दुनिया के बदलते हालातों के आईने में दिल्ली के लाल किले का धमाका
दिल्ली धमाका ऐसे समय पर हुआ है जब ऑपरेशन सिंदूर को सरकार ने अभी तक तकनीकी रूप से समाप्त नहीं किया है। यह भारत-अमेरिका संबंधों के लिए भी संवेदनशील दौर है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि 10 नवंबर की शाम लाल किले के पास हुआ धमाका मोदी सरकार के लिए बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक शर्मिंदगी का कारण बना है — खासकर इसलिए क्योंकि यह सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपने कड़े रुख और मजबूत प्रदर्शन पर गर्व करती रही है।
इस धमाके में अब तक तेरह लोगों की मौत हो चुकी है और करीब बीस लोग घायल हुए हैं। मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद देश की राजधानी में इस तरह की यह पहली बड़ी घटना है।
इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई है। यह फैसला इस बात का संकेत है कि सरकार ने इस विस्फोट को आतंकी घटना माना है, क्योंकि एनआईए को सामान्य आपराधिक मामलों की जांच का अधिकार नहीं होता।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली राजनीतिक टीम ने जनता को आश्वस्त किया है कि इस धमाके की पूरी, निष्पक्ष और तेज़ जांच की जाएगी और इस घृणित कृत्य के पीछे साजिश रचने वालों को कड़ी सज़ा दी जाएगी।
अब तक प्रधानमंत्री मोदी या अन्य मंत्रियों, जिनमें गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हैं, ने किसी पर आरोप नहीं लगाया है। दिल्ली पुलिस सहित किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी ने इस घटना पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। इसी तरह, जांच और फोरेंसिक एजेंसियों ने भी अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
हालांकि मीडिया में ‘सूत्रों’ के हवाले से कई तरह की खबरें आई हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी इस गंभीर घटना को केवल आपराधिक गतिविधि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
इसलिए ऐसी मीडिया रिपोर्टों के आधार पर किसी भी टिप्पणीकार या विश्लेषक द्वारा निष्कर्ष निकालना या अनुमान लगाना उचित नहीं होगा।
फरीदाबाद पुलिस आयुक्त सतेन्द्र कुमार गुप्ता ने 10 नवंबर की दोपहर, यानी धमाके से लगभग चार से पाँच घंटे पहले, मीडिया को जानकारी दी थी। इस संदर्भ में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की रिपोर्ट को उद्धृत करना उपयुक्त होगा, जिसमें बताया गया है कि गुप्ता ने क्या कहा था।
AIR के अनुसार, “फरीदाबाद और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने संयुक्त अभियान चलाकर फरीदाबाद में एक कश्मीरी डॉक्टर को गिरफ्तार किया। डॉक्टर के धौज स्थित घर से भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई। डॉक्टर मुझ्जब्बल फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं।”
पुलिस आयुक्त सतेन्द्र कुमार गुप्ता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि गिरफ्तारी के समय पुलिस ने डॉक्टर के घर से 350 किलोग्राम से अधिक ज्वलनशील पदार्थ, जिंदा कारतूस, मैगज़ीन, टाइमर और सर्किट उपकरण बरामद किए, जिनका इस्तेमाल विस्फोटक या आतंकवादी गतिविधियों में किया जा सकता था।
उन्होंने बताया कि इस अभियान के दौरान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से भी एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। यह संयुक्त अभियान पिछले 15 दिनों से चल रहा है और अब भी जारी है।
पुलिस आयुक्त ने यह भी कहा कि बरामद सामग्री की जांच के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम को बुलाया गया है। प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई है कि यह नेटवर्क कई राज्यों में सक्रिय था और कई संदिग्धों की पहचान कर ली गई है।
AIR की रिपोर्ट के आधार पर दो और बिंदु वीडियो रिकॉर्डिंग से जोड़े जा सकते हैं। मीडिया ब्रीफिंग के दौरान एक सवाल के जवाब में सतेन्द्र कुमार गुप्ता ने बताया कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर को 9-10 दिन पहले गिरफ्तार किया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि डॉक्टर नवंबर की शुरुआत से ही पुलिस हिरासत में था। एक अन्य सवाल के जवाब में गुप्ता ने कहा कि एक व्यक्ति फरार है और जांच जारी है। अब स्वाभाविक रूप से एनआईए इस नेटवर्क और धमाके के हर पहलू की जांच करेगी — खास तौर पर इस बात की कि असल अपराधी कौन था।
दिल्ली धमाका ऐसे समय पर हुआ है जब ऑपरेशन सिंदूर को सरकार ने अभी तक तकनीकी रूप से समाप्त नहीं किया है। यह भारत-अमेरिका संबंधों के लिए भी संवेदनशील दौर है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो दिन पहले कहा था कि दोनों देश एक समझौते के करीब हैं। समाचार एजेंसियों ने ट्रंप के इस बयान को भी उद्धृत किया कि हम एक निष्पक्ष सौदा कर रहे हैं, बस एक निष्पक्ष व्यापार समझौता। उन्होंने आगे जोड़ा, हम भारत के साथ एक नया सौदा कर रहे हैं, जो पहले से काफी अलग है।
मोदी सरकार ने कोशिश की है कि भारतीय निर्यात क्षेत्र पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% शुल्क का असर कम किया जा सके, लेकिन हकीकत यह है कि इस भारी टैरिफ दर के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। भारत ने रूसी तेल के आयात में भारी कमी की है, फिर भी ट्रंप ने दबाव बनाए रखा है क्योंकि उन्होंने 25% अतिरिक्त शुल्क (जो कुल 50% में शामिल है) नहीं हटाया, जिसे भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने के कारण लगाया गया था।
ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री मोदी कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहेंगे जो ट्रंप को नाराज़ करे।
यह याद दिलाना जरूरी है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगभग चालीस बार यह कह चुके हैं कि मई में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सीज़फायर उनके मध्यस्थता प्रयासों का नतीजा थी। हालांकि मोदी सरकार का कहना है कि उसने युद्धविराम पाकिस्तान के आग्रह पर स्वीकार किया था। साथ ही, मोदी सरकार ने ट्रंप के इस बार-बार किए जा रहे दावे पर अब तक कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है।
विश्व की बड़ी शक्तियों ने दिल्ली ब्लास्ट की निंदा की है, लेकिन वे भी नहीं चाहेंगी कि भारत और पाकिस्तान के बीच एक और सशस्त्र टकराव हो। इसका कारण यह है कि दो परमाणु-संपन्न देशों के बीच युद्ध की आशंका दुनिया में परमाणु संघर्ष की गहरी चिंता पैदा कर देती है। हालांकि वास्तविकता यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों के नेतृत्वों की ऐसी कोई इच्छा नहीं है कि स्थिति को उस स्तर तक बढ़ाया जाए।
फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह करना चाहिए, और अब तक उसने इसे प्रभावी ढंग से नहीं किया है, कि पाकिस्तान पर दबाव डाले ताकि वह भारत के खिलाफ अपने आतंकवादी ढांचे को समाप्त करे।
जहां तक मोदी सरकार का सवाल है, उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान से होने वाला कोई भी आतंकी हमला युद्ध की कार्रवाई मानी जाएगी। फरीदाबाद में गिरफ्तार डॉक्टर कश्मीरी मूल का है। पाकिस्तान की घुसपैठ और जम्मू-कश्मीर में उसकी गतिविधियां पिछले साढ़े तीन दशकों से सबके सामने हैं। इसलिए जनता के बीच यह धारणा बनी हुई है कि पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों और उसकी खुफिया एजेंसियों के संबंध जम्मू-कश्मीर सहित भारत के अन्य हिस्सों में भी व्यक्तियों और समूहों से हैं, खास तौर पर जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में।
दिल्ली ब्लास्ट इन धारणाओं को एक बार फिर सामने लाएगा। मोदी सरकार को इन जनधारणाओं से निपटना होगा। साथ ही विपक्षी दल भी इस धमाके को लेकर सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखेंगे।
दिल्ली ब्लास्ट के असर से निपटने का सवाल मोदी सरकार के सामने कई पेचीदे सवाल और दुविधाएँ खड़ी करता है। सरकार को विभिन्न दबावों के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ना होगा। जो भी कदम वह उठाएगी, उसके राजनीतिक, कूटनीतिक या आर्थिक प्रभाव ज़रूर होंगे।
खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी के भूटान से लौटने के बाद आज शाम सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक होगी। उम्मीद है कि इस बैठक के बाद सरकार की ओर से एक आधिकारिक बयान जारी किया जाएगा। यह बयान संभवतः शब्दों में कड़ा होगा और भारत के आतंकवाद पर रुख को दोहराएगा, लेकिन इसके मूल स्वर में सावधानी बरती जाएगी।
इसी बीच पाकिस्तान भारत और अफगानिस्तान पर आरोप लगाता रहा है कि वे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमलों को भड़का रहे हैं और उन्हें समर्थन दे रहे हैं। इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच कतर और तुर्की की मध्यस्थता में चल रही वार्ताएँ उम्मीदों के विपरीत ध्वस्त हो गई हैं। पाकिस्तान की असली समस्या उसके अफगानिस्तान से बिगड़ते रिश्तों और गहरे राजनीतिक व जातीय विभाजनों में निहित है। लेकिन भारत की तथाकथित भूमिका को लेकर पाकिस्तान की गलत धारणाएँ ही उसके कई कदमों की वजह बन जाती हैं। मोदी सरकार इन बातों को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।