवल चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। दूसरी ओर, आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने साफ कहा है कि “वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे”, जिससे मुस्लिम वोटों का झुकाव महागठबंधन की ओर बढ़ा है।

गोपालगंज के पत्रकार टुन्ना दुबे बिहार की राजनीतिक तस्वीर को कुछ इस तरह बयां करते हैं, 'महागठबंधन के मुस्लिम केंद्रित अभियान के जवाब में बीजेपी ने हिंदू एकता की रणनीति अपनाई है। 82% हिंदू आबादी को एकजुट करने के लिए पार्टी “सीता मंदिर” जैसे सांस्कृतिक प्रतीकों पर ध्यान दे रही है। अगस्त 2025 में गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में 882 करोड़ रुपये की सीता मंदिर परियोजना का शिलान्यास किया, जो रामायण सर्किट का हिस्सा है। यह मिथिलांचल क्षेत्र (79 विधानसभा सीटें) में हिंदू एकजुटता बढ़ाने की कोशिश है'।

सीमांचल में बीजेपी घुसपैठिए और अवैध प्रवासन के मुद्दे को उछाल रही है — खासकर किशनगंज, कटिहार जैसे जिलों में, जहां मुस्लिम आबादी 68% तक है। वहीं चुनाव आयोग की विशेष मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) के तहत 68.5 लाख नाम हटाए जाने और 21.5 लाख नए जोड़ने को लेकर भी विवाद हुआ। विपक्ष ने इसे मुस्लिम वोटरों को हटाने की साजिश बताया, जबकि एनडीए ने इसे “फर्जी वोटों की सफाई” कहा।

योगी आदित्यनाथ और गिरिराज सिंह के बयान इस चुनाव में धार्मिक विभाजन की रेखा को और गहरा कर रहे हैं।योगी ने अपनी रैलियों में “बुलडोजर पॉलिसी” और “राम-सीता संस्कृति” का उल्लेख करते हुए कहा कि “आरजेडी-कांग्रेस बिहार को बुरका पॉलिटिक्स से बर्बाद करेंगे।”गिरिराज सिंह ने एक रैली में कहा, “मुसलमान बीजेपी की योजनाओं का लाभ तो लेते हैं लेकिन वोट नहीं देते… ऐसे लोग नामक हराम हैं।” उनके इन बयानों ने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने का प्रयास और स्पष्ट कर दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार बिहार चुनाव का मोर्चा खुद संभाल रखा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में करीब 15% मतदाता सीधे मोदी के नाम पर वोट देते हैं।2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी की लोकप्रियता ने एनडीए को 176 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त दिलाई थी। इसलिए अगर महागठबंधन मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में सफल होता है, तो मोदी का नाम ही हिंदू मतदाताओं को जातीय बंधनों से ऊपर उठाकर एनडीए की ओर खींच सकता है।

गोपालगंज के ही एक और वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार अभय कहते हैं कि 2025 का बिहार चुनाव विकास बनाम ध्रुवीकरण की जंग नहीं, बल्कि ध्रुवीकरण बनाम ध्रुवीकरण की लड़ाई बन चुका है। जहां महागठबंधन मुस्लिम वोटों की एकता पर दांव लगा रहा है, वहीं एनडीए हिंदू एकजुटता को हथियार बना रहा है। पर अंततः यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह रणनीति किसी एक गठबंधन को निर्णायक लाभ दे पाएगी या बिहार की जनता इस बार “धर्म की राजनीति” से ऊपर उठकर वोट करेगी।

Tags:    

Similar News