किंगमेकर नहीं, वोटकटवा बने प्रशांत किशोर! आंकड़ों ने खोला राज
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भले न जीत सकी, लेकिन 35 सीटों पर मिले वोट विजयी मार्जिन से अधिक रहे, जिससे कई जगह समीकरण बदले और वह स्पॉइलर बनकर उभरी।
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भले ही 238 में से 236 सीटों पर अपनी जमानत बचाने में नाकाम रही हो, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि कई विधानसभा क्षेत्रों में उसने स्पॉइलर यानी कि वोटकटवा की भूमिका जरूर निभाई। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 35 सीटें ऐसी थीं जहां जन सुराज को मिले वोट विजयी उम्मीदवार के मार्जिन से ज्यादा थे। इनमें 19 सीटें एनडीए ने जीतीं, 14 महागठबंधन के खाते में गईं, जबकि एआईएमआईएम और बीएसपी ने एक-एक सीट जीती।
हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि जन सुराज ने सीधे तौर पर नतीजों को पलटा, क्योंकि यह तय करना असंभव है कि उसके वोट किस ओर जाते। फिर भी यह साफ है कि पार्टी कई जगह मुकाबले को त्रिकोणीय बनाकर निर्णायक बन गई। 115 सीटों पर पार्टी तीसरे स्थान पर रही और एक सीट मरहौरा में दूसरे नंबर पर पहुंच गई।
किस सीट पर किसे हुआ फायदा?
35 सीटों में से एनडीए में यह स्थिति रही—
जेडीयू (Kishor की पूर्व पार्टी): 10 सीटें
बीजेपी: 5 सीटें
एलजेपी (RV): 3 सीटें
आरएलएम: 1 सीट
महागठबंधन में—
आरजेडी: 9 सीटें
कांग्रेस: 2 सीटें
सीपीएम, सीपीआई(एमएल)-एल और IIP: 1-1 सीट
238 सीटों में से—
129 सीटों पर जन सुराज तीसरे नंबर पर रहा।
1 सीट पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
73 सीटों पर उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे।
24 सीटों पर पांचवें स्थान पर रहे।
8 सीटों पर छठे नंबर पर,
2 सीटों पर सातवें नंबर पर और 1-1 सीट पर आठवें व नौवें नंबर पर जन सुराज के उम्मीदवार रहे।
जन सुराज का सबसे मजबूत प्रदर्शन मढ़ौरा सीट पर देखने को मिला। यहां पार्टी ने नवीन कुमार सिंह उर्फ अभय सिंह को मैदान में उतारा, जिन्हें:
कुल 58,190 वोट मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे।यहां RJD के जीतेंद्र कुमार राय ने 86,118 वोट पाकर जीत हासिल की। यह सीट जन सुराज की चुनावी पकड़ दिखाने का सबसे बड़ा उदाहरण बनी।
किन सीटों पर प्रभावित हुए महागठबंधन के उम्मीदवार?
चेरिया बरियारपुर
यहां जन सुराज के मजबूत प्रदर्शन ने राजद उम्मीदवार सुशील कुमार को पीछे धकेल दिया। नतीजा—जेडीयू को अप्रत्याशित जीत मिली। वोटों का बंटवारा राजद के खिलाफ गया।
शेरघाटी
इस सीट पर जन सुराज ने राजद प्रत्याशी प्रमोद वर्मा की जीत की संभावनाओं को कमजोर किया। यहां लोजपा (राम विलास पासवान) ने बढ़त बनाकर जीत दर्ज की। जन सुराज यहां तीसरी शक्ति के रूप में उभरा।
कहां प्रभावित हुए NDA के उम्मीदवार?
जोकीहाट
यहां जन सुराज के वोटों ने जेडीयू उम्मीदवार मंजर आलम के खिलाफ असर डाला। वोट बंटने का फायदा AIMIM को मिला, जिसने सीट पर कब्जा कर लिया।
चनपटिया
चनपटिया में जन सुराज के वोटों ने मुकाबला पूरी तरह बदल दिया।
बीजेपी उम्मीदवार उमाकांत सिंह पीछे रह गए,जबकि कांग्रेस आगे निकलकर सीट जीतने में सफल रही। यहां हजारों वोटों ने हार-जीत के अंतर को निर्णायक बनाया।
‘स्पॉइलर’ वाला तर्क क्यों उठा?
कई राजनीतिक विश्लेषक लंबे समय से यह कहते रहे कि प्रशांत किशोर अधिकतम ‘स्पॉइलर’ की भूमिका ही निभा सकते हैं। इसके पीछे दो प्रमुख तर्क थे ऊपरी जाति की पहचान: आलोचकों का मानना था कि किशोर का यह प्रोफाइल भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।
युवाओं और प्रवासन मुद्दों पर जोर: कुछ आलोचकों की राय थी कि वे बेरोजगारी और राज्य से पलायन जैसे मुद्दों पर युवा विरोधी-वोटों को महागठबंधन से काट सकते हैं।
सोशल मीडिया पर उनकी बड़ी मौजूदगी, जन संवाद यात्राएं और बड़े-बड़े दावे इन सबके बावजूद जन सुराज का ग्राउंड कनेक्शन वोटों में तब्दील नहीं हो पाया, लेकिन इतना जरूर हुआ कि पार्टी ने कई जगह समीकरण को उलझा दिया।
प्रशांत किशोर की पार्टी भले ही चुनावी जीत नहीं दर्ज कर सकी, लेकिन आंकड़े साफ बताते हैं कि वह किंगमेकर नहीं, बल्कि कई सीटों पर स्पॉइलर फैक्टर जरूर बनी।