तस्वीरों में कैद दीन दयाल का दौर, फिर सजीव होगा भारत का शाही वैभव
आईजीएनसीए ने राजा दीन दयाल के 3,000 दुर्लभ ग्लास नेगेटिव्स का संरक्षण शुरू किया है, जिससे भारत की ऐतिहासिक तस्वीरें फिर पूरी भव्यता में दिखेंगी।;
लंबे समय से राजा दीन दयाल (1844-1905) की तस्वीरों को लेकर एक विशेष आकर्षण रहा है। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा गया, लेकिन उनके विशाल फ़ोटोग्राफ़ी संग्रह का केवल एक छोटा हिस्सा ही लोगों तक पहुँचा। कुछ तस्वीरें ब्रिटिश संग्रहालयों में रहीं, कुछ अल्काज़ी कलेक्शन में, और बाकी या तो दबकर रह गईं या कभी सामने नहीं आईं।
अब यह स्थिति बदल रही है। नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने दीन दयाल के दुर्लभ ग्लास नेगेटिव्स और अन्य तस्वीरों के संरक्षण का बड़ा अभियान शुरू किया है। इन ग्लास नेगेटिव्स को खास तापमान और नमी में रखना ज़रूरी होता है, वरना उनकी परतें खराब हो सकती हैं। आधुनिक तकनीक के ज़रिए अब इन्हें संरक्षित किया जा रहा है और कई तस्वीरें डिजिटाइज़ की जा रही हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए इन्हें सुरक्षित रखा जा सके।
आईजीएनसीए के सदस्य-सचिव सच्चिदानंद जोशी के शब्दों में, “ये सिर्फ दृश्य अभिलेख नहीं हैं, बल्कि भावनाओं से भरी धरोहर हैं। राजा दीन दयाल के ग्लास नेगेटिव्स का संरक्षण उनके काम, उनकी स्मृति और उनके अर्थ को फिर से जीवित करना है।”
3,000 दुर्लभ ग्लास नेगेटिव्स का खजाना
सन् 1991 में, दीन दयाल के वंशजों ने लगभग 3,000 ग्लास नेगेटिव्स आईजीएनसीए को सौंपे। इनमें मंदिरों, आगरा किले और महलों की तस्वीरें, और उनके इंदौर, सिकंदराबाद व बाद में बॉम्बे स्थित स्टूडियो में खींचे गए पोर्ट्रेट शामिल हैं। ग्लास नेगेटिव तकनीक में कांच की प्लेट पर कोलॉडियन और सिल्वर नाइट्रेट की परत चढ़ाई जाती थी, जिसे तुरंत विकसित करना पड़ता था। इसलिए शुरुआती फ़ोटोग्राफ़रों को अपने साथ पोर्टेबल डार्क रूम ले जाने पड़ते थे।
इनका संरक्षण आसान नहीं है क्योंकि परत कांच से अलग हो सकती है। आईजीएनसीए के लिए यह काम संरक्षण विशेषज्ञ राहुल शर्मा देख रहे हैं। इनके डिजिटलीकरण के बाद दीन दयाल की दुनिया एक बार फिर पूरी भव्यता के साथ सामने आएगी।
ड्राफ्ट्समैन से शाही फ़ोटोग्राफ़र तक
दीन दयाल भारत के पहले ऐसे फ़ोटोग्राफ़र थे जिन्होंने राजसी फ़ोटोग्राफ़ी को नए स्तर पर पहुँचाया। उन्होंने 1864 में रुड़की के थॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज में ड्राफ्ट्समैनशिप की पढ़ाई के साथ फ़ोटोग्राफ़ी सीखी। उस समय वे पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते थे। एक ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र से मुलाक़ात के बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाई और सर हेनरी डेली की मदद से वायसराय लॉर्ड नॉर्थब्रुक और फिर 1875-76 में प्रिंस ऑफ वेल्स के शाही दल की तस्वीरें खींचीं।
इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों, खासकर सर लेपेल ग्रिफ़िन, ने उनका संरक्षण किया। 1882 में उन्होंने बुंदेलखंड यात्रा के दौरान ग्वालियर, खजुराहो आदि के शानदार स्थापत्य की तस्वीरें लीं। इनकी 86 तस्वीरें Famous Monuments of Central India पुस्तक में शामिल हुईं, जो बाद में महारानी विक्टोरिया को भेंट की गई।
1887 में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने ‘Photographer to Her Majesty the Queen’ नियुक्त किया। इसके बाद वे लगातार वायसरायों और शाही परिवार के आधिकारिक फ़ोटोग्राफ़र बने रहे।
बॉम्बे से हैदराबाद तक
1894 में उन्होंने बॉम्बे के फोर्ट क्षेत्र में अत्याधुनिक स्टूडियो खोला, जिसे The Times of India ने “पूरब का सबसे भव्य फ़ोटोग्राफ़िक सैलून” कहा। बाद में वे हैदराबाद आ गए और निज़ाम के दरबारी फ़ोटोग्राफ़र बने। यहाँ उन्होंने दरबार, राजपरिवार के पोर्ट्रेट, परिदृश्य और स्मारकों की तस्वीरें खींचीं। निज़ाम उनके काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके सम्मान में एक शेर लिखा—
"अजब ये करते हैं तस्वीर में कमाल कमाल
उस्तादों के हैं उस्ताद राजा दीन दयाल"
सत्ता की छवि गढ़ने वाले लेंस
दीन दयाल ब्रिटिश और निज़ाम दोनों के प्रिय फ़ोटोग्राफ़र थे। उनके पोर्ट्रेट शाही वैभव और साम्राज्य की शक्ति को प्रदर्शित करते थे। लॉर्ड कर्ज़न के शिकार अभियानों और दिल्ली व निज़ाम के दरबारों की उनकी तस्वीरें औपनिवेशिक शक्ति की छवि को मजबूत करती थीं।उनकी स्थापत्य और परिदृश्य तस्वीरें, खासकर इंडौर के 1870-80 के दशक के दृश्यों में, प्रकाश और संरचना के अद्वितीय संयोजन को दर्शाती हैं। ब्रिटिश समाचारपत्रों और प्रदर्शनियों में उनके काम की चर्चा होती रही, और स्वतंत्रता के बाद भी उनकी कई तस्वीरें भारतीय पत्रिकाओं में छपती रहीं।
आज, जब आईजीएनसीए उनका पूरा संग्रह संरक्षित और डिजिटाइज़ कर रहा है, तो आने वाली पीढ़ियाँ न केवल उनकी तस्वीरें देखेंगी, बल्कि उस दौर की दृश्य संस्कृति को भी समझ पाएँगी। जैसा कि इतिहासकार गैरी सिम्पसन लिखते हैं दीन दयाल का नाम हमेशा उस फ़ोटोग्राफ़िक परंपरा में रहेगा जिसने आधुनिक भारत की छवि को आकार दिया।