यहां चलता है यादव जी, ठाकुर साहब, राजभर जी, गाजीपुर में विकास पर भारी जाति- धर्म
पूर्वी यूपी की गाजीपुर लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प है. यहां से बीजेपी के पारस नाथ राय और समाजवादी पार्टी से अफजाल अंसारी आमने सामने हैं.
Ghazipur Loksabha News: अगर विकास ही जीत का सिर्फ पैमाना होता तो मनोज सिन्हा 2019 में चुनाव नहीं हारे होते. हार का फासला भी 10 या 20 हजार का नहीं था.बल्कि लाखों में था. अब बताते हैं कि यह सब लिखने की वजह क्या है. आम चुनाव 2019 में बीजेपी के उम्मीदवार मनोज सिन्हा पूर्वी यूपी के गाजीपुर लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे थे. सामने कोई और नहीं बल्कि अंसारी परिवार से जुड़े अफजाल अंसारी थे. अफजाल अंसारी का नाता कुख्यात बदमाश मुख्तार अंसारी से (बांदा जेल में हार्ट अटैक की वजह से मुख्तार अंसारी की मौत हो चुकी है) है. 2019 के नतीजों के बारे में विश्लेषक कहते हैं कि यह बात सच है कि मनोज सिन्हा एक लाख से अधिक अंतर से चुनाव हार गए थे. लेकिन उनके मत प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन किसी भी लड़ाई में हारने का कोई अर्थ नहीं होता. अब सवाल यह है कि विकास की राग पर जीत के लिए आशवस्त मनोज सिन्हा जब चुनाव हार गए तो क्या इस दफा बीजेपी की जीत होगी जब उम्मीदवार पारस नाथ राय है. यहां बता दें कि पारस नाथ राय को जब टिकट देने का ऐलान हुआ था हर कोई अचंभे में था. लेकिन सच यही है कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अफजाल अंसारी के सामने वो चुनावी मैदान में हैं.
- गाजीपुर लोकसभा सीट पर एक जून को मतदान होना है
- पारस नाथ राय- बीजेपी के उम्मीदवार
- अफजाल अंसारी- समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट
- उमेश प्रताप सिंह- बीएसपी के प्रत्याशी
गाजीपुर में जाति भारी
गाजीपुर के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां दलित 15 फीसद, मुसलमान 14 फीसद, यादव मतदाता 12 फीसद, गैर यादव ओबीसी 8 फीसद, अगड़ी जातियां करीब 18 फीसद हैं. इस लोकसभा की बात करें तो जातीय समीकरण समाजवादी और बीएसपी के पक्ष में ही रहता है. 2019 का चुनावी नतीजा उदाहरण भी है. आम चुनाव 2024 में बीजेपी की राह आसान नहीं है. हालांकि पीएम मोदी और सीएम योगी कहते हैं कि गाजीपुर जरूर जीतेंगे
यहां मुद्दे एक तरह से गौड़ हैं. मुद्दों के नाम पर हमने सुमित सिंह नाम के शख्स से सवाल किया. उन्होंने कहा कि देखिए जी मुद्दे तो बहुत से हैं. लेकिन यहां पड़ी किसको है. अगर विकास ही मुद्दा रहा होता तो अफजाल अंसारी को नसीब में हार मिलती. इस तरह की बातें यहां के लिए अप्रासंगिक हैं. सबको हर तरह की सुविधा चाहिए. लेकिन वोट देने के वक्त सबको अपनी जाति नजर आने लगती है. अफजाल अंसारी से आप सवाल पूछेंगे कि सांसद रहते हुए क्या किया. उस सवाल पर वो रोना रोते हैं कि सांसद की हैसियत ही कितनी होती है. वो पिछले चालीस साल से गरीब गुर्बा की बात कर रहे हैं. उनके हालत में कितना सुधार आया. सच यह है कि ज्यादातर लोगों को लगता है (खासतौर से आर्थिक तौर पर कमजोर तबके को) जेब में कुछ पैसे हो, विपत्ति के समय जो मदद दे दे वही भगवान है, और वोट देकर वो अपने कर्ज को उतार सकते हैं.