मुस्लिम आबादी अधिक, लेकिन वोटों का बिखराव बढ़ा
माइनॉरिटी कमिशन ऑफ़ बिहार के अनुसार, सीमांचल के किशनगंज में 67%, कटिहार में 42%, अररिया में 41% और पूर्णिया में 37% मुस्लिम आबादी है। यह वही इलाका है जहाँ सुरजापुरी और शेरशाहवादी मुस्लिम समुदायों का बड़ा प्रभाव है. लगभग 24 लाख सुरजापुरी और 14 लाख शेरशाहवादी मतदाता, जिनमें से शेरशाहवादी अति पिछड़ा वर्ग में गिने जाते हैं।
पिछले चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में पाँच सीटें जीती थीं और इस बार भी पार्टी लगभग उतनी ही सीटों पर आगे चल रही है। इससे साफ संकेत है कि मुस्लिम वोट एकमुश्त महागठबंधन की ओर नहीं गए। मुस्लिम वोटरों ने कहीं न कहीं नितीश कुमार पर भी विश्वास जताया है, इसलिये कहा जा रहा है कि NDA को भी मुस्लिम वोट मिला है. वोटों के इस बिखराव से एनडीए ने सीमांचल की 24 सीटों में से लगभग 18 पर बढ़त बनाई है।
‘घुसपैठिये’ का नैरेटिव और हिन्दू जातियों की लामबंदी
सीमांचल बांग्लादेश और नेपाल से सटा इलाका है। घुसपैठ और अवैध बांग्लादेशी बस्तियों का मुद्दा यहां वर्षों से चर्चा में रहा है, लेकिन इस चुनाव में यह पहली बार निर्णायक मुद्दे के रूप में उभरा। यादव, कुर्मी, मल्लाह, महादलित और दलित समुदायों के बीच यह नैरेटिव तेजी से फैला, जिसके चलते हिन्दू जातियों में अभूतपूर्व लामबंदी देखी गई।
जहाँ यादव समुदाय परंपरागत रूप से आरजेडी के साथ रहा है, वहीं कुर्मी और अति पिछड़े वर्गों का बड़ा हिस्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बना हुआ है। घुसपैठ और सुरक्षा से जुड़ी बहस ने इस बार इन हिंदू जातियों के भीतर एनडीए के लिए अतिरिक्त समर्थन पैदा किया।
मतदाता सूची से लाखों नाम कटे, विवाद तेज़ हुआ
निर्वाचन आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान बिहार में कुल 65 लाख वोटरों के नाम हटाए गए, जिनमें से 7,61,914 नाम सिर्फ सीमांचल की सूचियों से कटे। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नाम हटने से महागठबंधन ने इसे “टारगेटेड डिलीशन” बताया, जबकि एनडीए ने इसे सामान्य प्रक्रिया करार दिया।
स्थानीय विश्लेषकों का कहना है कि सीमांचल जैसे ध्रुवीकृत क्षेत्र में मतदाता सूची का यह बड़ा बदलाव चुनावी नतीजों को सीधे प्रभावित कर सकता है।
AIMIM की सेंध और महागठबंधन की मुश्किल
सीमांचल में यादव-मुस्लिम गठजोड़ हमेशा से आरजेडी का मजबूत आधार रहा है, पर AIMIM के उभार और मुस्लिम वोटों के बिखरने से महागठबंधन को इस बार नुकसान झेलना पड़ा। जिन सीटों पर पहले महागठबंधन को आसानी से बढ़त मिलती थी, वहां AIMIM और अन्य छोटे दलों के आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया।
गोविंदगंज जैसी सीटों पर स्थानीय जातीय समीकरण, दल-बदल और वोटों का विभाजन इतना गहरा है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों ही अपनी परंपरागत मजबूती बचाने के लिए संघर्ष करते दिखे। रुझानों में गोविन्दगंज में एलजेपी जीत की ओर बढ़ रही है.
जातीय गणित और विकास–सुरक्षा का समीकरण
सीमांचल में राजनीति सिर्फ जातीय समीकरणों से नहीं चलती। आर्थिक पिछड़ापन, पलायन, सांस्कृतिक पहचान और अधिक अहम घुसपैठ, ये सभी मुद्दे इस बार चुनावी बहस के केंद्र में थे। हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में नए किस्म का ध्रुवीकरण दिखा, जिसने चुनावी हवा को पूरी तरह बदल दिया।