कुर्था में सियासी तूफान, राजद, जदयू और इतिहास की कहानी
Bihar Elections 2025: कुर्था विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में उतार-चढ़ाव और परिवारों की छाप के लिए मशहूर है। 2025 चुनाव में जनता किसे चुनेगी, यह देखना होगा।
Kurtha Assembly Seat: बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और चुनावी तारीखों के एलान से पहले ही सियासी पारा चढ़ चुका है। सीटों के बंटवारे को लेकर बड़े गठबंधनों में खींचतान जारी है। इसी राजनीतिक हलचल के बीच द फेडरल देश की खास सीरीज ‘सीट का मिजाज’ में आज हम कुर्था विधानसभा सीट पर नजर डालेंगे।
कुर्था सीट राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। बिहार के तीसरे उपमुख्यमंत्री जगदेव प्रसाद भी इस सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। उनके परिवार ने भी इस सीट पर अपनी पकड़ बनाई है। उनके बेटे और बहू ने भी यहां दो-दो बार विधायक पद संभाला। वर्तमान में राजद के बागी कुमार वर्मा यहां से विधायक हैं।
कुर्था विधानसभा और अरवल जिला का परिचय
बिहार के 38 जिलों में से एक जिला अरवल है। यह जिला एक अनुमंडल और पांच ब्लॉक में विभाजित है। जिले में कुल दो विधानसभा सीटें हैं। अरवल और कुर्था। कुर्था विधानसभा सीट से पहला चुनाव 1952 में हुआ था।
कुर्था सीट का राजनीतिक इतिहास
1952: सोशलिस्ट पार्टी की जीत
कुर्था में पहला चुनाव सोशलिस्ट पार्टी के राम चरण सिंह ने जीता। उन्होंने कांग्रेस के उमैर साहब शाह को सिर्फ 561 वोट से हराया।
1957: कांग्रेस की वापसी
1957 में कांग्रेस के कामेश्वर शर्मा ने राम चरण सिंह को 1,522 वोट से हराकर जीत दर्ज की।
1962: प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा
1962 में राम चरण सिंह ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीत हासिल की और कांग्रेस के फिदा हुसैन को 2,469 वोट से मात दी।
1967 और 1969: जगदेव प्रसाद का उदय
1967 में संसोपा के जगदेव प्रसाद ने कांग्रेस के एस.पी. वर्मा को 16,201 वोट से हराया।
1969 में उन्होंने शोषित दल के प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस के बालेश्वर सिंह को 13,814 वोट से हराया। इसी दौरान जगदेव प्रसाद बिहार के तीसरे उपमुख्यमंत्री बने, हालांकि उन्होंने यह पद केवल चार दिन तक संभाला।
1972: कांग्रेस की वापसी
1972 में कांग्रेस के रामश्रय प्रसाद सिंह ने जगदेव प्रसाद को पीछे छोड़ते हुए 7,601 वोट से जीत हासिल की।
1977: शोषित समाज दल की जीत
1977 में नागमणि ने जनता पार्टी के एस.एम. जहीरुद्दीन को 1,280 वोट से हराया और कुर्था में जीत दर्ज की।
1980: जनता दल का उदय
1980 में जनता दल के सहदेव प्रसाद यादव ने शोषित समाज दल के नागमणि को 5,761 वोट से हराया।
1985: निर्दलीय की जीत
1985 में नागमणि, जो जगदेव प्रसाद के बेटे थे, ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की।
1990-1995: जनता दल का दबदबा
1990 में जनता दल के मुंद्रिका सिंह यादव और 1995 में सहदेव प्रसाद ने जीत हासिल की।
2000: राजद का प्रवेश
2000 में राजद के शिव बचन यादव ने जदयू के मुंद्रिका सिंह यादव को मात्र 656 वोट से हराया।
2005: लोजपा और जदयू की जीत
फरवरी 2005 में लोजपा की सुचित्रा सिन्हा ने जीत हासिल की। अक्तूबर 2005 में उन्होंने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और फिर से जीत दर्ज की।
2010 और 2015: जदयू का दबदबा
2010 में जदयू के सत्यदेव सिंह ने कुर्था सीट पर जीत हासिल की। 2015 में भी वे दोबारा विधायक बने।
2020: राजद की वापसी
2020 में दो बार के विधायक सत्यदेव सिंह को हार का सामना करना पड़ा और राजद के बागी कुमार वर्मा ने कुर्था सीट पर जीत हासिल की। बागी कुमार वर्मा ने बिहार सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
कुर्था विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में उतार-चढ़ाव का परिचायक रही है। सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस, जनता दल, राजद, लोजपा और जदयू सभी दलों ने यहां जीत का अनुभव किया है। हालांकि, सबसे लंबे समय तक छाप छोड़ने वाले नेता रहे जगदेव प्रसाद और उनके परिवार के सदस्य, जिन्होंने कुर्था की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। आगामी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि कुर्था की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।