भारत-अमेरिका टकराव तेज़, महंगाई- मुद्रा नीति के दोराहे पर अर्थव्यवस्था
अमेरिका के टैरिफ दबाव के बीच भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए रूसी तेल खरीद जारी रखे हुए है और निर्यातकों को समर्थन देने की तैयारी में है।;
भारत और अमेरिका के बीच मानसिक लड़ाई तेज हो गई है। भारत एक ओर अमेरिकी दबाव का विरोध करता दिख रहा है, वहीं दूसरी ओर वह अपने निर्यातकों को समर्थन देने, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और घरेलू उत्पादन को मज़बूत करने की तैयारी भी कर रहा है ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से रूस के साथ व्यापार करने पर 25% टैरिफ और जुर्माने की धमकी से उभरते संकट का सामना किया जा सके।
राष्ट्रीय हित पहले
भारत स्पष्ट कर चुका है कि वह अपने "राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगा"। इसके साथ ही घरेलू निर्यातकों को ब्रांड बनाने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बिना सब्सिडी के टिकने की सलाह दी जा रही है जो न तो आसान है और न ही उचित।याद रहे, 1991 में व्यापार उदारीकरण के बाद जो बढ़ोतरी और विकास हुआ था, उसे 2014 के बाद सरकार ने बिना किसी सीधी वजह के उलट दिया। भारत ने घरेलू उद्योगों की रक्षा के नाम पर टैरिफ और गैर-टैरिफ दीवारें खड़ी कीं और कई सब्सिडी योजनाएं शुरू कीं, जिससे प्रतिस्पर्धा की भावना कमजोर पड़ी।शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में ‘स्थानीय उत्पादन’ को बढ़ावा देने की अपील की और भारतीय सामान खरीदने पर जोर दिया।
मूडीज़ की चेतावनी
मूडीज़ रेटिंग्स ने सोमवार (4 अगस्त) को चेताया कि अगर भारत की अमेरिका तक पहुंच सीमित हुई, तो उसका विनिर्माण क्षेत्र प्रभावित हो सकता है, भले ही घरेलू मांग मज़बूत बनी रहे।
रूसी तेल: दबाव में भी डटे भारत के इरादे
भारत ने अभी तक रूसी तेल खरीदना बंद नहीं किया है, जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ उस व्यापार को यूक्रेन युद्ध के लिए धन मुहैया कराने वाला मानते हैं।ब्लूमबर्ग ने बताया कि पिछले सप्ताहांत में कम से कम चार टैंकरों ने भारतीय रिफाइनरियों में रूसी क्रूड ऑयल की आपूर्ति की — जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, नायरा एनर्जी और ओएनजीसी की मंगलौर रिफाइनरी शामिल हैं। कई और टैंकर सिका और मुंद्रा बंदरगाह की ओर बढ़ रहे हैं।
आरबीआई के सामने कठिन फैसले
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक शुरू
फरवरी से रेपो रेट में 100 आधार अंकों की कटौती
गैर-रूसी कच्चे तेल के आयात से महंगाई का खतरा
ब्याज दरें कम होने पर भी कर्ज प्रवाह धीमा
अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरें यथावत रखीं — रुपये और पूंजी प्रवाह पर असर
रूसी तेल छोड़ने की कीमत
एक रिपोर्ट के अनुसार, तीन रूसी तेल वाले टैंकरों में से दो ने भारत की ओर आने की बजाय चीन और मिस्र की ओर रुख किया, जब अमेरिका ने 115 ईरान-सम्बंधित व्यक्तियों, कंपनियों और जहाजों पर प्रतिबंध लगाए।हालांकि, भारत ने उसी समय गैर-रूसी तेल खरीदना भी जारी रखा। इंडियन ऑयल ने सितंबर के लिए अमेरिका (4.5 मिलियन बैरल), कनाडा (5 लाख बैरल) और मध्य पूर्व (20 लाख बैरल) से 70 लाख बैरल तेल खरीदा। लेकिन पिछले एक हफ्ते में किसी भी तेल पीएसयू ने रूसी तेल नहीं मांगा है।
सच्चाई: Kpler के अनुसार, जून में भारत के कुल तेल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 45% थी, जो जुलाई में गिरकर 33% रह गई यानी भारत पहले से ट्रंप की टैरिफ नीति के लिए तैयारी कर रहा था।
कितनी महंगी पड़ेगी रूस से दूरी?
न्यूयॉर्क टाइम्स ने दो भारतीय अधिकारियों के हवाले से कहा कि भारत रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा। Kpler के विश्लेषक सुमित रितोलिया ने बताया कि रूसी तेल का लैंडिंग कॉस्ट अन्य की तुलना में प्रति बैरल $4-5 सस्ता है। इससे भारत का वार्षिक तेल बिल $4-5 अरब बढ़ जाएगा और महंगाई भी।पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने चेतावनी दी थी कि रूसी तेल बंद करने से तेल की कीमतें $130-140 प्रति बैरल तक जा सकती हैं। 2 अगस्त को ब्रेंट क्रूड $68.5 प्रति बैरल था।
प्राइवेट कंपनियों पर असर ज्यादा
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी तेल कंपनियों पर दबाव कम होगा क्योंकि वे 75-85% उत्पादन घरेलू मांग के लिए करती हैं। लेकिन रिलायंस और नायरा जैसी कंपनियों पर दोहरा दबाव पड़ेगा क्योंकि वे निर्यात पर निर्भर हैं।
पद बदलते देश, नीति बदलते वक्त
MEA ने बयान में कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ का रूसी व्यापार पर अब कड़ा रुख पहले के रुख से उलट है।फरवरी 2022 में जब युद्ध शुरू हुआ था, तब भारत ने रूसी तेल खरीदना शुरू किया (जो पहले केवल 0.2% था), क्योंकि रूस ने भारी छूट दी थी। जून 2023 से भारत ने डॉलर की बजाय चीन की युआन में भुगतान करना शुरू किया।मई 2024 में, अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने खुलासा किया कि अमेरिका ने भारत को रूसी तेल खरीदने की मंज़ूरी दी थी — ताकि वैश्विक तेल कीमतें नियंत्रण में रहें।विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी स्पष्ट किया कि भारत की नीति कभी डॉलर को निशाना बनाने की नहीं रही।
निर्यातकों के लिए राहत की तैयारी
सरकार निर्यातकों को राहत देने के लिए बहुस्तरीय रणनीति पर काम कर रही है। बजट में घोषित 2,250 करोड़ रुपये की एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन (EPM) की शुरुआत की जा रही है।
उद्देश्य:
आसान कर्ज
सीमा-पार वित्त सुविधा
गैर-टैरिफ बाधाओं से निपटने के लिए MSMEs को समर्थन
वस्त्र, समुद्री और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के निर्यातक पहले ही केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से मिल चुके हैं।
क्रेडिट संकट और ब्याज दरों की उलझन
MSME सेक्टर को कर्ज मिलने में कठिनाई हो रही है क्योंकि बैंक जोखिम लेने से कतरा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएं, ऑटोमोबाइल और रत्न-जवाहरात जैसे क्षेत्रों में चिंता बढ़ रही है।RBI की मौद्रिक नीति समिति की बैठक से अब उम्मीद है कि वह ब्याज दरों पर अहम फैसला करेगी। एक तरफ महंगाई का खतरा, दूसरी ओर कर्ज प्रवाह धीमा होना। यह तय करना कठिन हो गया है।डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य और निवेश प्रवाह दोनों पर अमेरिकी ब्याज दरों का असर पड़ता है।
भारत और अमेरिका के बीच भू-राजनीतिक तनाव आर्थिक क्षेत्र में खुलकर दिखने लगे हैं। भारत अपने राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है, लेकिन आगे की राह आसान नहीं है।