iPhone की असेंबली अमेरिका में ले जाने से भारत को नुकसान या होगा फायदा!
एप्पल के इस फैसले से आईफोन बनाने की लागत बढ़ जाएगी. भारत में एक वर्कर की सैलरी लगभग 230 डॉलर होती है, लेकिन अमेरिका में यह 2,900 डॉलर तक हो सकती है. यानी 13 गुना ज़्यादा.;
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सलाह मानते हुए एप्पल (Apple) के सीईओ टिम कुक भारत से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स शिफ्ट करने का फैसला करते हैं, तो भारत से ज़्यादा नुकसान खुद एप्पल को होगा. जबकि भारत का फोकस एसेंबलिंग से हटकर मैन्युफैक्चरिंग की ओर चला जाएगा. ये कहना है जीटीआरआई (Global Trade Research Initiative) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का जिन्होंने अपनी एक रिपोर्ट में ये बातें कही है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर iPhone की असेंबली भारत से अमेरिका में चला जाए, तो तुरंत 60,000 नई नौकरियाँ वहां पैदा हो सकती हैं. अगर चीन से भी उत्पादन हटा लिया जाए, तो यह संख्या 3 लाख तक पहुँच सकती है. ये टेक्नोलॉजी से जुड़ी हाई-लेवल जॉब्स नहीं होंगी, बल्कि फैक्ट्री में काम करने वाली नौकरियाँ होंगी जैसे पहले अमेरिका में हुआ करता था. इससे अमेरिका की फैक्ट्री ताकत को फिर से मजबूत किया जा सकता है. यह भारत को भी सिर्फ जोड़-तोड़ वाले काम से हटाकर असली मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देने के लिए मजबूर करेगा.
15 मई को कतर के दोहा शहर में एक बिज़नेस कार्यक्रम में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि उन्होंने Apple के सीईओ टिम कुक से कहा है कि वो भारत में iPhone ना बनाएं. उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि आप भारत में बनाएं वो अपना ध्यान खुद रख सकते हैं." ट्रंप चाहते हैं कि Apple अमेरिका में ही iPhone बनाए.
जीटीआरआई के मुताबिक , हर एक $1000 वाले iPhone के बनाने में बहुत देशों का योगदान है. Apple खुद डिज़ाइन, सॉफ्टवेयर और ब्रांडिंग के ज़रिए लगभग $450 कमाता है. अमेरिका की कंपनियाँ Qualcomm और Broadcom मिलकर $80 कमाती हैं. ताइवान को चिप बनाने को $150 मिलते हैं, दक्षिण कोरिया को स्क्रीन और मेमोरी के लिए $90, जापान को कैमरे के लिए 85 डॉलर मिलते हैं. जर्मनी, वियतनाम और मलेशिया जैसे देश मिलकर $45 के आईफोन बनाने के लिए पार्ट्स देते हैं. अब बात चीन और भारत की. ये दोनों देश iPhone असेंबली में आगे हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ $30 प्रति फोन मिलते हैं यानी सिर्फ 3%. लेकिन इस हिस्से में सबसे ज़्यादा लोग काम करते हैं. चीन में 3 लाख और भारत में 60,000 लोग iPhone जोड़ने का काम करते हैं. ट्रंप इसी काम को अमेरिका में लाना चाहते हैं क्योंकि इससे बहुत सारी नौकरियाँ बनेंगी.
लेकिन एप्पल के इस फैसले से आईफोन बनाने की लागत बढ़ जाएगी. भारत में एक वर्कर की सैलरी लगभग 230 डॉलर होती है, लेकिन अमेरिका में यह 2,900 डॉलर तक हो सकती है. यानी 13 गुना ज़्यादा. इससे हर iPhone को जोड़ने की लागत $30 से बढ़कर $390 हो जाएगी. और अगर एप्पल अपने आईफोन का दाम नहीं बढ़ाती है तो Apple का मुनाफा $450 से गिरकर $60 रह जाएगा. क्या Apple को कम मुनाफे पर काम करना चाहिए ताकि अमेरिका में फैक्ट्री वाला काम वापस आए?
जीटीआरआई के अजय श्रीवास्तव के मुताबिक उसका जवाब हाँ है और इसके तीन अच्छे कारण हैं. ज्यादातर हाई-टेक कंपनियाँ अपने देश में ज़्यादा लोगों को नौकरी नहीं देतीं क्योंकि उनका काम विदेशों में होता है. लेकिन अगर iPhone अमेरिका में जोड़े जाएँ, तो लाखों लोगों को नौकरी मिल सकती है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा को इससे फायदा होगा. भले ही Apple का मुनाफा कम हो, लेकिन पैसा अमेरिका में ही घूमेगा जैसे मजदूरी, ट्रांसपोर्ट और लोकल सेवाओं के ज़रिए.
भारत को भी फायदा
आज भारत को iPhone से सिर्फ $30 मिलते हैं, जिनमें से ज़्यादातर Apple को सब्सिडी में वापस चले जाते हैं. भारत सरकार Apple जैसी बड़ी कंपनियों को खुश करने के लिए टैक्स भी कम कर रही है, जिससे लोकल कंपनियाँ पीछे रह जाती हैं. अगर Apple का काम भारत से चला जाए, तो भारत को मजबूर होकर असली मैन्युफैक्चरिंग जैसे चिप्स, डिस्प्ले और बैटरियाँ बनाने में निवेश करना पड़ेगा. इससे अमेरिका और भारत के बीच व्यापार घाटा भी कम होगा, जो ट्रंप की बड़ी चिंता है. अमेरिका में बिकने वाले हर iPhone के लिए भारत की कमाई $30 होती है, लेकिन पूरा $1000 अमेरिका के घाटे में गिना जाता है.