नीतीश की चुप्पी और लालू की वापसी, बिहार चुनाव में दानापुर बना ‘हॉट सीट’

बिहार चुनाव में लालू यादव पहली बार रोड शो में उतरे, जेल में बंद रितलाल यादव के लिए बेटी श्वेता ने संभाला प्रचार, दानापुर में लालू-रामकृपाल की पुरानी जंग फिर ताज़ा हो चली है।

Update: 2025-11-05 09:10 GMT

बिहार चुनाव अभियान के बीच पहली बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने 3 अक्टूबर को सड़क पर उतरकर रोड शो किया। यह मौका खास इसलिए था क्योंकि लालू यादव किसी सामान्य प्रत्याशी के लिए नहीं, बल्कि अपने पुराने भरोसेमंद और इस बार जेल में बंद विधायक रितलाल यादव के लिए प्रचार करने निकले थे। दानापुर विधानसभा सीट से RJD के मौजूदा विधायक रितलाल इस बार फिर मैदान में हैं, लेकिन वे खुद प्रचार नहीं कर पा रहे, क्योंकि वे अप्रैल 2025 से भागलपुर जेल में बंद हैं।

रितलाल पर रंगदारी वसूलने समेत 40 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 2005 में बीजेपी नेता सत्यनारायण सिन्हा की हत्या का आरोप भी शामिल है। बावजूद इसके, लालू यादव ने उन्हें टिकट दिया और उनके लिए खुद मैदान में उतरे — यह जानते हुए भी कि यह कदम उनके विरोधियों को ‘जंगलराज’ के आरोप दोहराने का मौका देगा। लेकिन इस चुनावी जंग में लालू का असली निशाना बीजेपी उम्मीदवार रामकृपाल यादव हैं — वही नेता जो कभी उनके सबसे करीबी सहयोगी माने जाते थे।

 जब रामकृपाल ने छोड़ा लालू का साथ

2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लालू और रामकृपाल के बीच खटास इतनी बढ़ गई कि रामकृपाल ने RJD छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। यह घटना पटना की राजनीतिक गलियों में आज भी ‘महान विश्वासघात’ के नाम से याद की जाती है।

2014 में लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती ने पाटलिपुत्र सीट से चुनाव लड़ा और सामने थे रामकृपाल यादव — अब बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर। मीसा की पहली चुनावी पारी कड़वी साबित हुई, क्योंकि उन्होंने 40,000 से अधिक वोटों से हार झेली। 2019 में उन्होंने फिर कोशिश की, लेकिन नतीजा लगभग वही रहा।

आखिरकार, 2024 में मीसा भारती ने तीसरे प्रयास में पाटलिपुत्र जीत लिया, और वह भी 85,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से — यानी पहले की हार से दोगुने अंतर से जीत। इस जीत ने लालू परिवार को राहत दी, लेकिन रामकृपाल के राजनीतिक करियर पर ग्रहण लगा दिया।

दानापुर की जंग: सिर्फ सीट नहीं, ‘बदले’ की लड़ाई

दानापुर सीट इस बार एक प्रतीकात्मक युद्धक्षेत्र बन गई है — जहां एक ओर हैं जेल में बंद रितलाल यादव, और दूसरी ओर वही रामकृपाल यादव, जिन्होंने कभी लालू का घर छोड़ा था।यह सीट करीब चार लाख मतदाताओं वाली है, जिनमें यादव मतदाता 22%, अनुसूचित जाति (SC) 12% और मुस्लिम मतदाता करीब 6% हैं।

पिछले विधानसभा चुनाव में रितलाल ने बीजेपी की लगातार चार बार की जीत को रोक दिया था। इस बार बीजेपी ने सीट वापस जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है — यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, एमपी के सीएम मोहन यादव, और हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी तक को प्रचार में उतारा गया है।

“पापा निर्दोष हैं…” — बेटी श्वेता का अभियान

लालू के साथ इस रोड शो में सबसे अधिक सुर्खियां बटोरीं रितलाल यादव की 16 वर्षीय बेटी श्वेता सिंघानिया ने। श्वेता ने मीडिया से कहा  “पापा से ज़्यादा जरूरी इस दुनिया में कुछ नहीं। उन्हें साज़िश के तहत फंसाया गया है। ये साज़िश 8 महीने पहले शुरू हुई थी।”

RJD का कहना है कि श्वेता का अभियान लोगों के दिल को छू गया है, और ग्रामीण इलाकों में पार्टी को मजबूत समर्थन मिल रहा है। ग्रामीण मतदाता जहां करीब 34% हैं, वहीं शहरी मतदाता 66% हैं — लालू खुद इस वोट बैंक को साधने मैदान में उतरे।

 लालू का पुराना जादू फिर लौटा

दानापुर की तंग गलियों में लालू यादव का 15 किलोमीटर लंबा रोड शो देखने उमड़ी भीड़ ने पुराने दिनों की याद दिला दी। हरिदासपुर के दलित मतदाता कृष्ण मांझी बोले  “लालू यादव ने कभी गलत नहीं किया, गलती हमेशा उनके लोगों की रही।” वहीं एमडी आज़ाद, जो नट जाति से हैं, बोले “आज रेहड़ी वाले, गरीब दुकानदारों को सड़क से हटाया जा रहा है। लालू के ज़माने में ऐसा नहीं था। गरीबों के साथ तब इतना अन्याय नहीं होता था।”

 नीतीश कुमार की चुप्पी

दिलचस्प बात यह है कि 4 नवंबर को एनडीए के रोड शो में नीतीश कुमार नज़र नहीं आए। पार्टी के अंदर यह चर्चा है कि JD(U) के पुराने ‘नीतीशनिष्ठ’ कार्यकर्ताओं में दानापुर में बगावती रुझान है। इस सीट पर EBC मतदाता (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) की बड़ी आबादी है, जो मुकाबले का पलड़ा किसी भी ओर झुका सकती है।

दानापुर की लड़ाई सिर्फ एक विधानसभा सीट की नहीं है। यह लालू प्रसाद यादव के अतीत, विरासत और राजनीतिक भावनाओं की जंग है।

एक ओर जेल में बंद विधायक का परिवार अपनी ‘निर्दोषता’ की लड़ाई लड़ रहा है, तो दूसरी ओर वही रामकृपाल यादव हैं, जिन्होंने एक बार लालू का घर छोड़कर नई राह चुनी थी।

लालू के रोड शो ने इस लड़ाई को और रोमांचक बना दिया है — और बिहार की राजनीति एक बार फिर से ‘लालू बनाम विश्वासघात’ की नई कहानी लिख रही है।

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