BNS के तहत दर्ज होने वाली देश की पहली सबसे बड़ी घटना, जानिये कौन सी धारा क्या कहती है

BNS ( भारतीय न्याय संहिता ) की धाराएं जो लगाई गयी हैं, वो पुरानी कानून व्यवस्था में शामिल IPC की धाराओं से अलग जरुर हैं, लेकिन अपराध की परिभाषा लगभग एक जैसी है और सजा भी काफी हद तक एक जैसी ही हैं

Update: 2024-07-03 11:11 GMT

Hathras Case FIR: हाथरस भगदड़ कांड में उत्तर प्रदेश पुलिस ने जो FIR दर्ज की गयी है, वो BNS ( भारतीय न्याय संहिता ) की धाराओं के तहत दर्ज की गयी है. ये धाराएं पुरानी कानून व्यवस्था में शामिल IPC की धाराओं से अलग जरुर हैं, लेकिन अपराध की परिभाषा लगभग एक जैसी है और सजा भी काफी हद तक एक जैसी ही हैं. उत्तर परदेश पुलिस ने कम से कम इस मामले को दर्ज करते समय कोई भी रहम नहीं दिखाया है. यही वजह हा कि हाथरस भगदड़ को पुलिस ने कोई दुर्घटना नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या की श्रेणी में रखते हुए FIR दर्ज की है. इसके अलावा कई और भी धराये लगायी हैं, जो इस अपराध को और भी ज्यादा गंभीर की श्रेणी में लाती है. समझते हैं कि BNS की धाराएं क्या कहती हैं.

हाथरस भगदड़ कांड में यूपी पुलिस ने BNS की धारा 105, 110, 126 ( 2 ), 223 और 228 के तहत FIR दर्ज की है. इन धाराओं को किस अपराध के लिए लगाया जाता है, ये समझते हैं वकील रवि दराल से

105 - गैर इरादतन हत्या. इस धारा के तहत सजा का प्रावधान 10 साल तक है. ये गैर जमानती धारा है. इसका मतलब की पुलिस ने FIR के मुताबिक ये माना है कि ये मामला कोई दुर्घटना नहीं है.

110 - जानते बुझते ऐसा कृत्य करना जो किसी की जान को संकट में डालता हो. यानी पुलिस ने इस धारा के जरिये ये कहा है कि आयोजकों ने जो परमिशन ली थी, उससे कहीं ज्यादा लोग वहां पहुंचे. आयोजकों ने परमिशन का उल्लंघन ये जानते बुझते हुए किया कि उनके इस कृत्य से सत्संग में आये लोगों की जान को खतरा हो सकता है. इस धारा के तहत 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. ये सजा धारा 105 की सजा से अलग होगी.

126(2) - मतलब गलत तरह से किसी को रोकना या जबरन रोकना. जैसा ही FIR में लिखा गया है कि जब भगदड़ मची और लोग एक दूसरे पर गिरने लगे और फिर लोग खुद को बह्चाने के लिए जब वहां से उठ कर भागने लगे तो सेवादारों ने डंडो से उन्हें जबरन रोका, जिससे लोग एक दूसरे पर ही चढ़े रह गए. इस धारा के तहत सजा का प्रावधान 3 से 6 महीने है.

223 - सरकारी आदेश/निर्देश का उल्लंघन. जैसा की FIR में ये स्पष्ट है कि पुलिस से 80 हजार लोगों की बात कह कर इजाजत ली गयी थी और ढाई लाख से ज्यादा लोग एकत्र हो गये. जबकि परमिशन सिर्फ 80 हजार लोगों की ही थी. इसलिए ये धारा लगाई गयी है. इस धारा के तहत 3 महीने तक की सजा का प्रावधान है.

238 - सबूत नष्ट करना/ सबूत छुपाना. FIR में ये लिखा गया है कि जब पुलिस मौके पर पहुंची तो घायलों/मृतकों का सामन जूते-चप्पल आदि खेतों में सबूत छूपाने के मकसद से फेंके गए थे. इस धारा में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है.

वकील रवि दराल का कहना है कि ये पुलिस ने गंभीर धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है. पुलिस के पास 3 महीने का समय है चार्जशीट दायर करने का. अब देखना ये होगा कि क्या BNS के तहत क़ानूनी प्रक्रिया और जाँच तेजी से हो पाती है या नहीं, जैसा कि इन तीन नए कानूनों को लागू करते हुए दावा किया गया है. ये BNS  के तहत दर्ज होने वाला देश का पहला बड़ा मामला भी है, इसलिए इसी मामले से ये पता चल जायेगा कि पुलिस और अदालत दोनों ही इन नए कानूनों को लेकर कितने तैयार हैं.

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