Mystery fire case: साल 2018 में CBI ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ दर्ज की थी FIR
यह एक रहस्य है कि सीबीआई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लिए बिना उच्च न्यायालय के एक वर्तमान न्यायाधीश (यशवंत वर्मा) के खिलाफ एफआईआर कैसे दर्ज कर ली?;
FIR against Justice Yashwant Verma: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 22 फरवरी 2018 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित सिंभोली शुगर लिमिटेड के प्रमोटरों और निदेशकों के खिलाफ बैंक धोखाधड़ी के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी. इस एफआईआर में कुल 11 आरोपी थे और इनमें से एक यशवंत वर्मा थे. उन्हें कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में दिखाया गया था. हालांकि, उस समय यशवंत वर्मा इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज थे.
कानूनी परेशानियां
यशवंत वर्मा अब दिल्ली में अपने सरकारी आवास से बेहिसाबी नकद राशि की वसूली के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोबारा इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया है, जहां वे पहले न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे. साल 2021 में वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट में नियुक्ति मिली थी.
यह सवाल अब भी उठता है कि सीबीआई ने एक sitting जज के खिलाफ एफआईआर कैसे दर्ज की. जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक, ऐसा कोई भी कदम चीफ जस्टिस से स्वीकृति प्राप्त किए बिना नहीं उठाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने वीरस्वामी मामले में यह स्पष्ट किया था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के sitting जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले भारत के चीफ जस्टिस से स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होता है.
सिंभोली शुगर में भूमिका
सिंभोली शुगर लिमिटेड के मामले में सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के बारे में पूछे गए सवालों का कोई सटीक जवाब नहीं मिला. इलाहाबाद हाई कोर्ट में सिंभोली के अन्य मामलों से जुड़े एक वकील ने पुष्टि की कि यशवंत वर्मा वही व्यक्ति थे, जिन्होंने सिंभोली का वकील के रूप में प्रतिनिधित्व किया था और बाद में कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य किया. हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि वर्मा का कंपनी के रोज़मर्रा के कार्यों से कोई लेना-देना नहीं था. क्योंकि वे केवल गैर-कार्यकारी निदेशक थे.
राजनीतिक कनेक्शन और विवाद
इस मामले का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहलू भी है. सिंभोली के एक सह-आरोपी गुरपाल सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कप्तान अमरिंदर सिंह के दामाद हैं. एफआईआर दर्ज होने के एक महीने के भीतर ही गुरपाल सिंह को पूछताछ के लिए बुलाया गया था, जिससे मामला राजनीतिक रूप से और भी संवेदनशील बन गया था. एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि सिंभोली और इसके प्रमोटरों तथा निदेशकों ने गन्ना किसानों को भुगतान के नाम पर लगभग 97.85 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की और पहले के कर्ज को चुकाने के लिए 110 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लिया. यह शिकायत मेरठ स्थित ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के सहायक महाप्रबंधक मनोहर ढिंगरा की तरफ से दर्ज की गई थी. गन्ना किसानों को कर्ज वितरण का समय जनवरी से मार्च 2012 के बीच था.
वर्मा को भुगतान
सीबीआई द्वारा की गई जांच में पाया गया कि यशवंत वर्मा को 31 जुलाई 2013 को कंपनी की वार्षिक आम बैठक में रोटेशन द्वारा रिटायर्ड किया गया था. वे पहली बार 30 जून 2009 को कंपनी के अतिरिक्त निदेशक बने थे. नियामक फाइलिंग में यह भी बताया गया कि यशवंत वर्मा एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ अधिवक्ता थे और इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते थे. उन्हें कंपनी और उसकी सहायक कंपनियों द्वारा विभिन्न सेवाएं देने के बदले पेशेवर शुल्क के रूप में 0.86 लाख रुपये का भुगतान किया गया था, जिसमें खर्चों की भी वापसी की गई थी. इसके अतिरिक्त कंपनी ने वर्मा को 3.71 लाख रुपये का भुगतान भी किया था, जैसा कि पहले की फाइलिंग में दर्शाया गया है.
ईडी की मनी लॉन्ड्रिंग जांच
सीबीआई एफआईआर के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू कर दी है. इस मामले के एक आरोपी डॉ. जीएससी राव को पिछले साल सितंबर में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा anticipatory bail दी गई थी. इससे यह संकेत मिलता है कि ईडी की जांच अभी भी जारी है.