दो बेटियों की मां बनी अफसर, उम्र नहीं बनी बाधा

केरल की 40 साल निसा उन्नीराजन ने 2 बेटियों, सुनने की परेशानी और जिम्मेदारियों के बीच UPSC में 1000वीं रैंक हासिल कर मिसाल कायम की.;

Update: 2025-07-23 11:38 GMT
Nisa Unnirajan

केरल की रहने वाली ४० साल की निसा उन्नीराजन की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती. जब ज्यादातर लोग ये मान लेते हैं कि जिम्मेदारियों और उम्र के साथ जीवन की गति धीमी हो जाती है. तब निसा ने अपने सपनों को न केवल संजोया बल्कि उन्हें उड़ान भी दी. दो बेटियों की मां, एक नौकरीपेशा महिला और सुनने की समस्या से जूझती निसा ने देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक UPSC सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होकर 2024 में 1000वीं रैंक हासिल की. उनकी ये सफलता साबित करती है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो उम्र, परिस्थितियां और चुनौतियां सब छोटी पड़ जाती हैं.

35 की उम्र में लिया बड़ा फैसला

जहां आमतौर पर 30 की उम्र के बाद लोग सिविल सेवा की तैयारी छोड़ने का विचार करने लगते हैं, वहीं निसा ने 35 साल की उम्र में इस सपने को गंभीरता से अपनाया. वो कहती है मैं हमेशा से कुछ बड़ा करना चाहती थी, लेकिन 35 की उम्र में इसे सच में अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया.

बेटियों की परवरिश और पढ़ाई एक साथ

निसा की जिंदगी केवल किताबों तक सीमित नहीं थी. उनकी दिनचर्या में उनकी दो बेटियां 11 साल की नंदना और 7 साल की थानवी भी शामिल थीं. उन्हें पढ़ाना उनका ख्याल रखना घर के कामकाज और नौकरी की जिम्मेदारियां इन सबके बीच उन्होंने पढ़ाई के लिए समय निकाला. उनके पति अरुण जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, और उनके रिटायर्ड माता-पिता ने भी निसा को पूरा सहयोग दिया.

कम सुनने की समस्या, लेकिन सपनों की स्पष्टता

निसा एक सामान्य UPSC उम्मीदवार नहीं थीं. उन्हें सुनने में कठिनाई थी, जो किसी भी परीक्षा की तैयारी में गंभीर बाधा बन सकती है. लेकिन उन्होंने इस चुनौती को अपने रास्ते की दीवार नहीं बनने दिया. उन्होंने कोट्टायम के सब-कलेक्टर रंजीत से प्रेरणा ली, जो खुद भी इसी समस्या से जूझते हुए UPSC में सफल हुए थे.

असफलताओं से नहीं डरीं, सीखा और बढ़ीं आगे

UPSC की राह उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं थी. निसा ने इस परीक्षा में 6 बार प्रयास किया और हर बार असफल रहीं. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वो कहती हैं, मैंने कभी किसी अटेम्प्ट को व्यर्थ नहीं माना. हर कोशिश ने मुझे कुछ नया सिखाया और मुझे बेहतर बनाया.

कोचिंग, किताबें और प्रेरणा बनी ताकत

निसा ने तिरुवनंतपुरम के एक कोचिंग सेंटर से मार्गदर्शन लिया. इसके अलावा सफल उम्मीदवारों की कहानियां, मोटिवेशनल वीडियो और एक सुव्यवस्थित पढ़ाई का तरीका उनके आत्मबल का आधार बने. उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए एक अलग तरीका अपनाया, जो उनके लिए बेहद प्रभावी साबित हुआ.

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