चार फ़ीसदी की जंग, क्या 2020 के अधूरे सपने को पूरा कर पाएंगे तेजस्वी यादव
बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव ने अखिलेश यादव के एम-वाई + ओबीसी फॉर्मूले पर दांव खेला है। यादव, निषाद और कुशवाहा समाज को जोड़ने की कोशिश तेज हुई है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार महागठबंधन ने अपनी पूरी रणनीति सोशल इंजीनियरिंग के इर्द-गिर्द बुनी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के 2024 वाले “एम-वाई + ओबीसी” मॉडल को तेजस्वी यादव अब बिहार में आज़माने जा रहे हैं। जिस तरह अखिलेश ने मुस्लिम-यादव समीकरण को मज़बूत रखते हुए गैर-यादव पिछड़े वर्गों को जोड़ा था, तेजस्वी ने भी उसी फॉर्मूले को स्थानीय संदर्भ में ढालने की कोशिश की है।
यादव-मल्लाह समीकरण की नई परिभाषा
महागठबंधन ने इस बार तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम चेहरा घोषित किया है। यह जोड़ी एक बड़े सामाजिक संदेश की तरह देखी जा रही है तेजस्वी यादव, जो 15% यादव आबादी के नेतृत्वकर्ता हैं, वहीं मुकेश सहनी “सन ऑफ मल्लाह” के रूप में 5.5% मल्लाह-निषाद वोटरों को साधने का प्रयास कर रहे हैं।
बिहार की लगभग 30 सीटों पर निषाद समुदाय और 70 से 75 सीटों पर यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में यह गठजोड़ सामाजिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर एनडीए के वोटबैंक में सेंध लगाने का बड़ा प्रयास है।
कुशवाहा समुदाय पर ‘बड़ा दांव’
तेजस्वी यादव ने इस बार कुशवाहा (कोइरी) समाज से एक दर्जन से ज़्यादा उम्मीदवार उतारे हैं। यह वर्ग ओबीसी में यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है और परंपरागत रूप से जेडीयू-बीजेपी के साथ जुड़ा रहा है।महागठबंधन की यह कोशिश है कि नीतीश कुमार के लंबे समय से टिके इस वोटबैंक में दरार डाली जाए।कुशवाहा समाज बिहार की आबादी का लगभग 4.21% है और 20-25 विधानसभा सीटों पर हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाता है।
महागठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग
महागठबंधन का लक्ष्य स्पष्ट है 63% पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट, 19.6% दलित और 17.7% मुस्लिम आबादी को एक मंच पर लाना। इसके लिए हर दल को जातीय और सामाजिक आधार पर टिकट बांटने की पूरी आज़ादी दी गई है —
आरजेडी ने अपने कोटे की 143 सीटों में 51 यादव, 19 मुस्लिम, 16 कुशवाहा, 4 निषाद, 3 धानुक और 15 सवर्ण उम्मीदवार उतारे।कांग्रेस ने 61 सीटों में 21 सवर्ण, 11 दलित, 7 अति पिछड़ा और 3 कुशवाहा प्रत्याशी दिए। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने 15 में से 5 उम्मीदवार निषाद समाज से उतारे।
माले और वामपंथी दलों ने ‘जिसकी जितनी भागीदारी’ फ़ॉर्मूले पर टिकट वितरण किया है। इस तरह महागठबंधन ने जातीय संतुलन बनाए रखते हुए हर समाज को प्रतिनिधित्व देने की रणनीति अपनाई है।
4% वोटों का अंतर पाटने की चुनौती
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 41% वोट और महागठबंधन को 37% वोट मिले थे — यानी महज़ 4% का अंतर सत्ता से दूर कर गया था।तेजस्वी यादव इस बार उस “चार फ़ीसदी” के फासले को मिटाने के लिए पूरा गणित लगा चुके हैं।उन्होंने सहनी को डिप्टी सीएम चेहरा बनाकर मल्लाह समाज को साथ जोड़ा और कुशवाहा उम्मीदवार बढ़ाकर जेडीयू के पारंपरिक वोट बैंक पर चोट की है। तेजस्वी की योजना साफ है — अगर 5-10% ओबीसी और अति पिछड़ा वोट एनडीए से खिसकता है, तो बिहार का सियासी समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
NDA का प्रदर्शन:
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शानदार 74 सीटें जीतीं, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] को 43 सीटें मिलीं। सहयोगी दलों में वीआईपी (VIP) और हम (HAM-S) को 4-4 सीटें मिलीं।
महागठबंधन की स्थिति:
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जगह बनाई। कांग्रेस ने 19 और वाम दलों ने कुल 16 सीटें जीतीं, जिनमें CPI(ML) की 12, CPI की 2 और CPI(M) की 2 सीटें शामिल थीं।
25% वोट अन्य दलों के खाते में
2020 में करीब 25% वोट अन्य दलों और निर्दलीयों में बंटे।
LJP: 11.10% वोट (1 सीट)
AIMIM: 1.24% वोट (5 सीटें, सीमांचल क्षेत्र में मज़बूत उपस्थिति)
BSP: 1.49% वोट
निर्दलीय उम्मीदवारों: 8.76% वोट
RLSP: 0.32% वोट
इस बिखराव का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि कई सीटों पर जीत-हार 1000 वोटों से भी कम अंतर पर तय हुई।
यूपी वाला “मॉडल” कितना कारगर होगा?
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का “एम-वाई + नॉन-यादव ओबीसी” फॉर्मूला बीजेपी को मजबूत चुनौती देने में सफल रहा था। तेजस्वी यादव उसी तर्ज पर बिहार में “एम-वाई + कुशवाहा + निषाद” गठजोड़ के जरिए सत्ता में वापसी का सपना देख रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या यह सामाजिक समीकरण बिहार में भी उतनी ही मजबूती से काम करेगा जितना यूपी में किया था, या एनडीए अपने पुराने वोटबैंक को बचाने में सफल रहेगा।
तेजस्वी यादव का यह दांव राजनीतिक रूप से बेहद सोचा-समझा कदम है। “अखिलेश फॉर्मूला” अगर बिहार की ज़मीन पर भी कारगर साबित होता है, तो यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों की नई परिभाषा साबित होगा।