सुस्त बाजार में तेजी के लिए चीन का भारी भरकम डोज, भारत पर कैसे पड़ेगा असर?

चीन ने अपने सुस्त बाजार में जान फूंकने के लिए भारी भरकम पैकेज का ऐलान किया है। यहां हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि उसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ सकता है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-01 06:19 GMT

Chinese Stimulus Package:  एक कहावत है कि यदि समय रहते नहीं चेते तो हालात को संभालना मुश्किल हो जाता है। चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर पूरी दुनिया पर दिखाई दे रहा है। इसे आप ऐसे समझिए। अगर कोई अमीर व्यक्ति हर दिन कम से कम दस लाख की खरीद अलग अलग सेक्टर से करता है और उसकी आमदनी में कमी आ जाए तो क्या होगा। जाहिर सी बात है कि अलग अलग सेक्टरों के लिए डिमांड कम हो जाएगी। कुछ ऐसी ही स्थिति चीन की बनी हुई थी। डिमांड और सप्लाइ में गैप की वजह से अर्थव्यस्था बेजान हो गई। हालांकि अब उसमें जान फूंकने के लिए भारी भरकम पैकेज का ऐलान किया गया है। चीन के सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की है। पहले चीन ने अपनी आर्थिक सेहत को दुरुस्त करने के लिए क्या कदम उठाए हैं पहले उसके बारे में जानेंगे फिर भारत पर किस तरह असर हो सकता है उसे समझेंगे। 

पीबीओसी की नीति में बदलाव के बाद सबसे महत्वपूर्ण बेंचमार्क दर माना जाता है - 1.7 प्रतिशत से 1.5 प्रतिशत तक। पिछले पैटर्न को देखते हुए, बाजार 10-आधार-बिंदु दर में कई कटौती की उम्मीद कर रहे थे, इसलिए 20-आधार-बिंदु की कटौती उम्मीद से थोड़ा मजबूत कदम है? हालांकिइसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या हम आगे और कटौती देखते हैं, या क्या पीबीओसी आज के नीति पैकेज के बाद प्रतीक्षा-और-देखो मानसिकता में आ जाता है।


भारत पर कैसे पड़ेगा असर

चीन में पैकेज के ऐलान के बाद वहां के स्टॉक मार्केट में तेजी आई है। ऐसे में यह समझना भी जरूरी है कि भारत पर कैसे असर पड़ सकता है। इस सिलसिले में दे फेडरल देश ने ओमनीसाइंस कैपिटल के EVP & Portfolio Manager अश्विनी कुमार शामी से खास बातचीत की। हमारा पहला सवाल यह था कि चीन के इस ऐलान को आप कैसे देख सकते हैं। उस सवाल के जवाब में कहा कि 20 साल पहले चीन की अर्थव्यवस्था में डेट टू जीडीपी का अनुपात ज्यादा रहा है। इसे सामान्य तरीके से समझें तो चीन ने लोन की कीमत पर विकास किया। चीन की बहुत सी कंपनियां अभी हाल ही में वैश्विक स्तर डिफॉल्ट हुईं। ऐसे में चीन पर निवेशकों, आम लोगों का भरोसा टूटा। अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए चीन ने फिर लोन का ही सहारा ले रहा है तो आने वाले समय में नकारात्मक असर चीन पर ही होगा।

जहां तक भारत की बात है तो कुछ क्षेत्रों में असर पड़ सकता है। लेकिन बड़े पैमाने पर भारत पर नकारात्मक असर की संभावना बेहद कम है। उन्होंने कहा कि अब मुक्त दुनिया में कोई भी देश इंपोर्ट या एक्सपोर्ट पर किसी खास देश पर निर्भर नहीं है। सभी लोग अपने लिए अवसर की तलाश कर रहे हैं। अभी आपने देखा होगा कि पश्चिम के देशों से चीन का संबंध किस स्तर पर है। जियो पोलिटिकल रीजन भी आर्थिक तरक्की और स्थायित्व की बड़ी वजह है। लिहाजा ये तो मौकों को खोजने की जरूरत है।

अगर आप सेमीकंडक्टर के फील्ड को देखें तो यूएस और चीन के बीच तनातनी छिपी नहीं है। ताइवान के साथ चीन के तनाव के बीच यह अहम मुद्दा है। अब जिस तरह से रिलायंस भी सेमीकंडक्टर की फील्ड में उतरने जा रहा है वैसे में जाहिर सी बात है कि आर्थिक प्रतियोगिता कठिन होने जा रही है और उसके असर से चीन अछूता नहीं रह सकता। आप कुल मिलाजुलाकर यह कह सकते हैं कि चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए जिस भारी भरकम डोज का ऐलान किया है वो डोज ही बड़ी परेशानी की वजह बन सकता है। 

मार्गेज दरों में कटौती

पैन के अनुसार मौजूदा मार्गेज दरों में औसतन लगभग आधे प्रतिशत की कमी की जाएगी। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की प्रमुख अर्थशास्त्री बेट्टी वांग ने कहा कि इस कदम से नए और मौजूदा बंधकों के बीच ब्याज दर का अंतर कम हो जाएगा, जो पिछले कुछ वर्षों में घर खरीदने वालों के लिए अग्रिम रूप से गृह ऋण चुकाने के लिए एक प्रमुख प्रेरणा रहा है। मौजूदा मार्गेज बंधक दरों में घोषित कटौती पहले बताई गई दरों से कम है। हालांकि पीबीओसी का कहना है कि कटौती से घर के मालिकों के लिए ब्याज भुगतान में 150 बिलियन युआन की कमी आएगी। लेकिन घरों को होने वाले शुद्ध हस्तांतरण की भरपाई जमा दरों में नियोजित कमी से हो जाएगी। 


पीबीओसी द्वारा सबसे महत्वपूर्ण उपायों के साथ केंद्रीय बैंक ने आरआरआर में आधे प्रतिशत की कटौती की भी घोषणा की - नकदी की वह राशि जिसे वाणिज्यिक बैंकों को आरक्षित के रूप में रखना चाहिए। इवांस-प्रिचर्ड ने कहा कि आरआरआर में कटौती से बैंकों की लाभप्रदता पर दबाव कम करने में मदद मिलेगी। क्योंकि इससे पीबीओसी में बंद उनकी परिसंपत्तियों का हिस्सा कम हो जाएगा, जिससे उन्हें कम दर पर रिटर्न मिलेगा। लेकिन इसका सीधा मतलब यह नहीं है कि इससे उधार देने में मजबूती आएगीखासकर तब जब दर गलियारे को छोटा करने का मतलब है कि आरआरआर में कटौती से मिलने वाली तरलता को पीबीओसी के रेपो परिचालन द्वारा जल्दी से खत्म कर दिया जाएगा।

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