Bihar Elections 2025: पिछले नतीजे बताते हैं जहां नीतीश वहीं जीत

बिहार चुनाव की तारीखें तय हो चुकी हैं। लेकिन मुकाबला वही पुराना नीतीश बनाम बाकी। पिछले 20 साल के आंकड़े बताते हैं, सत्ता वहीं जाती है जहां नीतीश जाते हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2025-10-07 07:54 GMT

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है। 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में 243 सीटों के लिए मतदान होगा और 14 तारीख को नतीजे सामने होंगे। इस चुनाव में वैसे तो कई दल ताल ठोंक रहे हैं। लेकिन स्पष्ट तौर पर लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच बताई जा रही है हालांकि प्रशांत किशोर भी अपने पक्ष में माहौल की बात कर रहे हैं। इन सबके बीच यहां हम बात करेंगे कि आखिर वो कौन साथ एक्स फैक्टर जिसके फायदा मौजूदा सीएम नीतीश कुमार को मिला। बिहार की सरकार में राजनीतिक दल भले ही दाएं-बाएं होते रहे हों। लेकिन सीएम की कुर्सी एक तरह से उनके नाम हो गई। 

अगर पिछले 20 वर्षों के चुनावी इतिहास को देखें तो एक बात साफ है कि नीतीश जिसके साथ रहे उसकी जीत तय हो गई। यहां हम कुछ आंकड़ों के जरिए आपको बताने की कोशिश करेंगे। पिछले तीन विधानसभा चुनावों (2010, 2015, और 2020) के नतीजे इस बात की तस्दीक करते हैं कि बिहार की राजनीति का समीकरण अक्सर नीतीश कुमार के साथ जुड़ने या अलग होने से तय होता रहा है।

जब वोट आरजेडी को, लेकिन सरकार एनडीए की 

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के हिस्से के रूप में मैदान में थे।विपक्षी महागठबंधन, जिसकी अगुवाई राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कर रही थी, 75 सीटें (23.5% वोट शेयर) लेकर सबसे बड़ा दल बना, लेकिन सरकार एनडीए की बनी।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 74 सीटें (19.8% वोट शेयर) जीतीं — यानी सिर्फ़ एक सीट का अंतर, जबकि आरजेडी को बीजेपी से 3.7% अधिक वोट मिले थे।वोटों का यह अंतर बताता है कि नीतीश की रणनीति और एनडीए की एकजुटता ने सत्ता की डगर तय की।

जेडीयू तीसरे नंबर पर, लेकिन नीतीश रहे ‘किंग’

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (जनता दल-यूनाइटेड) को 2020 में 43 सीटें (15.7% वोट शेयर) मिलीं —वह तीसरे स्थान पर रही।फिर भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने  यह उनकी राजनीतिक केंद्रता और समझौता कौशल का प्रमाण था।

एनडीए सहयोगी दलों में:

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 4 सीटें,

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को भी 4 सीटें मिलीं।

महागठबंधन के दलों में:

कांग्रेस को 19 सीटें (9.6%),

सीपीआई (एमएल) को 12 सीटें (3.2%),

सीपीआई और सीपीआई (एम) को 2-2 सीटें मिलीं।

वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 1.3% वोट के साथ 5 सीटें जीतीं।

लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) को 5.8% वोट मिले, लेकिन वह केवल 1 सीट ही जीत सकी।

बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी 1-1 सीट पर जीत दर्ज की।

2015: जब आरजेडी-जेडीयू गठबंधन ने पलटा समीकरण

2015 के चुनावों में आरजेडी और जेडीयू साथ आए — और नतीजा पूरी तरह बदला।

आरजेडी ने 18.8% वोट के साथ 80 सीटें, जबकि जेडीयू ने 17.3% वोट के साथ 71 सीटें जीतीं।

यह नीतीश-तेजस्वी गठबंधन उस वक्त एनडीए के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।

बीजेपी, जो तब अकेली चुनाव लड़ी, 25% वोट शेयर के बावजूद 53 सीटों पर सिमट गई।कांग्रेस को 27 सीटें, अन्य को 8, और 4 निर्दलीय उम्मीदवार भी विधानसभा तक पहुंचे।

जब नीतीश की लहर ने बिहार बदल दिया

2010 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार और एनडीए गठबंधन ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया।जेडीयू ने 22.6% वोट शेयर के साथ 115 सीटें जीतीं — यह पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।बीजेपी ने भी 91 सीटें (16.5% वोट) जीतीं।दोनों दलों ने मिलकर 200 से अधिक सीटें हासिल कीं, जिससे नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने।वहीं, आरजेडी को 18.8% वोट के बावजूद सिर्फ़ 22 सीटें मिलीं। कांग्रेस 4 सीटों पर सिमट गई और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी जीतने में सफल रहे।

बिहार का चुनावी समीकरण नीतीश केंद्रित

पिछले 15 वर्षों में यह ट्रेंड साफ़ है कि नीतीश कुमार जहां खड़े होते हैं, वहां जीत का पलड़ा भारी हो जाता है।चाहे वह एनडीए में हों या महागठबंधन के साथ — सत्ता के समीकरण में उनकी भूमिका निर्णायक रही है। यानी कि आंकड़े नीतीश कुमार के करिश्मा पर मुहर लगाते हैं। हाल ही में द फेडरल देश टीम जब इंडिया गठबंधन के वोटर अधिकार यात्रा को अपने कैमरे में कैद कर रही थी। लोगों से सवाल कर रही थी तो नीतीश कुमार हर सवाल में आते थे। मसलन नीतीश ही क्यों। इस सवाल के जवाब में चाहे पटना हो, शेखपुरा हो, मुंगेर हो, भागलपुर हो, सीमांचल का इलाका हो हर जगह जवाब एक ही होता था कि उनका अपना समाज यानी कुर्मी समाज हमेशा से एकजुट रहा। ऐसे में सवाल यह भी था कि करीब 10 फीसद वोट से वो बिहार की कुर्सी पर कैसे हासिल कर सकते हैं। 

इस सवाल के जवाब में आम मतदाता का कहना था कि देखिए नीतीश कुमार के सरकार में आने से पहले हाल कैसे थे। सत्ता में जब वो आए तो बड़े बदलाव किए। समाज के हर वर्ग के लिए सर्वसुलभ रहे। बिहार में विकास की गंगा बही। 2005 से 2020 में कुछ प्रयोग किए मसलन आरजेडी के साथ गए। लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि सत्ता हासिल करने के लिए आरजेडी का साथ तो एक विकल्प हो सकता है। लेकिन सरकार चलाने में आरजेडी बेहतर विकल्प नहीं है लिहाजा दो बार गठबंधन को तोड़ भी दिया। 

अब बिहार में नीतीश क्यों इस सवाल के जवाब में लोकमंच एनजीओ से जुड़े पत्रकार अमर कुमार शर्मा कहते हैं कि यहां की जातीय व्यवस्था और राजनीतिक दल की जरूरत (वो बीजेपी की तरफ इशारा कर रहे थे) ने नीतीश के कद को बड़ा कर दिया। नीतीश कुमार अकेले कमाल नहीं कर सकते थे। लेकिन अगर साथ मिलता तो इतिहास रचते और आप देख भी सकते हैं कि सियासी सहबाला बदलते रहे। लेकिन सियासी दुल्हा यानी नीतीश कुमार सीएम की कुर्सी पर काबिज होने में कामयाब रहे। 

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