अपने ही घर में सपा की साइकिल को चुनौती, कुछ ऐसा है बदायूं का समीकरण

आजमगढ़, मैनपुरी लोकसभा की सीट की तरह बदायूं पर भी मुलायम सिंह परिवार का गढ़ रहा है. हालांकि यह मिथक 2019 और 2022 उपचुनाव में टूट चुका है,आदित्य यादव चुनावी मैदान में हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-04-30 16:07 GMT

Badaun Loksabha Seat News: यूपी की सियासत में समाजवादी पार्टी पिछले सात साल से सत्ता में नहीं है. अगर बात आम चुनाव की करें तो 2019 में पांच सांसदों से संतोष करना पड़ा. 2019 के चुनाव में जहां डिंपल यादव कन्नौज से चुनाव हार गईं वहीं बदायूं से धर्मेंद्र यादव भी हार गए. तीन साल के बाद आजमगढ़ संसदीय सीट के लिए उपचुनाव हुए. वहां से धर्मेंद्र यादव ने किस्मत आजमायी. लेकिन नतीजा पक्ष में नहीं रहा. दरअसल इतना कुछ बताने के पीछे मकसद उन नामों और उन जगहों की चर्चा करना है जो यादव परिवार यानी मुलायम सिंह परिवार के गढ़ माने जाते थे. ये बात अलग है कि 2019 के नतीजों में गढ़ का मिथक टूट गया. उन्ही गढ़ में से एक है बदायूं सीट. इस सीट पर अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव चुनावी मैदान में है.

2024 में किसका होगा बदायूं

बदायूं की सीट पर औपचारिक नतीजा तो चार जून को आएगा. उससे पहले हम आपको बताएंगे कि इस संसदीय सीट का समीकरण क्या है. 2019 के चुनाव में अगर धर्मेंद्र यादव चुनाव हार चुके थे तो क्या आदित्य यादव की राह आसान रहेगी. इसके लिए इस सीट के जातीय समीकरण को समझना जरूरी है. यहां कुल 20 लाख से अधिक मतदाता है जिनमें करीब 10 लाख पुरुष और पचास हजार कम यानी 9, 5000 के करीब महिला मतदाता. पुरुष और महिला मतदाताओं को हमने जातियों में भी बांटा है.

जाति         मतदाताओं की संख्या

यादव               करीब साढ़े तीन लाख(3,50000)

मुस्लिम            करीब तीन लाख(300,000)

मौर्य                दो लाख के करीब(200,000)

दलित एक लाख अस्सी हजार के करीब(1, 80000)

उम्मीदवार का नाम                 पार्टी

आदित्य यादव                       समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party)

दुर्विजय सिंह शाक्य                           बीजेपी (BJP)

मुस्लिम खां                                    बीएसपी(BSP)

2019 के नतीजे को नहीं कर सकते नजरंदाज

अगर इस जातीय समीकरण पर ध्यान दें तो एक बात साफ है कि अगर यादव और मुस्लिम का झुकाव जिस तरफ होगा उसकी राह आसान हो जाएगी. लेकिन यहां सवाल रोचक है. 2019 के चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन एक साथ था. लेकिन बीजेपी उम्मीदवार संघमित्रा मौर्य की जीत हुई. इसका एक अर्थ यह है कि सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव के साथ बीएसपी का वोट बैंक ट्रांसफर नहीं हुआ. अगर यह 2019 की तस्वीर है तो क्या 2024 में आदित्य यादव की राह आसान होगी. यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि बीएसपी अलग चुनावी ताल ठोंक रही है. हालांकि यदि आप 2022 विधानसभा के चुनावी नतीजों को देखें तो पांच में से तीन विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा. बदायूं लोकसभा सीट में गुन्नौर, बदायूं सदर, बिल्सी, सहसवान और बिसौली विधानसभाएं आती हैं.

सपा के मंसूबों पर पानी फेर सकती है बीएसपी

बिसौली और बिल्सी विधानसभा पर 2022 में बीजेपी ने परचम लहराया था. अगर बीजेपी उम्मीदवार दुर्विजय सिंह शाक्य की बात करें तो वो यहां के स्थानीय है जबकि आदित्य यादव का नाता इटावा से है. बदायूं सीट पर नजर रखने वाले पत्रकार कहते हैं कि यूपी के शेष हिस्सों की तरह यहां भी लड़ाई जातियों के आधार पर ही. हर एक मतदाता अपने उम्मीदवार में जाति ही खोजता है. इस दफा की लड़ाई इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार मु्स्लिम खां को मैदान में उतारा है. अगर मुस्लिम मतदाताओं में टूट हुई तो निश्चित तौर पर उसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है. यानी कि आप कह सकते हैं कि सपा उम्मीदवार आदित्य यादव की राह आसान नहीं रहने वाली है.

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