झारखंड चुनाव में सरना मुद्दे की शोर, आदिवासी समाज से क्या है नाता?
झारखंड विधानसभा चुनाव में इस समय सरना कोड पर चर्चा तेज हो गई है। इस मामले में करीब करीब सभी राजनीतिक दलों की राय एक जैसी है।
What is Sarna Code: साल वो 2000 का था जब भारत के राजनीतिक नक्शे पर झारखंड राज्य का उदय हुआ। 24 साल के इस सफर में झारखंड ने कई सरकारों को देखा। लेकिन कुछ नहीं बदला तो वो आदिवासियों के हालात। झारखंड राज्य के निर्माण की बुनियाद ही आदिवासी समाज था। इस समाज के उत्थान के लिए पिछले 24 साल से राजनीतिक दल वादे करते रहे हैं, ह बात अलग है कि आदिवासी समाज को उस दिन का इंतजार है जब उनके घरों में आर्थिक समृद्धि का अवतरण हो। इस समय झारखंड (Jharkhand Assembly Elections 2024) की सियासत में जातीय जनगणना, बटेंगे तो कटेंगे के शोर के बीच सरना मुद्दा जोर पकड़ रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस लगातार इस कोड को लागू करने की मांग कर रहे हैं तो बीजेपी ने भी विचार करने पर भी हामी भरी है। आखिर क्या है यह पूरा मामला।
सभी दलों की राय एक जैसी
3 नवंबर को गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कहा था कि बीजेपी (BJP on Sarna Code) सरना धार्मिक संहिता पर विचार करेगी। असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने तो इसे लागू करने का वादा किया है। हालांकि इस विषय पर बीजेपी ने ना तो सरना कोड का विरोध किया है ना तो समर्थन। संथाली, मुंडा और कुरुख समाज प्रकृति पूजा के उपासक हैं और इनकी मांग सरना कोड लागू करने की रही है। भारत में इस समय हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन धर्म को कानूनी मान्यता मिली हुई है।
- हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन धर्म को कानूनी मान्यता
- 1941 की जनगणना में आदिवासी समाज के लिए अलग से कॉलम
- 1951 में इस कॉलम को हटाया गया
- 2001 की जनगणना में 6 धर्मों के अलावा दूसरों के लिए अन्य का विकल्प
- अन्य के विकल्प में 50 लाख से अधिक लोगों ने सरना लिखा
- 41 लाख से अधिक आबादी का नाता झारखंड से
- 9 लाख का नाता ओडिशा पश्चिम बंगाल से
- संथाली, कुरुख, मुंडा अपने आपको सरना मानते हैं
- यह समाज प्रकृति पूजा का उपासक
2020 में झारखंड विधानसभा से प्रस्ताव पारित
साल 2020 में झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly Special Session 2020) ने एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था और जनगणना 2021 में सरना धर्म (Sarna Code Jharkhand) को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया। बीजेपी ने समर्थन करते हुए हेमंत सोरेन सरकार की मंशा पर सवाल उठाया था। राज्य में वैसे तो सभी जाति समूह के लोग रहते हैं लेकिन आदिवासी समाज बहुसंख्यक है। यह समाज अपने रीति रिवाज, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए अलग संहिता की मांग करता रहा है। इस समाज का तर्क था कि 1941 तक जनगणना में आदिवासी समाज(Scheduled Tribals in Jharkhand) के लिए अलग से कॉलम बना था। लेकिन 1951 में इसे हटाया गया। 2011 की जनगणना में जो लोग हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के हिस्सा नहीं थे उन्हे अन्य का विकल्प दिया गया था। खास बात यह कि उस अन्य विकल्प में 50 लाख से अधिक लोगों ने खुद को सरना बताया। 41 लाख से अधिक की आबादी झारखंड से थी और बाकी संख्या का नाता ओडिशा, पश्चिम बंगाल से था।
2020 में विधानसभा प्रस्ताव से पारित होने के बाद 2023 में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी जिसमें सरना को अलग धर्म के रूप में शामिल करने की मांग की थी। सोरेन ने तर्क देते हुए लिखा कि 1931 में आदिवासी आबादी 38.3 फीसद थी लेकिन 2011 में आबादी घटकर 26.02 फीसद थी। इस समाज को अलग धर्म के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए। हेमंत सोरेन की कवायद का नतीजा भी आम चुनाव 2024 में दिखाई दी जब इंडिया गठबंधन(India Alliance in General Election 2024) ने पांच सीट जीत ली थी।