अमेरिका में भारतीय टेक कर्मचारियों को वापस भेजने की मांग पर बवाल, ‘डी-इंडियनाइज़’ करने को लेकर विवाद

मार्क मिशेल ने वरिष्ठ H-1B टेक कर्मचारियों को देश से निकालने की मांग की, कहा- वे आर्थिक रूप से 10 अवैध प्रवासियों के बराबर हैं

Update: 2025-12-12 07:56 GMT
मार्क मिशेल ने कहा कि वे कंपनियों को इस प्रक्रिया में मदद करने के लिए एक कंसल्टेंसी शुरू करने का इरादा रखते हैं। फोटो: X/@honestpollster
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एक प्रमुख अमेरिकी टिप्पणीकार और पॉलस्टर मार्क मिशेल ने यह सुझाव देकर विवाद खड़ा कर दिया है कि बड़ी अमेरिकी कंपनियों को खुद को “डी-इंडियनाइज़” करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे कंपनियों को इस प्रक्रिया में मदद करने के लिए एक कंसल्टेंसी शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

मिशेल की ये टिप्पणियाँ X पर पोस्ट की, जिसके बाद सोशल मीडिया पर इस बात पर व्यापक बहस शुरू हो गई कि अमेरिकी टेक सेक्टर में भारतीय पेशेवरों की क्या भूमिका है।

उन्होंने लिखा, “मैंने अपने जीवन में कभी किसी चीज़ को इतना चाहा नहीं, जितना कि एक नई कॉर्पोरेट कंसल्टेंसी बनाना, जो बड़ी कंपनियों को डी-इंडियनाइज़ करने में मदद करे।”

एक यूजर के जवाब में उन्होंने कहा, “मैं मरने तक काम करूंगा।”

ये टिप्पणियाँ उस समय आईं जब कुछ दिन पहले ही रासमुसेन रिपोर्ट्स के सीईओ मिशेल ने एक पॉडकास्ट में H-1B वीज़ा प्रोग्राम के तहत अमेरिका में आने वाले भारतीय पेशेवरों की बढ़ती संख्या की आलोचना की थी।

रासमुसेन रिपोर्ट्स अमेरिका की प्रमुख पॉलिंग संस्थाओं में से एक है, जो राजनीति, अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता भावना पर अपने दैनिक सर्वेक्षणों के लिए जानी जाती है।

वरिष्ठ H-1B कर्मचारियों पर निशाना

अमेरिकी कंपनियों को “डी-इंडियनाइज़” करने की इच्छा जताने वाली पोस्ट से पहले मिशेल ने कहा था कि वरिष्ठ H-1B टेक कर्मचारियों को वापस भेजना प्राथमिकता होनी चाहिए।

स्टीव बैनन के वार रूम पॉडकास्ट में बोलते हुए उन्होंने H-1B सिस्टम में भारतीय कर्मचारियों के प्रभुत्व की आलोचना की।

उन्होंने तर्क दिया कि एप्पल जैसी बड़ी कंपनी में एक वरिष्ठ H-1B डेवलपर को वापस भेजना आर्थिक रूप से 10 अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के बराबर है।

उन्होंने कहा, “एप्पल में हर एक सीनियर H-1B डेवलपर को यदि हम वापस भेजें, तो यह आर्थिक रूप से 10 गैर-कानूनी प्रवासियों को निकालने के बराबर होगा। मुझे नहीं पता हमने यह काम कल ही क्यों नहीं किया। हाँ, इनमें से कई एंट्री-लेवल भी हैं, लेकिन कई बहुत अधिक कमाई भी करते हैं।”

यह पॉडकास्ट 8 दिसंबर को जारी हुआ था।

पॉलस्टर ने यह भी दावा किया कि 1.2 करोड़ (12 मिलियन) अमेरिकी टेक कर्मचारियों को नौकरी से बाहर कर दिया गया है क्योंकि “विदेशी वर्कफोर्स” ने सिलिकॉन वैली को “इंडिफाई” कर दिया है।

उन्होंने कहा, “सिलिकॉन वैली में देश के सबसे ऊँचे रियल-एस्टेट दाम हैं। यहाँ का वर्कफोर्स लगभग दो-तिहाई विदेशी मूल का है। वॉलमार्ट की कुछ बिल्डिंग्स में 85–95% कर्मचारी भारतीय मूल के थे। ये लोग विशेष रास्तों से आते हैं और नौकरियाँ ले जाते हैं।”

अमेरिकियों को पीछे धकेलने का आरोप

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियाँ कम-लागत वाले प्रवासी श्रम पर निर्भर हैं और इस वजह से अमेरिकी कर्मचारियों को दरकिनार कर दिया जाता है।

मिशेल के अनुसार, अनुभवी अमेरिकी इंजीनियरों की अनदेखी की जा रही है और उनकी जगह “तीसरी दुनिया के युवा इंजीनियरों की अंतहीन आपूर्ति” पर निर्भरता बढ़ रही है।

उन्होंने कहा, “मेरे जैसे लोग, जिनके परिवार हैं, जिनकी लागत थोड़ी अधिक है, जिन्हें कुछ बढ़ोतरी भी मिली है। मेरी स्वास्थ्य बीमा लागत ज्यादा है। हमें बदलना बहुत आसान है और मुझसे ही मेरे प्रतिस्थापन को ट्रेन कराया जाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “90,000 डॉलर कमाने वाला एक H-1B डेवलपर, 9 डॉलर प्रति घंटे कमाने वाले 10 अवैध श्रमिकों के बराबर है।”

मिशेल की “डी-इंडियनाइज़” टिप्पणी ने ऑनलाइन तीखी आलोचना को जन्म दिया है और कई यूजर्स ने उन्हें नस्लभेदी करार दिया है।

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