आदिवासी अस्मिता को बनाया हथियार, हेमंत सोरेन ने जेल से लिखी जीत की इबारत
झारखंड में अब तक कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी. हालांकि, इस बार ताजा रुझान अगर नतीजों में बदलते हैं तो हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी तय है.
Jharkhand assembly election result: झारखंड के राज्य गठन के बाद पहली बार सियासी रिकॉर्ड टूटता नजर आ रहा है. मतगणना के रुझान अगर आंकड़ों में तब्दील होते हैं तो पहली बार राज्य में कोई पार्टी या गठबंधन मजबूती के साथ सत्ता में वापसी करते हुए दिखाई दे रही है. चुनाव आयोग के अनुसार, अभी तक के रूझानों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नीत इंडिया गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल रहा है. यह गठबंधन को 81 में से करीब 51 सीटों पर आगे चल रही है.
बता दें कि हेमंत सोरेन के इस साल लोकसभा चुनाव से पहले ईडी ने मनी लॉड्रिंग केस में गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा चुनाव से पहले हेमंत सोरेन को जमानत दे दी थी. ऐसे में क्या हेमंत का जेल जाना बीजेपी के जीत की राह में रोड़ा साबित हुई, आइए विस्तार से जानते हैं.
झारखंड में अब तक कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में वापसी नहीं कर पाई थी. हमेशा राज्य की जनता ने सत्तारूढ़ दल को बाहर का रास्ता दिखाया था. हालांकि, इस बार सियासी मिजाज बदलता हुआ दिखाई दे रहा है. ताजा रुझान अगर नतीजों में बदलते हैं तो हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी तय है. ऐसे में यह राज्य गठन के बाद पहली बार होगा, जब कोई दल सत्ता में लगातार दूसरी बार वापसी कर रहा है.
हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से ठीक पहले हेमंत अपना इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद राज्य के मुखिया का चेहरा बदला और चंपई सोरेन ने कमान संभाली. हालांकि, हेमंत सोरेन का जेल जाना भी उनकी जीत को रोक नहीं सका. इसको उन्होंने प्रचार के दौरान आदिवासी अस्मिता के तौर पर भुनाया.
आदिवासी अस्मिता का दांव
झारखंड आदिवासी बहुल क्षेत्र है और यह हमेशा से ही जेएमएम का कोर वोट बैंक माना जाता है. हेमंत ने चुनावी प्रचार के दौरान अपनी गिरफ्तारी को आदिवासी अस्मिता से जोड़ दिया. जिससे इस समाज पर जेएमएम की पैठ गहरी हुई. जो इस बार उनके जीत की वजह बनने जा रही है.
एंटी इनकम्बेंसी
झारखंड में आज तक कोई भी दल सत्ता में लगातार वापसी नहीं कर पाई है. इसकी वजह सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी रहती है. हालांकि, इस बार हेमंत सोरेन के जेल चले जाने से यह फेक्टर खत्म हो गया. जेल से बाहर आने के बाद जब हेमंत ने सत्ता संभाली तो जनता के मन में जेएमएम के लिए एंटी इनकम्बेंसी की बजाय हमदर्दी थी.
दल-बदल का फायदा
हेमंत सोरेन ने जब जेल से वापस आने के बाद मुख्यमंत्री का पद संभाला तो चंपई सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा. वहीं, हेमंत की भाभी सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसके बाद दूसरा झटका चंपई सोरेन के तौर पर लगा, जब इस्तीफा देने से नाराज चंपई ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. इस घटनाक्रम को जनता ने विपक्ष के हथकंडे के तौर पर देखा और जेएमएम के प्रति अपना समर्थन जताया.