एनडीए की सूची में मुस्लिम चेहरे नदारद, क्या है रणनीति?
एनडीए ने भले ही सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों की घोषणा में गति दिखाई हो, लेकिन गठबंधन के भीतर मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व की बेहद कम संख्या ने सामाजिक संतुलन, वोट बैंक रणनीति और समावेशी राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बिहार की सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची विपक्षी महागठबंधन से पहले जारी कर चुनावी मैदान में बढ़त जरूर बना ली है, लेकिन इसके बावजूद गठबंधन के भीतर मौजूद कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं। एनडीए की सूची में कुल 243 सीटों के लिए उम्मीदवार हैं, जिनमें मात्र 5 मुस्लिम चेहरे शामिल हैं, यानी लगभग 2.05 प्रतिशत। यह राज्य में मुस्लिम आबादी के 17.7 प्रतिशत हिस्से के मुक़ाबले बहुत कम है। मुसलमानों का वोट बैंक बिहार के कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) ने चार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वहीं, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है। एनडीए के अन्य छोटे सहयोगी दलों — जैसे हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक जनता दल ने भी मुस्लिमों को टिकट देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
भाजपा ने नहीं दिया किसी मुस्लिम को टिकट
एनडीए की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वर्ष 2020 की तरह इस बार भी किसी मुस्लिम चेहरे को टिकट नहीं दिया है, जबकि पार्टी ने जद (यू) के बराबर 101 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। यहां तक कि पार्टी के सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरों में शामिल सैयद शाहनवाज़ हुसैन, जो केंद्र और राज्य दोनों जगह मंत्री रह चुके हैं, उन्हें भी इस बार न तो उम्मीदवार बनाया गया और न ही स्टार प्रचारकों की सूची में जगह दी गई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कुल 40 लोग शामिल हैं।
टिकट के लिए भूपालपुर या किशनगंज की चर्चा
पार्टी के भीतर और बाहर यह उम्मीद थी कि शहनवाज़ हुसैन को भागलपुर या किशनगंज में से किसी सीट से मैदान में उतारा जाएगा, जहां से वे पहले सांसद रह चुके हैं. लेकिन उन्हें इस चुनाव में पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया.