वोडाफोन आइडिया को एक और जीवनदान, केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई

केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया को एक बड़ी राहत दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र ने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 49% कर दी है।;

Update: 2025-03-31 09:14 GMT

संकट में घिरी टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया के लिए केंद्र सरकार की तरफ से ये बड़ी राहत की खबर है। वोडाफोन आइडिया में केंद्र सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ा दी है। अब पहले की लगभग 23% हिस्सेदारी की जगह सरकार 49% की हिस्होसेदार बन गई है।

इक्विटी में बदलेगी बकाया राशि

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार ने वोडाफोन आइडिया (Vi) कंपनी की ₹36,950 करोड़ की बकाया राशि को इक्विटी में बदलने का फैसला किया है। इस नई पूंजीगत सहायता के बाद सरकार की कंपनी में हिस्सेदारी लगभग 49% हो जाएगी। 

दिसंबर 2024 तक, वोडाफोन आइडिया (Vi) का कुल कर्ज 2.3 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें से 77,000 करोड़ रुपये AGR (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) देनदारी और 1.4 लाख करोड़ रुपये स्पेक्ट्रम देनदारी थी।

कितने शेयर जारी होंगे?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ने कंपनी को ₹10 प्रति शेयर की फेस वैल्यू पर 3,695 करोड़ शेयर जारी करने का निर्देश दिया है, जिसे अगले एक महीने के भीतर जारी किया जाना है।

दिलचस्प बात यह है कि सरकार इन अतिरिक्त शेयरों को 47% से अधिक प्रीमियम पर अधिग्रहित करेगी, क्योंकि शुक्रवार को बाजार बंद होने पर कंपनी के शेयर की कीमत ₹6.8 थी।

हालांकि, कंपनी ने कहा कि Vodafone Group और Aditya Birla Group अभी भी कंपनी का परिचालन नियंत्रण बनाए रखेंगे।

दूसरी बार सरकार से मदद क्यों?

यह दूसरी बार है जब सरकार ने इस संकटग्रस्त टेलीकॉम कंपनी को वित्तीय राहत दी है। इससे पहले, सरकार ने फरवरी 2023 में ₹6,133 करोड़ के ब्याज बकाया को इक्विटी में बदलने की मंजूरी दी थी।

शुक्रवार को वोडाफोन आइडिया का शेयर ₹6.8 था, जिससे सरकार का ₹16,133 करोड़ का निवेश घटकर ₹10,970 करोड़ (32% की हानि) रह गया।

कंपनी ने शेयर बाजार को सूचित किया, "दूरसंचार मंत्रालय ने सितंबर 2021 में घोषित दूरसंचार सुधार और सहायता पैकेज के तहत बकाया स्पेक्ट्रम नीलामी देनदारियों को इक्विटी शेयरों में बदलने का फैसला किया है।"

क्या इससे कंपनी को मदद मिलेगी?

इस इक्विटी कन्वर्जन से कंपनी को अपने स्पेक्ट्रम बकाया का कुछ हिस्सा चुकाने में मदद मिलेगी। यदि सरकार यह कदम नहीं उठाती, तो सितंबर 2025 में स्थगन अवधि (moratorium) समाप्त होने के बाद कंपनी को हर साल ₹40,000 करोड़ चुकाने पड़ते।

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