दिल्ली की राजनीति में इस्तीफे वाला दांव नया नहीं, 1998 से क्या है कनेक्शन?
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे का ऐलान किया है। हालांकि विपक्षी दल इसे सिर्फ सियासी कदम बता रहे हैं। अब उनका दांव कितना फायदेमंद होगा यह देखने वाली बात होगी।
Arvind Kejriwal News: दिन रविवार था, जगह दिल्ली। आम आदमी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता इकट्ठा थे। दिल्ली के सीएम मंच से कह रहे थे कि हौसले को तोड़ने की कोशिश हुई। लेकिन हम लोग किसी चुनौती से परेशान होने वाले नहीं। हर मुकाबले का सामना करते आए हैं और करेंगे भी। इसी के साथ उन्होंने कहा वो दिन बाद इस्तीफा दे देंगे। इस्तीफे की बात अरविंद केजरीवाल के मुंह से सुनकर क्या मंत्री, क्या विधायक और क्या कार्यकर्ता सभी अवाक थे। एक सुर में आवाज आई कि इस्तीफा नहीं। लेकिन केजरीवाल ने कहा कि लड़ाई लंबी है। इन सबके बीच हम बात करेंगे कि क्या केजरीवाल इस्तीफा देने वाले पहले सीएम हैं या दिल्ली के इतिहास में कोई और था।
तब सहिब सिंह वर्मा ने दिया था इस्तीफा
आज से 26 साल पहले साल 1998 में दिल्ली की कमान साहिब सिंह वर्मा के हाथ में थी। लेकिन विधायकों के असंतोष की वजह से उन पर इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा था। पार्टी आलाकमान के सामने भी चुनौती कम नहीं थी। काफी सोच विचार के बाद यह फैसला लिया गया कि साहिब सिंह वर्मा को इस्तीफा देना होगा। पार्टी के निर्णय को स्वीकार करते हुए उन्होंने इस्तीफा दिया और दिल्ली की कमान सुषमा स्वराज के हाथ में आई। सुषमा स्वराज सिर्फ 52 दिन सीएम रहीं और जब चुनाव हुआ तो बीजेपी को शिकस्त का सामना करना पड़ा। 1998 के बाद आज की तारीख में दिल्ली की गद्दी बीजेपी से दूर है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा वाला दांव काम करेगा। केजरीवाल के बाद दिल्ली की कमान आप की तरफ से कौन संभालेगा स्थिति साफ नहीं है। लेकिन कुछ महिला चेहरों का नाम सामने आ रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा नई बात नहीं है। हालांकि क्या इसका सियासी फायदा उठा पाने में वो कामयाब हो सकेंगे।
इस्तीफे के ऐलान से सियासी असर
सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे का जब ऐलान किया तो विपक्षी दलों की तरफ से प्रतिक्रिया आई। बीजेपी ने इसे नाटक नौटंकी बताया। बीजेपी ने कहा कि इस्तीफे देने की बात करना अपने गुनाहों को स्वीकार करने की तरह है। कांग्रेस के नेता भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता अब केजरीवाल के कारनामों को समझ चुकी है। कांठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। जनता सही समय यानी चुनाव के समय पर जवाब दे देगी। अब सवाल यह है कि केजरीवाल के इस ऐलान से किस तरह से असर पड़ेगा। सियासत के जानकार कहते हैं कि दरअसल साहिब सिंह वर्मा और अरविंद केजरीवाल में एक ही समानता इस्तीफे का है।
सीएम कौन बनेगा इसे लेकर सस्पेंस भी खत्म हो जाएगा। लेकिन आप की मौजूदा स्थिति 1998 में बीजेपी से फर्क है। उस वक्त बीजेपी के अंदर शीर्ष स्तर पर खींचतान थी। असंतोष को दूर करने के लिए महिला सीएम पर बीजेपी पर दांव चला था। ये अलग बात है कि बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन अरविंद केजरीवाल के सामने वैसी चुनौती नहीं है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने फ्री बी के जरिए लाभार्थियों का ऐसा वर्ग तैयार किया है जो उनका कोर वोट बैंक है। ऐसे में आम आदमी पार्टी की स्थिति लचर नहीं है।
अगर दिल्ली की राजनीति को देखें तो 2014, 2015, 2020 के नतीजों से साफ है कि आम आदमी पार्टी ने सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस का किया है। लेकिन कांग्रेस के सामने दुविधा अलग तरह की है। राष्ट्रीय फलक पर वो आप के साथ हैं लेकिन हरियाणा की राजनीति में अलग चलना पसंद किया। अब बात जब दिल्ली के लिए कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन की करेंगे तो जाहिर सी बात है कि आप कैसे मंजूर कर सकेगी कि सीटों का रिश्ता 50-50 का हो या 60-40 का हो। ऐसे में आप को चुनौती देने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों को अलहदा रणनीति के तहत सामने आना होगा।