क्या बिहार में प्रशांत किशोर की चमक पड़ी फीकी, चुनाव से पहले क्यों उठे सवाल
जनसुराज यात्रा के जरिए पीके ने उम्मीदें जगाईं, लेकिन टिकट विवाद और पैसों की राजनीति से जनता का भरोसा कमजोर हुआ। विश्वविद्यालय और स्थानीय लोगों की राय मिली-जुली है।
Prashant Kishor in Bihar Politics: साल 2022 का और तारीख 2 अक्टूबर थी। जनसुराज यात्रा के जरिए प्रशांत किशोर ने बिहार की जमीन पर दस्तक दी। अपनी यात्रा में वो बिहार की बदहाली का जिक्र करते थे और साथ ही साथ बदलाव की अपील करते थे। उनकी बातें लोगों को लुभाती भी थीं। दो साल तक पूरे बिहार को मथा और अपनी यात्रा को पार्टी का नाम दिया। यानी कि जनसुराज यात्रा की तब्दीली जनसुराज पार्टी में हो गई। बिहार की सियासी लड़ाई में उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन वो खुद चुनावी रेस से बाहर है, हालांकि उन्होंने पहले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। अब जबकि वो चुनावी मैदान से बाहर हैं तो उनके विरोधी उन्हें रणछोड़दास की संज्ञा से नवाज रहे हैं। सवाल ये है कि प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी की मौजूदगी जमीन पर कहां तक दिखती है। क्या वो सिर्फ आंकड़ों के जरिए अच्छी अच्छी बातें कर रहे हैं या जमीन पर उसका असर भी हो रहा है।
द फेडरल देश की टीम में हाल ही में बिहार का दौरा किया था। उस दौरे में आम लोग हों या खास एक ही सवाल कि प्रशांत किशोर क्या चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं या लोग सिर्फ उन्हें सिर्फ सुनने के लिए आते हैं। इस सवाल के जवाब में मोतिहारी जिले के डॉ मंजर नसीम कहते हैं कि पीके की नीति और नीयत दोनों में खोट है। यह जवाब आश्चर्य पैदा कर रहा था कि आखिर ऐसा क्यों। बता दें कि डॉ मंजर नसीम, पीके की कोर टीम के सदस्य थे लेकिन टिकट ना मिलने की वजह से अब अलग हैं। इस हकीकत को जानने के बाद हमने पूछा कि यह आपका गुस्सा भी हो सकता है। इसके जवाब में डॉ मंजर कहते हैं कि आप ऐसा मान सकते हैं। लेकिन जिस शख्स ने वादा किया हो कि चुनावी लड़ाई में समर्पित कार्यकर्ताओं को टिकट मिलेगा और वैसा ना हो तो। देखिए, प्रशांत किशोर अपने मूल मुद्दों से भटक चुके हैं। पैसे वालों को तवज्जो दे रहे हैं और आम कैडर ठगा महसूस कर रहा है। बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू, हम, आरएलएसपी के बारे में वो कहा करते थे कि यहां तो टिकटों की खरीद बिक्री होती है। लेकिन वो कहां अछूते हैं। ऐसे में आप बदलाव की उम्मीद कैसे करेंगे।
डॉ मंजर नसीम की ही तरह कैमूर जिले के शारिवाहन डिग्री कॉलेज के डॉक्टर शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि इसमें दो मत नहीं कि प्रशांत किशोर अच्छी बातें कर रहे हैं। लेकिन वो सिर्फ किताबों के पन्नों तक सीमित है। आप के एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें करते हैं। लेकिन उन्हीं दलों से पैसे लेने से परहेज नहीं। जब कोई सवाल करता है तो जवाब देते हैं कि वो तो उनका पेशा था। सबसे बड़ी बात यह है कि जब आप किसी के ऊपर आरोप लगाते हैं तो खुद की तरफ तीन अंगुलियां भी निशाना साध रही हैं उसे देखना चाहिए। डॉ शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि देखिए पानी से आधी भरी गिलास वाली बात है। आप उसे आधा खाली भी कह सकते हैं। पीके, बिहार की नकारात्मक छवि को पेश कर रहे हैं। जहां तक लोगों के आकर्षित होने की बात है उनकी संख्या कम है। हालांकि आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के छात्रों की राय मिलीजुली है।
आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय की छात्रा प्रीति कहती हैं कि देखिए सभी नेता गिरगिट की तरह हैं। दो साल पहले एक शख्स (वो पीके की तरफ इशारा कर रही थीं) आता है, वो बिहार की बुनियादी बातों जैसे भ्रष्टाचार, स्कूली शिक्षा, पलायन की बात करता है। चुनावी समर में कूदता है लेकिन उनके खुद के कार्यकर्ता टिकट बंटवारे में पैसों के लेनदेन की बात करते हैं। ऐसे में भरोसा टूटता है, आप लोगों की उम्मीद तोड़ देते हैं। यह बात सच है कि जनसुराज यात्रा के दौरान पीके ने उम्मीद जगाई।लोगों को भी लगने लगा कि वास्तव में बदलाव हो सकता है। लेकिन अब वो चमक थोड़ी फीकी पड़ गई है। हालांकि विश्वविद्यालय के एक और छात्र धर्मेंद्र की राय थोड़ी अलग है। वो कहते हैं कि विरोधी दल डरे हुए हैं और इस वजह से अनर्गल आरोप लगा रहे हैं। इस जवाब के बाद हमने पूछा कि क्या आप प्रशांत किशोर को मत देंगे तो एक गहरी चुप्पी माहौल को बता गई। विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ भोजपुर, छपरा, गोपालगंज, सीवान, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में गली, चट्टी पर बैठे लोगों ने कहा कि देखिए सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होता। आप जो कहते हैं उसे आदर्श रूप में पेश करना चाहिए। लेकिन प्रशांत किशोर के बारे में जिस तरह से बातें सामने आ रही है वो निराश करती है। तीन साल पहले लगता था कि कोई शख्स है जो बिहार को बदलने के बारे में सोचता है। लेकिन जिस तरह से टिकट बंटवारे में धांधली की खबरें सामने आई हैं उससे निराशा हो रही है।