चुनाव आते ही याद आता है महम कांड, एक सीएम को तीन बार देना पड़ा इस्तीफा

हरियाणा के चुनाव में तीनों लाल यानी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल का कुनबा सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें से एक ओम प्रकाश चौटाला की बात करेंगे।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-23 04:59 GMT

Om Prakash Chautala:  हरियाणा में विधानसभा की सभी 90 सीटों पर राजनीतिक दल ताल ठोंक रहे हैं। 46 सीटों के जादुई आंकड़े को हासिल करने के लिए बयानों के तीर चलाए जा रहे हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि 10 साल का सूखा खत्म होगा,बीजेपी को हैट्रिक लगाने का मौका तो इनेलो-बीएसपी के साथ साथ जेजेपी अपने आपको किंगमेकर की भूमिका में देख रहे हैं। आम आदमी पार्टी अपने लिए जमीन बनाने में जुटी हुई है। लेकिन लोगों को लगता है कि कवायद को रंग लाने में कुछ और साल लगेंगे। इन सबके बीच हरियाणा के एक ऐसे सीएम की बात करेंगे जिनका नाता देवीलाल से है, यही नहीं सिर्फ 15 महीने के शासन में तीन बार इस्तीफा देना पड़ा। उनका जिक्र जब होता है तो महम कांड जेहन में तैरने लगता है। यहां हम आपको उसी सीएम और महम कांड के बारे में बताएंगे।

हरियाणा की सियासत में तीन लाल यानी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल वो चेहरे थे जिनके चारों तरफ राजनीति घूमती थी। ये लोग किसी की राजनीति को चमका सकते थे तो अस्त करने की भी क्षमता रखते थे। अब ये लोग इस दुनिया में नहीं है लेकिन इनका कुनबा उस विरासत को आगे ले जाने में जुटा है। ये बात अलग है कि इनकी विरासत बढ़ाने वालों के सामने चुनौती भी कम नहीं है। इन्हीं परिवारों में से एक देवीलाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला की बात करेंगे जो अब उतने सक्रिय तो नहीं है। लेकिन उनका नाम महम कांड और तीन दफा इस्तीफे से जुड़ता है।

क्या था महम कांड

महम कांड की नींव 2 दिसंबर 1989 से जुड़ी हुई है। यह वो दिन था जब देवीलाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने सीएम पद की शपथ ली। जिस समय वो सीएम बने उस वक्त राज्यसभा के सांसद थे। संवैधानिक तौर पर चौटाला के लिए 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था, लिहाजा सुरक्षित सीट की तलाश शुरू हुई जो देवीलाल परिवार की पारंपरिक सीट महम पर खत्म हुई। लेकिन इस पूरी कवायद में मोड़ तब आया जब खाप पंचायतों ने विरोध कर दिया। 36 बिरादरी की खाप ने यह फैसला किया कि देवीलाल के चुनाव प्रभारी रहे आनंद सिंह दांगी को चुनाव मैदान में उतारा जाए। लेकिन देवीलाल ने साफ इनकार कर दिया। देवीलाल के मना करने के बाद भी दांगी को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खाप ने उतारा। यानी कि धीरे धीरे माहौल किसी खतरनाक घटना की तरफ इशारा कर रहा था। 27 फरवरी 1990 को महम में रक्तरंजित चुनाव हुआ यानी कि हिंसा और बूथ कैप्चरिंग का बोलबाला। अब यह मसला इसलिए भी बड़ा हो गया कि हरियाणा राज्य का सीएम चुनावी मैदान में था। जिस चुनाव को निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए था वो हिंसा की भेंट चढ़ चुका था।

चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा मतदान के निर्देश दिए थे। दोबारा वोटिंग होने पर हिंसा फिर भड़की। चुनाव आयोग ने चुनाव को रद्द कर दिया। इस तरह से चुनाव टल गया। 27 मई को फिर से चुनाव की तारीख तय हुई लेकिन मतदान से पहले अमीर सिंह नाम के निर्दलीय उम्मीदवार की हत्या हो गई। ऐसा कहा जाता है कि आनंद सिंह दांगी का वोट काटने के लिए अमीर सिंह को चौटाला की तरफ से डमी उम्मीदवार बनाया गया था। अमीर सिंह कहीं और के नहीं बल्कि आनंद सिंह दांगी के गांव मदीना के थे। अमीर सिंह की हत्या के सिलसिले में पुलिस ने आनंद सिंह पर शिकंजा कसा। गिरफ्तारी के लिए घर पहुंची। लेकिन पुलिस वालों ने भीड़ पर गोली चलाई और 10 लोगों की मौत हो गई और इसे महम कांड के नाम से जाना गया। इस वारदात की गूंज संसद में भी सुनाई पड़ी। वीपी सिंह और देवीलाल को झुकना पड़ा और पांच महीने पहले हरियाणा की कमान संभालने वाले ओम प्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा।

चौटाला के इस्तीफे के बाद बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया गया। लेकिन कुछ दिन बाद हुए चुनाव में चौटाला ने दड़बा सीट से जीत दर्ज की और महज 51 दिन तक कामकाज संभालने वाले बनारसी दास को हटा दिया गया और एक बार फिर चौटाला ने कमान संभाली। लेकिन पीएम वी पी सिंह इस फैसले से खुश नहीं थे। वो चाहते थे कि केस चलने तक चौटाला सीएम ना रहे और इस तरह से दूसरी बार महज पांच दिन के कार्यकाल में इस्तीफा देना पड़ा। ऐसा कहा भी जाता है कि इस घटना के बाद से देवीलाल और वी पी सिंह में दूरी बढ़ने लगी थी। इस दफा मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को सीएम बनाया गया। इस बीच केंद्र की राजनीति में मंडल कमीशन, राम मंदिर यात्रा की वजह से उथलपुथल के दौर से गुजर रही थी। बाहर से वी पी सिंह सरकार को समर्थन दे रही बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया था। वी पी सिंह सरकार इतिहास हो चुकी थी। जनता दल का विभाजन भी हो चुका था। ताउम्र कांग्रेस का विरोध करने वाले चंद्रशेखर सिंह देश के पीएम बने। चंद्रशेखर की सरकार में देवीलाल डिप्टी बने और उनका बेटा ओम प्रकाश चौटाला तीसरी दफा मार्च 1991 में तीसरी दफा हरियाणा का सीएम बना। लेकिन कुछ विधायकों ने चौटाला का विरोध करते हुए पार्टी छोड़ी। सरकार अल्पमत में आ गई और तीसरी दफा चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा।

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