Bihar Election 2025: शांत दिखता NDA भीतर मचा सियासी तूफान, कौन किसके साथ?
बिहार NDA में खामोशी के पीछे सियासी हलचल जारी है। नीतीश कुमार चिराग पासवान से दूरी बना रहे हैं, भाजपा रणनीतिक बढ़त चाहती है। अंदरखाने असंतोष सुलग रहा है।
पिछले कई दिनों से बिहार की राजनीति में महागठबंधन के भीतर जारी खींचतान सुर्खियों में है। विपक्षी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर बढ़ते मतभेदों ने यह संकेत दे दिया है कि बिहार चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन में विस्फोट की स्थिति बन रही है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का चेहरा अपेक्षाकृत स्थिर दिख रहा है — शुरुआती दौर में सीट बंटवारे को लेकर जो उथल-पुथल मची थी, वह अब शांत होती नजर आ रही है। पर क्या इस स्थिरता के पीछे कोई तूफान पल रहा है?
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा, जदयू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के इस गठबंधन में अंदरूनी असंतोष अब भी सुलग रहा है। भाजपा और एलजेपी-आर जहां एक खेमे में दिख रही हैं, वहीं जदयू, हम और आरएलएम दूसरी ओर।
नीतीश कुमार का ‘चिराग दूरी’ फ़ैसला
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने मंगलवार (21 अक्टूबर) को मुजफ्फरपुर में जदयू के चुनाव अभियान की शुरुआत की, ने साफ कह दिया है कि वे लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के 29 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार नहीं करेंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने भाजपा नेतृत्व को यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे चिराग पासवान के साथ किसी भी संयुक्त एनडीए रैली में मंच साझा नहीं करेंगे।
सूत्र बताते हैं कि हाल ही में पटना में हुई बैठक में नीतीश ने गृहमंत्री अमित शाह से कहा कि वे सिर्फ उन रैलियों में हिस्सा लेंगे जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे, लेकिन दिल्ली से आने वाले अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ मंच साझा नहीं करेंगे।वहीं, छोटे सहयोगी दल हम (HAM) के प्रमुख जीतन राम मांझी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के नेता उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी-अपनी सीमाओं में ही प्रचार करने का मन बना चुके हैं। उन्हें एनडीए के सीट बंटवारे में महज छह-छह सीटें मिली हैं।
भाजपा की रणनीति — नीतीश से दूरी क्यों
भाजपा नीतीश कुमार से दूरी बनाए हुए है, और इसकी वजह सिर्फ उनका "अनिश्चित" व्यवहार नहीं है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता के मुताबिक, “पार्टी नहीं चाहती कि नीतीश बाद में भाजपा की जीत का श्रेय अपने सिर ले लें, खासकर उन सीटों पर जहां जातीय समीकरण उनके पक्ष में हैं। यदि भाजपा बिना नीतीश पर निर्भर हुए जीतती है, तो यह चुनाव बाद सत्ता समीकरणों में काम आएगा।”
सीट बंटवारे पर असंतोष
भाजपा और जदयू को 101-101 सीटें मिली हैं, चिराग पासवान की एलजेपी-आर को 29, जबकि मांझी और कुशवाहा को छह-छह। जदयू, हम और आरएलएम के भीतर नाराजगी सिर्फ सीटों की संख्या को लेकर नहीं है, बल्कि उन्हें लगता है कि भाजपा चिराग पासवान को इस्तेमाल कर उनके पारंपरिक राजनीतिक क्षेत्र में सेंध लगा रही है।
जदयू के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यह रणनीति 2020 के विधानसभा चुनावों में ही शुरू हो गई थी, जब चिराग को भाजपा ने “रणनीतिक रूप से” गठबंधन से अलग किया ताकि जदयू को नुकसान पहुंचे। अब एलजेपी-आर को 29 सीटें देना उसी प्रयोग का नया संस्करण माना जा रहा है।
नीतीश को यह भी महसूस हुआ कि एनडीए सीट बंटवारे में एलजेपी-आर को कुछ ऐसी सीटें दी गईं जो पारंपरिक रूप से जदयू के खाते में थीं। इसके बाद उन्होंने खुद ही कुछ सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर भाजपा को बैकफुट पर ला दिया। नतीजतन, भाजपा को चिराग को मुआवजा देने के लिए अपनी कुछ सीटें छोड़नी पड़ीं — जिसने नीतीश के संदेह को और मजबूत कर दिया कि भाजपा और चिराग साथ मिलकर उनके खिलाफ काम कर रहे हैं।
नीतीश की एकमात्र प्राथमिकता
अब नीतीश कुमार की पूरी कोशिश यही है कि चुनाव के बाद जदयू एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे। 2020 में भाजपा पहली बार जदयू से आगे निकल गई थी। नीतीश चाहते हैं कि इस बार आंकड़ा उलटा हो ताकि वे भाजपा के लिए फिर से “अपरिहार्य” बन सकें — और जरूरत पड़ने पर राजनीतिक पलटी का रास्ता खुला रहे।
नीतीश ने अपने नेताओं को निर्देश दिया है कि जदयू की 2020 की सीट संख्या को दोगुना करने का प्रयास करें। 101 सीटों में से 37 सीटें पिछड़ी जातियों और 22 सीटें अति पिछड़ों के उम्मीदवारों को दी गई हैं। 13 महिलाओं, चार मुस्लिमों और 22 सवर्ण उम्मीदवारों को भी टिकट मिला है।
‘नीतीश को चेहरा घोषित करो’ की मांग
नीतीश ने मांझी और कुशवाहा के साथ भी संवाद बनाए रखा है। दोनों नेताओं ने अब जदयू के सुर में सुर मिलाते हुए भाजपा से मांग की है कि नीतीश कुमार को आधिकारिक रूप से एनडीए का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया जाए। हालांकि, अमित शाह ने हाल ही में कहा कि “गठबंधन नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री का निर्णय परिणाम आने के बाद किया जाएगा”।
बिहार एनडीए फिलहाल एकता का दिखावा जरूर कर रहा है, लेकिन अंदरखाने हालात उतने सहज नहीं। भाजपा अपनी रणनीति में नीतीश को सीमित दायरे में रखकर खेल रही है, जबकि नीतीश हर हाल में जदयू को सत्ता समीकरणों में मजबूती से स्थापित करना चाहते हैं। चुनावी मैदान में यह खामोशी चुनाव बाद बड़े सियासी बदलाव का संकेत हो सकती है।