यूपी की इस सीट पर सिर्फ एक बार खिला है 'कमल', ट्रेंड से हटकर वोटिंग का इतिहास

घोसी लोकसभा सीट के बारे में कहा जाता है कि यहां के लोगों का मिजाज ट्रेंड के खिलाफ होता है. क्या 2019 की तरह ही लोग एक बार फिर मतदान करेंगे या सोच में कुछ बदलाव हुआ है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-27 02:58 GMT

Ghosi Loksabha News:  7वें चरण में यूपी के पूर्वी हिस्से (पूर्वांचल) में 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव 1 जून को होगा. इस चरण में वाराणसी और गोरखपुर में मतदान होना है. लेकिन यहां बात हम बुनकरों के शहर की बात करेंगे. बात घोसी लोकसभा की होगी. पूर्वांचल में यदि आप घाघरा पार के रहने वाले हों तो लोग कहते हैं कि अगर कोई भी दल जिसके कब्जे में घोसी और गाजीपुर की सीट आ गई समझो केंद्र में सरकार उसकी बन गई. यह कहावत या विश्वास 2014 के चुनाव में तो सच साबित हुई. लेकिन 2019 के चुनाव में घोसी और गाजीपुर दोनों सीटों को बीजेपी हार गई थी. लेकिन केंद्र में एनडीए की सरकार बन गई. यहां हम घोसी की ही बात करने वाले हैं. इस सीट पर बीजेपी को सिर्फ एक दफा जीत मिली है. अगर आम चुनाव 2024 की बात करें तो बीजेपी का उम्मीदवार मैदान में नहीं है बल्कि एनडीए की तरफ से सुहेलदेव भारत समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे डॉ अरुन राजभर किस्मत आजमा रहे हैं. इनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के राजीव राय और बीएसपी के बालकृष्ण चौहान से है.

एनडीए बनाम इंडी गठबंधन

घोसी लोकसभा के लिए जंग एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच है. हालांकि बीएसपी भी इस चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में है. यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि वैसे तो बीएसपी की तरफ से पूरजोर कोशिश हो रही है. लेकिन मुकाबला अब सीधा लग रहा है. यानी कि एनडीए और इंडी गठबंधन के बीट टक्कर है. अगर बात समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की बात करें तो 2014 के चुनाव में राजीव राय को करीब 15 फीसद वोट मिले थे. यहां बता दें कि 2019 में सपा-बीएसपी गठबंधन में यह सीट बीएसपी के खाते में चली गई थी. इस दफा इस सीट पर बीजेपी की तरफ से उम्मीदवार नहीं है बल्कि सुभासपा के अरुन राजभर एनडीए के साझा उम्मीदवार हैं.

किसी की राह आसान नहीं

सुभासपा के लिए भी लड़ाई आसान नहीं है. स्थानीय पत्रकार संजय मिश्रा कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा से चुनाव लड़ चुके महेंद्र राजभर अब ओ पी राजभर का साथ छोड़ सपा के साथ जा चुके हैं. इसकी वजह से सुभासपा के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है. इसके अलावा लोगों के मुद्दे अलग अलग हैं. दोहरीघाट के रहने वाली विपिन राय कहते हैं कि यह बात तो ठीक है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की धाक बढ़ी है. लेकिन महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे से आप अनदेखी कैसे कर सकते हैं. जहां तक मतदान की बात है यहां पर जातीय गोलबंदी पहले से ही मजबूत रही है. वो उदाहरण देकर समझाते भी हैं.उनके मुताबिक कल्पनाथ राय को विकास पुरुष कहा जाता है. लेकिन हकीकत यह भी है कि वो सम्मानजनक तरीके से जीत नहीं दर्ज कर सके.

कुछ इस तरह सोच रहे हैं मतदाता

इस संसदीय क्षेत्र की खास बात यह है कि आप जिन जिन जातीय समूहों से मिलेंगे उनके अपने तर्क. उदाहरण के लिए सूरजपुर के रहने वाले श्याम नारायण गुप्ता कहते हैं कि वैश्य समाज पारंपरिक तौर पर बीजेपी को वोट करता रहा है. दरअसल बीजेपी को वोट करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि उस दल के लोग राष्ट्रवाद की बात करते हैं. लेकिन सोनाडीह के राम नरेश यादव कहते हैं कि सिर्फ राष्ट्रवाद की बात करने से क्या होता है. अगर लोगों के पेट में अन्न ना हो, शरीर पर ढंग के कपड़े ना हों, अस्पताल में इलाज की व्यवस्था ना हो तो खोखले राष्ट्रवाद का क्या मतलब. वहीं रतनपुरा के मोहन राजभर का कहना है कि सुभासपा में उनकी जान बसती है. कम से कम वो थाने पर अपनी बात कहने की स्थिति में हैं, पहले क्या होता था कि किसी केस के संबंध में थाने पर जाने पर हिकारत का सामना करना पड़ता था. 

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