बिहार में NDA का EBC से नाता, फिर भी सीट आवंटन में भारी भेदभाव
बिहार की चुनावी राजनीति में EBC को लेकर भाषण तो खूब होते हैं, लेकिन असली खेल ऊपरी जाति के प्रभाव का ही है। आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या EBC को वाजिब राजनीतिक हिस्सेदारी मिल पाती है या नहीं।
बिहार में सत्ता में मौजूद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), जिसकी अगुवाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करते हैं, अपनी "अत्यंत पिछड़ी जाति (EBC) केंद्रित राजनीति" की बातें बार-बार करता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। असल में, EBC नहीं, बल्कि उच्च जाति के लोग — जो कि ‘स्वर्ण’ कहलाते हैं — ही NDA की चुनावी राजनीति पर हावी नजर आते हैं। इस बात का अंदाजा अगले महीने होने वाले दो चरणों के विधानसभा चुनावों में NDA के उम्मीदवारों की सूची से भी लगाया जा सकता है, जहां ऊपरी जातियों के उम्मीदवार EBC समुदाय के मुकाबले कहीं अधिक हैं।
सिर्फ BJP नहीं, सहयोगी भी पीछे नहीं
यह समस्या केवल BJP की नहीं है, बल्कि बिहार के चार NDA सहयोगी दल — नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला जनता दल (यूनाइटेड) [JDU)], चिराग पासवान के लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) [LJP(RV)], जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) [HAM(S)] और उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक मोर्चा [RLM] भी इससे अछूते नहीं हैं। खास बात यह है कि LJP(RV), जो दलित नेतृत्व वाली पार्टी है, ने इस बार अधिक ऊपरी जाति के चेहरे चुनावी मैदान में उतारे हैं, जबकि दलित उम्मीदवार कम हैं।
महागठबंधन की भी वही कहानी
विपक्षी महागठबंधन के दो बड़े दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने भी EBC समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने में संतुलन नहीं बनाया है। EBC समुदाय के बड़े हिस्से की आवाज बनने की कोशिश के बावजूद, वे पर्याप्त उम्मीदवार मैदान में नहीं उतार पाए। पटना के वकील और EBC कार्यकर्ता अशोक कुमार ने द फेडरल को बताया कि हम मिथिलांचल, कोसी और सीमांचल जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से संगठित नहीं हैं। हम न तो ऊपरी जातियों की तरह शक्तिशाली हैं, न ही OBCs की तरह प्रभावशाली। नीतीश कुमार ने हमें सशक्त बनाया है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व अभी भी हमारे हिस्से का नहीं मिला। 2023 के बिहार जाति सर्वे के अनुसार, EBC का प्रतिशत 36.01 है, जो लगभग 110 छोटी-छोटी जातियों का समूह है।
NDA ने केवल 36 EBC उम्मीदवारों को मैदान में उतारा
इस साल के बिहार विधानसभा चुनावों में NDA के 243 उम्मीदवारों में से केवल 36 (14.81%) EBC से हैं। JD(U) ने 101 उम्मीदवारों में से 22 EBC के लिए चुने, जो उनके ऊपरी जाति उम्मीदवारों के बराबर हैं। वहीं, BJP ने 101 उम्मीदवारों में केवल 10 को EBC का हिस्सा बनाया है। LJP(RV) ने 29 उम्मीदवारों में से केवल चार को EBC समुदाय से चुना है, जबकि HAM(S) और RLM ने एक भी EBC उम्मीदवार नहीं उतारा।
NDA में ऊपरी जाति के उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा
कुल मिलाकर NDA ने 243 उम्मीदवारों में से 85 को ऊपरी जाति का उम्मीदवार बनाया है। BJP ने अकेले 49 उम्मीदवार ऊपरी जाति से चुने हैं। LJP(RV) में 29 उम्मीदवारों में से 10 ऊपरी जाति के हैं, जबकि दलित केवल 8 हैं।
लोकसभा चुनाव में भी ऊपरी जातियों का दबदबा
2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार से 40 सीटों में से 12 सांसद ऊपरी जाति के चुने गए थे। BJP ने 17 उम्मीदवारों में से 10 ऊपरी जाति के उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जो कुल उम्मीदवारों का लगभग 60% था। CSDS दिल्ली के सर्वे के अनुसार, 2020 विधानसभा चुनाव में लगभग 58% EBC वोटरों ने NDA को वोट दिया था। नीतीश कुमार ने दो दशकों में अपने लिए EBC वोट बैंक बनाया है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व अभी भी अपर्याप्त है। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि नीतीश कुमार ने EBC समुदाय को राजनीति में वापस केंद्र में लाया, लेकिन वह भी 36% प्रतिनिधित्व का बड़ा कदम नहीं उठा पाए। यह उनकी बड़ी कमी है।
गरीबी और पलायन की मार
जाति सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में लगभग एक तिहाई परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं, जिनमें अधिकांश SC, ST, EBC और OBC समुदाय के हैं। EBC समुदाय में गरीबी और पलायन की दर सबसे ज्यादा है। NDA ने बिहार चुनाव में केवल पांच मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जबकि राज्य की आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 17% है। BJP, HAM और RLM ने कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया।
महागठबंधन ने EBC के लिए नई पहल की
महागठबंधन ने EBC समुदाय को जोड़ने के लिए ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ पहल शुरू की है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनका अनुपात अब भी संतोषजनक नहीं है।