'पश्चिम बंगाल BJP में बदलाव की जरूरत', Old is Gold के जरिए इस नेता का इशारा

2024 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपने 2019 वाले आंकड़े को भी सहेज कर नहीं रख सकी. अब इस मामले में बीजेपी के अंदर गुटबाजी और भीतरखात को जिम्मेदार बताया जा रहा है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-12 07:03 GMT

West Bengal BJP Politics:  4 जून को आम चुनाव 2024 के नतीजों का औपचारिक ऐलान हुआ. सभी राजनीतिक दलों की टैली भी सामने आ चुकी थी. एनडीए गठबंधन को जनादेश हासिल हो चुका था.लेकिन बीजेपी खेमे में उदासी थी. उस उदासी के पीछे वजह यह कि पार्टी 2014 और 2019 की तरह प्रदर्शन नहीं कर सकी. जब आंकड़ों की और चीरफाड़ हुई तो तीन राज्य मुख्य तौर पर जिम्मेदार पाए गए वो थे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र. यूपी में बीजेपी को 2019 की तुलना में आधी सीट मिली. महाराष्ट्र में सीटों की सख्या में करीब 13 की कमी आई. पश्चिम बंगाल में 12 सीट पर ही जीत मिली जो 2019 की तुलना में छह कम थी. अब बीजेपी के अंदर ही आरोप- प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है कि आपसी गुटबाजी, बूथ प्रबंधन में लापरवाही जिम्मेदार है. हालांकि यहां हम बात पश्चिम बंगाल की करेंगे.

बीजेपी को 12, टीएमसी को 29 सीट
पश्चिम बंगाल में चुनावी प्रचार के दौरान पीएम मोदी बार बार यह दावा कर रहे थे कि इस दफा सबसे शानदार नतीजा मां, माटी और मानुष वाले राज से होगा. वो 29 से 30 सीट जीतने की बात कहते थे.लेकिन नतीजों में टीएमसी 29 सीट जीतने में कामयाब हो गई.सवाल यह है कि उत्तर बंगाल में जहां बीजेपी की पकड़ शानदार है वहां हार कैसे हुई. दक्षिण बंगाल में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन का दावा कर रही थी लेकिन नाकामी हाथ लगी. बीजेपी के पास संदेशखाली, शाहजहां शेख, हिंसा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे थे. पार्टी उसे क्यों नहीं भुना पाई. इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि भगवा ब्रिगेड के पास मुद्दों की कमी नहीं थी. लेकिन जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में एका ना होने की वजह से फायदा नहीं मिला. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को झूठी जानकारी दी जाती रही.

'अब 2026 की तरफ देखो'

पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता कहते हैं कि 2024 अब इतिहास है. हमें अब 2026 की तरफ देखना होगा. रॉयटर्स बिल्डिंग पर अगर कब्जा करना है तो अब तक की जो रणनीति रही है उसे बदलना होगा. इन सबके बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे दिलीप घोष ने एक्स पर सिर्फ तीन शब्द ओल्ड इज गोल्ड लिखकर बहुत कुछ कह गए. बता दें कि दिलीप घोष इस दफा लोकसभा का चुनाव हार गए थे और अपनी हार के बाद सीधे तौर पर पार्टी के अंदर गुटबाजी और भीतरघात को जिम्मेदार बताया था. बता दें कि मेदिनीपुर से सांसद रहे दिलीप घोष (इस दफा घोष वर्धमान-दुर्गापुर से चुनाव लड़े थे और एक लाख से अधिक मतों से हार गए थे) की सीट को जब बदला गया उस समय भी असंतोष की बात सामने आई थी. लेकिन अनुशासन के नाम पर बात दब गई. हालांकि उनकी हार के बाद यह सवाल उठ रहा है कि दिलीप घोष जिस गुटबाजी और भीतरघात की बात कर रहे थे उसकी जमीनी आधार था.

बीजेपी को गुटबाजी ले डूबी
पश्चिम बंगाल के आंकड़े बताते भी हैं कि दिलीप घोष के अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी मजबूत हुई थी.बीजेपी को वोट प्रतिशत भी 40 फीसद तक जा पहुंचा था. 2014 में 2 सीट वाली बीजेपी को 2019 में 18 सीट पर जीत मिली थी. 2021 में घोष की अगुवाई में ही 2021 विधानसभा चुनाव में पार्टी तीन से 77 विधायकों तक पहुंची. गुटबाजी का आरोप सिर्फ दिलीप घोष ही नहीं लगा रहे बल्कि कृष्णानगर सीट से चुनाव हार चुकीं अमृता राय भी इसी तरह का आरोप लगाती हैं. वो कहती हैं कि पार्टी के नेताओं की बात मानकर गलती हुई अच्छा रहा होता वो अपने बुद्धि विवेक से कैंपेन की होतीं.

अब इन आंकड़ों और बड़े नेताओं के बयान से साफ है कि बंगाल में बीजेपी चुनाव तो लड़ रही थी.लेकिन आपस में ही नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे थे. जानकार कहते हैं कि बीजेपी की हार के लिए ममता बनर्जी के धारदार कैंपेन की जगह उनके अपने नेताओं की खटपट थी. लिहाजा इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में आप किसी तरह का बदलाव बीजेपी में ना दिखे.

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