बिहार चुनाव से पहले तेजस्वी का रोजगार वादा, नीतीश की नीतियों की अग्निपरीक्षा

बिहार की राजनीति में रोज़गार बनाम नकद सहायता की सीधी टक्कर देखने को मिल रही है। जहां एनडीए महिला मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहा है, वहीं महागठबंधन और तेजस्वी यादव युवा मतदाताओं की उम्मीदों का केंद्र बनते जा रहे हैं।

Update: 2025-10-13 04:06 GMT
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बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले 25 वर्षीय निरंजन शर्मा, जो पिछले सात वर्षों से सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत हैं, अब एक नई उम्मीद के साथ चुनावी हलचल को देख रहे हैं। यह आशा उन्हें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव द्वारा किया गया उस वादे से मिली है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो राज्य के हर परिवार से कम से कम एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाएगी।

युवाओं की आवाज

निरंजन शर्मा, जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की "नाई" जाति से ताल्लुक रखते हैं और जिन्हें अब तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू का परंपरागत वोटर माना जाता रहा है, अब तेजस्वी की ओर झुकाव दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैंने 2018–19 में स्नातक किया था और तभी से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं। कई कारणों से सफलता नहीं मिल पाई। लेकिन तेजस्वी का हर घर में सरकारी नौकरी का वादा हमें नई उम्मीद देता है। शुक्रवार को शर्मा पटना स्थित एम्स में अपनी मां के इलाज के लिए आए थे। उन्होंने कहा कि लगता है कि सरकार में आएगा तो कुछ करेगा। तेजस्वी को मौका देना चाहिए। नीतीश और प्रधानमंत्री मोदी ने युवाओं को ठगा है, बेरोजगारी चरम पर है।

तेजस्वी का बड़ा वादा

विपक्षी महागठबंधन के स्टार प्रचारक तेजस्वी यादव ने युवाओं की नब्ज़ को भांपते हुए अपने चुनावी अभियान में 'सरकारी नौकरी' को प्रमुख मुद्दा बना लिया है। उन्होंने ऐलान किया कि यदि उनकी सरकार बनी तो 20 दिनों के भीतर एक नया कानून लाकर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हर परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी मिले। यह सिर्फ वादा नहीं, हमारी प्रतिबद्धता है। सरकार बनने के 20 महीने के अंदर कोई भी परिवार ऐसा नहीं होगा, जिसमें एक सदस्य सरकारी नौकरी में न हो। तेजस्वी ने यह भी याद दिलाया कि उन्होंने 2020 विधानसभा चुनावों में भी 10 लाख नौकरियों का वादा किया था और अपनी 17 महीने की सरकार के दौरान उन्होंने पांच लाख नौकरियां दीं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में 2.77 करोड़ महिलाओं को ₹10,000 की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है, जिसे एनडीए के लिए गेम चेंजर माना जा रहा है। लेकिन क्या युवाओं को सरकारी नौकरी का वादा ज़्यादा लुभा रहा है? राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी और पलायन एक बड़ा मुद्दा है। ऐसे में नौकरियों का वादा युवाओं के लिए सबसे बड़ा आकर्षण बन जाता है। वहीं, राजनीतिक विश्लेषक सत्यनारायण मदन ने कहा कि आज भी पिछड़े वर्ग, दलित और ईबीसी वर्ग के युवाओं के लिए सरकारी नौकरी ही सबसे बड़ा सपना है। तेजस्वी ने इसी वर्ग को ध्यान में रखकर एक मजबूत दांव चला है, जो उनके पक्ष में जा सकता है।

तेजस्वी के समर्थन में और भी युवा

रोहतास के ही एक अन्य युवक अविनाश कुमार, जो दलित वर्ग से हैं, कहते हैं कि तेजस्वी कम से कम कुछ तो वादा कर रहे हैं और वह है सरकारी नौकरी। हम बेरोजगार युवा हैं। अगर कोई कह रहा है कि एक मौका दो, तो उसे मौका मिलना चाहिए। तेजस्वी पर हमें भरोसा है, वो कुछ बेहतर कर सकते हैं।

रोज़गार बनाम नकद सहायता

बिहार में बेरोजगारी कोई नया मुद्दा नहीं है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन तेजस्वी यादव का आरोप है कि वह वादा अब तक अधूरा है। उन्होंने चुनौती दी है कि मोदी इस मुद्दे पर बिहार में बोलें, लेकिन अब तक पीएम ने कोई जवाब नहीं दिया। वहीं, दूसरी ओर, नीतीश कुमार की सरकार की ₹10,000 की महिला सहायता योजना ने महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। आंकड़ों के अनुसार, अब तक 1.21 करोड़ महिलाओं को यह राशि मिल चुकी है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 2020 के विधानसभा चुनावों में 243 में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया था, ऐसे में महिला वोट बैंक निर्णायक हो सकता है। लेकिन दूसरी ओर युवाओं के लिए नौकरी की चाह इतनी प्रबल है कि यह चुनावी समीकरण बदल सकती है।

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