'370' की बात अब सिर्फ जज्बाती, विपक्षियों की टिकी है इन वोटों पर नजर

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, पीपल्स कांफ्रेंस अनुच्छेद 370 और 35 ए फिर से लाने का वादा कर रहे हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ चुनावी स्टंट है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-08 03:50 GMT

Jammu Kashmir Assembly Elections:  जम्मू-कश्मीर में चुनाव 10 साल बाद कराए जा रहे हैं। यह चुनाव इस वजह से भी खास है कि अब अनुच्छेद 370 और 35ए दोनों वजूद में नहीं हैं। पांच अगस्त 2019 को भारत की संसद ने इसे हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दिया। उस वक्त दो बड़े बदलाव भी हुए। जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। जम्मू-कश्मीर से जब राज्य का दर्जा हटाया गया तो घाटी के सियासी दलों ने रोष जताया। हालांकि केंद्र सरकार ने कहा था कि समय आने पर ना सिर्फ चुनाव कराएंगे जबकि राज्य का दर्जा भी बहाल करेंगे। अब जब तीन चरणों 18, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को चुनाव होने जा रहा है तो विपक्षी दल यानी नेशनल कांफ्रेस, पीडीपी, पीपल्स कांफ्रेंस ने अनुच्छेद 370 का राग अलापा है। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही कांग्रेस खामोश है। 

क्या कहते हैं घाटी के विपक्षी दल
घाटी की चुनावी लड़ाई में अनुच्छेद 370 को विपक्षी दल मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस विषय पर विपक्ष के बड़े नेता क्या कहते हैं उसे जानना भी जरूरी है। मसलन पीपल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन कहते हैं कि अगर कोई राजनीतिक दल विधानसभा में अनुच्छेद 370 और 35ए से जुड़ा बिल लाता है तो वो समर्थन करेंगे। कुछ इसी तरह नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला कहते हैं कि भले ही 100 साल लग जाए वो दिन आएगा जब हमारे पास अनुच्छेद 370 और 35 ए दोनों होंगे। इसके साथ ही महबूबा मुफ्ती भी इसी तरह का राग अलापती हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ सियासी फसल को काटने की कोशिश की है।

क्या कहते हैं जानकार
इस विषय पर जानकार कहते हैं कि यह विपक्षी दलों को भी पता है कि बिना संसद के इस तरह के बिल को लाया नहीं जा सकता। अब आप नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के रिएक्शन को देखें। वो राज्य का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर तो खुलकर बोलते हैं। लेकिन अनुच्छेद 370 पर चुप्पी साध लेते हैं। इसका अर्थ साफ है कि कांग्रेस का रुख इस विषय पर अलग है। अनुच्छेद ३७० का मुद्दा पीडीपी, नेशनल काफ्रेंस, पीपल्स कांफ्रेंस के लिए राज्य के हिसाब से अहम हो सकता है। लेकिन जब बात राष्ट्रीय स्तर पर होगी तो कोई भी राजनीतिक दल भारत के एक बड़े मतदाता वर्ग को नाराज करने की गुस्ताखी नहीं कर पाएगा। क्योंकि जम्मू-कश्मीर देश के अलग अलग हिस्सों की तरह सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है। ऐसे में सवाल है कि अगर सामान्य सी बात को आम आदमी भी समझ रहा है तो फारुख अब्दुल्ला, सज्जाद गनी लोन या महबूबा मुफ्ती इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं। 

अगर दांव कर गया काम..
इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि देखिए चाहे अब्दुल्ला परिवार हो या मुफ्ती परिवार या सज्जाद लोन सबको पता है कि अनुच्छेद ३७० को लाना अब असंभव है। लेकिन वोटों की लड़ाई में वो कहीं पीछे ना रह जाएं लिहाजा इस तरह की बात कर रहे हैं। इन सभी दलों का दबदबा जम्मू से अधिक घाटी में है। लिहाजा घाटी में मतदातओं विशेष तौर पर मुस्लिम वोटर्स को रिझाने की बात कर रहे हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि वोटर्स की मेमोरी अल्पकालीन होती है और इसके साथ ही नेताओं की तरकश में अपनी बातों से पलटने वाले तीर भी होते हैं। आप सामान्य तरीके से समझें तो सियासत में यह सब अल्पकाल के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर हथियार निशाने पर लग गया तो अच्छी बात नहीं तो उसे हमेशा के लिए बिसार दो। 

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